बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा का संदेश 11 मई, 2011
रोम, 11मई, 2011 (सेदोक, वीआर) बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें
ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न
भाषाओं में सम्बोधित किया।
उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा- मेरे
अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, हम आज धर्मशिक्षामाला में प्रार्थना के बारे में चिन्तन करना
जारी रखेंगे। प्रार्थना आम लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है।
आज नास्तिकवाद
और तर्क को आधार बना कर ईश्वर को जीवन में उचित स्थान नहीं दिया जाना हमें इस बात के
लिये संकेत कर रही है कि हमारी धार्मिक भावना को जगाये जाने की आवश्यकता है।
हमें
इस बात को भी स्वीकार करने की आवश्यकता है कि मानव का जीवन सिर्फ़ सांसारिक और मानव तक
ही सीमित नहीं है।
मानव ईश्वर का प्रतिरूप है और उसके दिल में ईश्वर को पाने
की इच्छा प्रबल है। और मानव इस बात को भी जानता है कि उसमें ईश्वर से बात करने की क्षमता
है।
संत थोमस अक्वीनास हमें बताते हैं कि प्रार्थना का अर्थ है दिल का ईश्वर
के लिये लालायित होना अर्थात् दिल की बातों को ईश्वर को बताने की इच्छा रखना। वास्तव
में यह इच्छा ही सबसे बड़ा वरदान है।
प्रार्थना का सीधा संबंध दिल से है जहाँ
हम ईश्वर का अनुभव करते हैं। ईश्वर का आमंत्रण और हमारी दुर्बलताओं, कमजोरियों और पापों
से हमें मुक्ति पाने की नम्रता हमें नवीन कर देती है।
प्रार्थना के समय घुटने
टेकना इस बात को दर्शाता है कि हमें ईश्वर की ज़रूरत है। और हम ईश्वर के वरदानों के
प्रति खुले हैं और उनके साथ एक रहस्यात्मक मित्रता के लिये तैयार हैं।
आइये आज
हम दृढ़ संकल्प करें कि हम प्रार्थना के लिये समय निकालेंगे, ईश्वर की आवाज़ को सुनेंगे
और उस ईश्वर के प्रेम में आगे बढ़ेंगे जिन्होंने हमें येसु मसीह को दिया जो अनन्त प्रेम
हैं।
इतना कह कर उन्होंने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने भारत
इंडोनेशिया, स्वीडेन, नाइजीरिया, जापान, इंगलैंड, कनाडा, अमेरिका, मिशनरी बेनेदिक्त सिस्टर्स
ऑफ टूटजिंग तथा अन्य तीर्थयात्रियों और उपस्थित लोगों पर पुनर्जीवित येसु की कृपा पास्का
का खुशी और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।