ढाका, 6 जुलाई, 2011(उकान) बांगला देश के संविधान में हाल में किये संशोधन से अल्पसंख्यकों,
धर्मसमाजियों और विभिन्न समुदाय के लोगों को गहरा आघात पहुँचा है। अल्पसंख्यकों ने आरोप
लगाया है कि संविधान संशोधन से सन् 1972 के संविधान वापस आ गया है जो " भ्रामक और टकरावपूर्ण
" है जिसमें सन् 1971 के मुक्ति संघर्ष की भनक है। विदित हो कि 30 जून को बांगला
देश की संसद ने 15वाँ संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया। इसके तहत् उन्होंने चार सिद्धांतों
पर बल दिया है जो सन् 1972 के संविधान में निहित था। वे हैं – राष्ट्रीयवाद, समाजवाद,
प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता। इसमें इस्लाम को राज्य धर्म के रूप में बताया गया
है । अंतरधार्मिक वार्त्ता और एकता के लिये बनायी गयी समिति के अध्यक्ष खुलना के ओबलेत
धर्माध्यक्ष बिजोय डिक्रज़ ने कहा है कि " इस्लाम धर्म को राज्य धर्म के रूप में बनाये
रखना अन्य धर्मों के साथ सौतेला व्यवहार इस बात संकेत है।" इस्लाम को राज्य धर्म
घोषित करने पर एक हिन्दु वकील राना दासगुप्ता ने कहा कि " वे इससे बहुत दुःखी और हताश
हैं। नेताओं ने 20,5 लाख अल्पसंख्यको की भावनाओं से खिलवाड़ किया है। उन्होंने कहा कि
सत्ताधारी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र का उल्लंघन किया है।" सरकार ने 45 आदिवासी
दल की माँगों की भी अवहेलना की है। गारो काथलिक आदिवासी लेखक संजीवन द्रोंग ने कहा कि
" हम आहत, दुःखी और परेशान हैं क्योंकि सरकार ने हमें आदिवासी का दर्ज़ा नहीं दिया है।"