इस्तानबुलः अल्पविकसित देशों के लिये वाटिकन ने सुझाई नई योजना
इस्तानबुल, 24 मई सन् 2011 (सेदोक): वाटिकन ने, विश्व के अल्पविकसित देशों के विकास के
लिये, मानव के अखण्ड विकास पर ध्यान देने का प्रस्ताव किया है।
9 मई से 13 मई
तक इस्तानबुल में सम्पन्न, अल्पविकसित देशों पर संयुक्त राष्ट्र संघ के चौथे सम्मेलन
में बोलते हुए जिनिवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघीय कार्यालयों में, परमधर्मपीठ के स्थायी
पर्यवेक्षक वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष सिल्वानो तोमासी ने मानव के अखण्ड विकास
सम्बन्धी कलीसियाई परिप्रेक्ष्य से सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को अवगत कराया।
इस बात की ओर महाधर्माध्यक्ष तोमासी ने ध्यान आकर्षित कराया कि यद्यपि अनेक अल्पविकसित
देशों में निरन्तर प्रगति देखी गई तथापि लोगों का जीवन स्तर बेहतर नहीं हुआ है। अनेक
आज भी निर्धनता की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
सन् 1967 में, विकास पर
लिखे, पूर्व सन्त पापा पौल षष्टम के विश्व पत्र का सन्दर्भ देते हुए महाधर्माध्यक्ष ने
कहा कि विकास को आर्थिक लाभ तक ही सीमित नहीं किया जा सकता बल्कि विकास का अर्थ है प्रत्येक
व्यक्ति एवं अखण्ड मानव के कल्याण को प्रोत्साहित करना। उन्होंने कहा कि यही शिक्षा सन्त
पापा बेनेडिक्ट 16 वें के विश्व पत्र "कारितास इन वेरितास" में भी दुहराई गई है।
उन्होंने
स्पष्ट किया कि मानव के अखण्ड विकास के लिये ज़रूरी है मानव प्रतिष्ठा का सम्मान, मानवाधिकारों
की सुरक्षा, सृष्टि की रक्षा, समुदाय में भागीदारी तथा आर्थिक सहायता एवं एकात्मता। इसके
अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि सभी के लिये शिक्षा मुहैया कराना, प्राकृतिक संसाधनों के शोषण
को रोकना, कृषि, उत्पाद, व्यापार, वित्तिय सेवा तथा तकनीकी आदि का लाभ सभी में समान रूप
से वितरित करना विकास के लिये नितान्त आवश्यक है।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि विकास
की योजनाएँ बनाते समय उक्त बातों को यदि ध्यान में रखा जाये तो मानव के अखण्ड विकास को
साकार किया जा सकता है।