नवीन सुसमाचार प्रसार संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के सदस्यों के लिए संत पापा का संदेश
(वाटिकन सिटी 30 मई सेदोक, वी आर अंग्रेजी) संत पापा बेनेडिकट 16 वें ने एक साल पूर्व
गठित नवीन सुसमाचार प्रसार संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के सदस्यों को 30 मई को सम्बोधित
करते हुए कहा कि उनका मिशन समसामयिक लोगों के लिए सुसमाचार की उदघोषणा करना है जो बहुधा
विचलित और उदासीन है। इसके साथ ही उन्हें विश्वासियों को सहायता और समर्थन देना है जिनका
आधुनिकता के साथ कठिन संबंध है। ख्रीस्तीय होने का अर्थ निजी रूप या विशेष अवसरों पर
धारण करनेवाले वस्त्र के समान नहीं है लेकिन यह कुछ ऐसा है जो जीवित और सबकुछ का समावेश
करनेवाला है, यह आधुनिक समय में जो कुछ अच्छा और भला है उसे स्वयं में सम्मिलित करने
में समर्थ है। संत पापा ने नवीन सुसमाचार प्रसार संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष
महाधर्माध्यक्ष रिनो फिसिकेल्ला और समिति के अन्य सदस्यों को सम्बोधित किया जो समिति
की पहली पूर्णकालिक बैठक में भाग ले रहे हैं। उन्होंने स्मरण किया कि पिछले साल 28 जून
को इस समिति की रचना की इसके लिए उन्होंने जिन देशों में बहुत प्राचीन समय से ईसाईयत
रही है वहाँ पर ईसाईयत से जुड़ी समस्याओं और संकटों का आकस्मिक जवाब देने के लिए पर निजी
रूप से बहुत लम्बी अवधि तक चिंतन किया। संत पापा ने आगे कहा कि आज नयी परमधर्मपीठीय
समिति एक हकीकत बन गयी है जिसके सामने समसामयिक संकट है। उन्होंने कहा कि नवीन सुसमाचार
प्रसार की आकस्मिकता स्पष्ट रूप से उभर रही है। यह संकट जो हाल में अनुभव किया जा रहा
है इसमें लोगों के जीवन से ईश्वर को अलग करने, ईसाई धर्म के प्रति सामान्य तौर पर उदासीनता
और धर्म को सामाजिक जीवन से अलग कर देने के प्रयासों के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अतीत
के दशको में सामान्य ख्रीस्तीय भाव को पाना संभव था जो सम्पूर्ण पीढ़ी की सामान्य भावनाओं
को एकीकृत करता था, जो धर्म की छाया में बढ़े जो संस्कृति की रचना किया था। दुर्भाग्यवश
आज हम विखंडित होने की त्रासदी का साक्षात्कार कर रहे हैं जो संयुक्त होने के संदर्भ
बिन्दु की अनुमति नहीं प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त बहुधा लोगों की यह विशेषता भी रही
है जो कलीसिया के सदस्य होने की इच्छा रखते हैं लेकिन वे ऐसे जीवन दर्शन से जुड़े हैं
जो विश्वास के जीवन के प्रतिकूल है। संत पापा ने कहा कि यद्यपि अतीत की अपेक्षा आज
येसु ख्रीस्त को संसार का एकमात्र मुक्तिदाता के रूप में उदघोषित करना पहले से अधिक विषम
हो गया है लेकिन मिशन में कोई परिवर्तन नहीं आया है। वर्तमान समय के उनलोगों के लिए जो
सुसमाचार सुनने प्रतीक्षा कर रहे हैं उनके लिए संत पापा ने मिशनरी भावना को नवीकृत करने
की जरूरत पर बल दिया तथा कहा कि विश्वासियों की जीवनशैली को यथार्थ वैधता की जरूरत है,
वे जिन लोगों की सेवा करते हैं उनके लिए यह जीवनशैली और अधिक महत्ववाली हो। संत
पापा ने अपने सम्बोधन के अंत में संत पापा पौल षष्टम के विश्वपत्र इवांजेली नुनसियांदी
से एक प्रसंग उद्धृत करते हुए कहा कि कलीसिया अपने व्यवहार और जीवन से संसार में सुसमाचार
का प्रसार करेगी अर्थात येसु ख्रीस्त के प्रति निष्ठा, निर्धनता और अनासक्ति तथा इस दुनिया
की ताकत से मुक्त होने अर्थात पवित्रता का जीवंत साक्ष्य दे।