मुम्बईः केन्द्रीय सरकार साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने हेतु करेगी हस्तक्षेप
मुम्बई, 25 मई सन् 2011 (एशियान्यूज़): भारत के नेशनल एडवाईसरी काऊन्सल यानि राष्ट्रीय
सलाहकार परिषद एन.ए.सी. ने एक ऐसे विधेयक के प्रारूप को मंज़ूरी दे दी है जो केंद्रीय
सरकार को सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ हस्तक्षेप करने हेतु सक्षम बनायेगा।
काँग्रेस
अध्यक्षा सोनिया गाँधी के नेतृत्व में एन.ए.सी. द्वारा मंजूर उक्त विधेयक यदि संसद द्वारा
पारित हो जाता है तो केन्द्रीय सरकार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत, साम्प्रदायिक
हिंसा के मामलों और विशेष रूप से किसी विशिष्ट सामाजिक या जातीय समूह के खिलाफ हमलों
में हस्तक्षेप कर सकेगी।
नया विधेयक केन्द्रीय सरकार को सांप्रदायिक हिंसा के
मामलों में, राज्य के अधिकारियों का इंतज़ार किये बिना "आंतरिक अशांति" घोषित करने का
अधिकार प्रदान करेगा।
अनुच्छेद 355 के अनुसार, "केन्द्रीय सरकार का कर्तव्य होगा
कि वह बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे तथा यह सुनिश्चित
करे कि प्रत्येक राज्य संविधान के प्रावधानों का पालन कर रहा है।"
विधेयक में
एक राष्ट्रीय प्राधिकरण एवं सहायक राज्य स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान
है जो विधेयक के कार्यान्वयन पर नज़र रखेंगे। सात सदस्यवाला राष्ट्रीय प्राधिकरण अल्पसंख्यक
बहुल होगा जिनमें दो महिलाएँ होंगी।
एन.ए.सी. द्वारा जारी नये विधेयक पर अपनी
प्रतिक्रिया दर्शाते हुए भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रवक्ता फादर बाबू
जोसफ ने कहा कि इतने लम्बे अरसे तक विचार विमर्श करने के बाद प्रस्तावित विधेयक सन्तोष
का विषय है। एशिया न्यूज़ से उन्होंने कहा, "यदि यह संसद द्वारा पारित कर दिया जाता है
तो यह धर्म, जाति और भाषा के नाम पर हिंसा भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का एक
अच्छा उपकरण होगा तथा अधिकारियों को जवाबदेह बनायेगा।"
गुजरात स्थित मानवाधिकार
केन्द्र प्रशान्त के निदेशक काथलिक पुरोहित फादर सैडरिक प्रकाश ने भी उक्त विधेयक का
स्वागत किया है। उन्होंने कहा, "इतने लम्बे समय से गुजरात नरसंहार के मामले में न्याय
पाने के लिये संघर्ष करनेवालों के लिये यह खुश ख़बरी है।" उन्होंने कहा कि कि ज़रूरत
है इस प्रकार के विधेयक को कार्यान्वित करने हेतु राजनैतिक संकल्प की अन्यथा यह एक और
"दाँत रहित बाघ" बनकर रह जायेगा।