बंगलादेशः अदालत ने राज्य धर्म के दर्जे को दी चुनौती
बंगलादेश, 13 जून सन् 2011 (ऊका समाचार): बंगलादेश में इस्लाम को राज्य धर्म की स्थिति
मिलने पर यहाँ के उच्च न्यायलय ने चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने सरकार से प्रश्न किया
कि इस्लाम को दी गई राज्य धर्म की स्थिति संविधान में अवैध क्यों घोषित नहीं की जानी
चाहिये?
बंगलादेश के काथलिक नेताओं ने उच्च न्यायालय की इस चुनौती का स्वागत
किया है।
8 जून को हाईकोर्ट की एक बेंच ने 15 नागरिकों द्वारा 23 वर्षों पूर्व
दायर उस याचिका पर फैसला दिया जिसमें याचिका कर्त्ताओं ने अदालत से अनुरोध किया था कि
बंगलादेश को पुनः एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया जाये जैसा कि वह सन् 1972 में अपने
मूल रूप में था।
अदालत ने 12 वरिष्ठ वकील नियुक्त कर उनकी राय ली। अदालत के उक्त
निर्णय पर 16 जून को सुनवाई शुरू होगी।
ओबलेट धर्मसमाजी, खुलना के काथलिक धर्माध्यक्ष,
बीजोय डिक्रूज़ ने अदालत के उक्त फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा, "मैं फ़ैसले का स्वागत
करता हूँ। हमें सन् 1972 के मूल धर्मनिरपेक्ष संविधान की तरफ पुनः लौटना होगा।
ईसाई
एकता और अंतर धार्मिक वार्ता हेतु गठित बंगलादेश के धर्माध्यक्षीय आयोग के अध्यक्ष ने
कहा, "इस्लाम को राज्यधर्म का दर्जा प्रदान करना राजनीति से प्रेरित फ़ैसला था।" उन्होंने
कहा कि किसी एक धर्म को राज्य धर्म का दर्जा देने से अन्य धर्मों के लोगों पर उसके अनुपालन
का अप्रत्यक्ष दबाव बना रहता है जो किसी भी प्रकार से सही नहीं है।
बंगलादेश
की मानवाधिकार समिति की समन्वयक रोज़लीन डिकॉस्टा ने भी सहमति जताते हुए कहा, "इस्लाम
को राज्य धर्म मानने का अर्थ है किसी विशिष्ट सरकार एवं विशिष्ट राजनैतिक पार्टी का लाभ।"
उन्होंने कहा कि इससे धार्मिक रूढिवाद को भी प्रोत्साहन मिलता है। उन्होंने कहा सभी को
यह एहसास होना चाहिये कि धर्म व्यक्तिगत मुद्दा है जबकि राज्य सबके लिये है।
अदालत
में उक्त याचिका 9 जून 1988 में दायर की गई थी जब सैन्य शासक एच.एम एरशाद के नेतृत्व
वाली सरकार ने, इस्लाम धर्म को राज्य धर्म का दर्जा प्रदान करने के लिये बांग्लादेश के
संविधान में एक और अनुभाग सम्मिलित किया था। सन् 2008 में सत्ता में आई अवामी लीग के
नेतृत्व वाली सरकार ने चुनाव के घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह मूल संविधान को देश
में वापस लायेगी।