ज़गरेबः क्रोएशियाई बुद्धीजीवियों को सन्त पापा की चेतावनी, यदि अन्तःकरण को नीति एवं
राजनीति का क्रेन्द्र नहीं बनाया गया तो यूरोप का पतन निश्चित्त
ज़गरेब, 5 जून सन् 2011 (सेदोक): क्रोएशिया की राजधानी ज़गरेब में शनिवार को सन्त पापा
बेनेडिक्ट 16 वें ने देश के विख्यात ऐतिहासिक रंगभवन में राजनीतिज्ञों, अकादमी विदों,
उद्योगपतियों एवं कूटनीतिज्ञों को सम्बोधित कर प्रजातंत्रवादी देशों में अन्तःकरण की
भूमिका के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यदि यूरोप के नीति निर्धारण एवं
उसकी राजनीति से अन्तःकरण को अलग कर दिया गया तो उसका पतन निश्चित्त है।
क्रोएशिया
के लगभग सात सौ बुद्धिजीवियों के समक्ष अपना सम्बोधन सन्त पापा ने इस प्रकार आरम्भ किया................
"राष्ट्रपति महोदय, कार्डिनल और धर्माध्यक्षगण, लब्ध प्रतिष्ठ देवियो और सज्जनो तथा भाइयो
और बहनो, मैं बहुत खुश हूँ कि मेरी यात्रा का पहला कार्यक्रम क्रोएशियाई समाज और राजनयिक
निकाय के प्रमुख क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ हो रहा है। आप में से प्रत्येक का मैं
अभिवादन करता हूँ तथा जिन धार्मिक, राजनैतिक, अकादमी, सांस्कृतिक, कला, वित्त और खेल
जगत से सम्बन्धित महत्वपूर्ण समुदायों का आप प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनका भी, मैं सौहार्दपूर्ण
अभिवादन करता हूँ।"
समाज में न्याय एवं शांति की स्थापना के लिये अन्तःकरणों
के विकास पर बल देते हुए सन्त पापा ने आगे कहा .......... "यहाँ मैं अपने संक्षिप्त चिन्तन
के प्रमुख विषय की प्रस्तावना करना चाहता हूँ और वह है अन्तःकरण का विषय। स्वतंत्र एवं
न्याय पर आधारित समाज के लिये अन्तःकरण की नितान्त आवश्यकता है, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर
पर हो या अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर। स्वाभाविक रूप से, मैं यूरोप के बारे में सोच रहा हूँ,
जिसका, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर, क्रोएशिया हमेशा से अभिन्न अंग रहा है तथा अब
राजनीतिक और संस्थागत स्तर पर यूरोपीय संघ में प्रवेश की तैयारी कर रहा है। सच तो यह
है कि आधुनिक युग की महान उपलब्धियों यानि स्वीकृति और अन्तःकरण की स्वतंत्रता की गारंटी,
मानवाधिकारों का आश्वासन, विज्ञान एवं स्वतंत्र समाज के निर्माण की स्वतंत्रता आदि को
पुष्ट किया जाना एवं विकसित किया जाना अनिवार्य है ताकि यह सुनिश्चित्त किया जा सके कि
आधुनिक युग की उपलब्धियाँ अधूरी न रहें।"
उन्होंने कहा, "सामाजिक और नागर जीवन
की गुणवत्ता तथा प्रजातंत्रवाद की गुणवत्ता अन्तःकरण के महत्वपूर्ण बिन्दु पर निर्भर
रहा करती है। यदि प्रचलित आधुनिक विचार के अनुकूल अन्तःकरण को व्यक्तिपरक क्षेत्र तक
सीमित कर दिया जाये जिसमें धर्म एवं नैतिकता का कोई स्थान न हो तब पश्चिमी जगत के संकट
का कोई उपचार सम्भव नहीं हो सकेगा तथा यूरोप का पतन एक निश्चित्त वास्तविकता बन जायेगी।
इसके विपरीत, यदि सत्य एवं भलाई को सुनने तथा ईश्वर एवं मानव के प्रति ज़िम्मेदारी के
स्थल रूप में अन्तःकरण की पुनर्खोज की जायेगी तब भविष्य के लिये हमारी आशा मज़बूत हो
सकेगी।"