शरणार्थियों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित सम्विदाओं को पूरी तरह
लागू करने का आग्रह
(सीआईएसए 21 जून सेदोक) जेसुइट रिफयूजी सर्विस (जे आर एस) के अंतरराष्ट्रीय निदेशक फादर
पीटर बालियेस ने कहा कि यदि शरणार्थियों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा
पारित सम्विदाओं को पूरी तरह लागू किया जाये तो अनेक शरणार्थियों के जीवन को बचाया जा
सकता है। उन्होंने कहा कि यदि संविदाओं को अक्षरशः वास्तव में लागू किया जाये तो भू-मध्यसागरीय
क्षेत्र में लीबिया से पलायन कर रहे असंख्य शरणार्थियों, केन्या को पलायन कर रहे सोमालियों
तथा अन्य असंख्य लोगों की रक्षा की जा सकेगी और यहाँ तक कि उन्हें बचाया भी जा सकता है।
फादर बालियेस ने कहा कि मानवाधिकारों के हनन होने से रक्षा पाना हम सब का जन्मसिद्ध अधिकार
है। अनेक सरकारें अबतक संविदा के मुख्य सिद्धान्तों की अनदेखा या उपेक्षा करती हैं और
उन्हें राजनैतिक रूप से असुविधाजनक या आर्थिक रूप से बोझ डालनेवाला मानती हैं। उन्होंने
प्रेस वक्तव्य में कहा कि बहुधा शरणार्थियों को दूर कैम्पों या शिविरों में रखा जाता
या अन्यायपूर्वक शिविरों में कैद करने से उनके आवागमन संबंधी अधिकारों का हनन होता है।
इसी तरह से उन्हें दस्तावेज उपलब्ध कराने, उनके काम के अधिकार तथा अपरिहार्य सेवाओं तक
उनकी पहुँच को अन्यायपूर्ण तरीके से बाधित किया जाता है।
उन्होंने कहा कि संयुक्त
राष्ट्र संघ की शरणार्थी संबंधी संविदा के कारण अनेक लोगों का जीवन बचाना संभव हो सका
है। सन 1951 में पारित संविदा इस काम में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोने का पत्थर साबित
हुआ है। लाखों पुरूषों, महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा उपलब्ध कराते हुए अवसर उपलब्ध
कराना ताकि वे मर्यादापूर्ण जीवन जीते हुए अपने जीवन का निर्माण कर सकें हैं इस संविदा
के मह्त्व का स्पष्ट साक्ष्य देता है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ का इस निकाय
ने कांगो गणतंत्र में काफी मदद की है जहाँ बलात्कार के मामले बहुत बड़े और व्यापक स्तर
पर होते हैं तथा हजारों महिलाओं को बलात विस्थापित किया गया।
फादर बालियेस ने
कहा कि हाल के वर्षों में संविदा ने शरणार्थी की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए जैसे यौन
हिंसा के शिकार, सशस्त्र समूहों के अत्याचारों से पीडित लोगों को भी शरणार्थी मानते हुए
उभरती जरूरतों का प्रत्युत्तर दिया है। येसु धर्मसमाजियों द्वारा संचालित जेआरएस काथलिक
गैर सरकारी संगठन है जो विश्व के लगभग 50 देशों में जाति, नस्ल या धर्म का भेदभाव किये
बिना ही सब शरणार्थियों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक और अन्य जरूरतों को पूरा करने
के लिए मदद देता रहा है।