2011-05-03 13:59:00

कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन
3 मई, 2011
शिलौंग में आयोजित यूखरिस्तीय समारोह में धन्य संत पापा जोन पौल द्वितीय का प्रवचन
(4 फरवरी, 1986)


श्रोताओ, पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह के द्वारा धन्य घोषित किये जा चुके हैं। लाखों लोगों ने इस समारोह में उपस्थित होकर धन्य घोषणा समारोह का साक्ष्य दिया है और करोड़ों ने इस पावन कार्यक्रम का सीधा-प्रसारण टेलेविज़न में देखा और लाभान्वित हुए। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया क्योंकि आज से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में जिस संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर पर देखा था वे अब अपने ख्रीस्तीय विश्वास का मन-वचन-कर्म से साक्ष्य देते हुए देखते-देखते ‘धन्य’ घोषित कर दिये गये।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिवा से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं।
कलीसियाई दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। ग़ौरतलब है सन् 1520 ईस्वी में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिवा को ग़ैरइतालवी संत पापा बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये। एक के बाद एक राष्ट्र और फिर पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा कहा।
संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए।
वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़ खुल कर की है।
धन्य जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी, स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के ज्ञाता थे। आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों से मिले, 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया।
आपने अपने कार्यकाल में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया।
आपके अमृत वचनों व संदेशों से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी परिवारिक मूल्य मजबूत हुए तो दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ।
हमारा विश्वास है कि उनके जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण, सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेंगी।
धन्य संत पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों को आपतक लगातार पहुँचाते रहेंगे।
श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के पिछले सप्ताह हमने धन्य जोन पौल द्वितीय के द्वारा कोलकाता में विभिन्न् धर्मों के प्रतिनिधियों को दिये गये उनके संदेश के मुख्यांश को। आज हम आपके हम आपको जानकारी प्राप्त करेंगे धन्य जोन पौल द्वितीय के शिलौंग दिये गये प्रवचन के मुख्यांश को।
मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, मेरा यह सौभाग्य है कि मैं मेघालय अर्थात् ‘बादलों के इस घर में’ यूखरिस्तीय बलिदान चढ़ाऊँ। भारत के उत्तरी-पूर्वी भूभाग में बसा यह क्षेत्र सात बहनों का राज्य है के रूप में जाना जाता है।यहाँ के लोग अनेकता में एकता और सहयोग का प्रतीक हैं।

ईश्वर प्रत्येक संस्कति में अनोखे रूप से कार्यरत हैं। ईश्वर आप लोगों के लिये एक अमूर्त विचार सिर्फ़ नहीं है पर आपके जीवन का एक अभिन्न अंग है।

यहाँ की प्राकृतिक छंटा ही ईश्वरीय उपस्थिति का आभास दिलाती है। ईश्वर ने इसे सप्रेम हमें प्रकट किया है। यदि आज हम प्रेम की भाषा बोल पाते हैं यह इसलिये क्योंकि ईश्वर हमसे प्यार करते हैं और उन्होंने इस प्यार को हमें प्रकट किया है।

आपकी संस्कृति में ईश्वर का अपने आपको प्रकट करने की एक लम्बी परंपरा रही है विशेष करके विभिन्न चिह्नों एवं प्रतीकों के द्वारा और ये चिह्न हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं और लोगों के बीच पवित्र माने जाते हैं।

आज हम ईश्वर को एक चरवाहे के रूप में पातें हैं जो अपने भेड़ों को कभी नहीं छोड़ता है जो उन्हें खोजता और एक ईश्वर की संतान के रूप में एक करता है।
ईश्वर जो दयालु हैं हमें अपने प्रेम के कारण हमें येसु मसीह के साथ जीवित किया है। उन्होंने एक विशेष योजना के तहत् हमारे लिये अपने पुत्र येसु को दिया ताकि येसु दुनिया को पिता ईश्वर के बारे में बता सके।

जब येसु ने अपने मिशन कार्य आरंभ किया तब ही उन्होंने इस बात की घोषणा की कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। अपने प्रेरितिक कार्यों में उन्होंने अपने वचन तथा कर्म से पिता ईश्वर को प्रकट किया। संत लूकस अपने सुसमाचार में लिखते हैं कि येसु ने अपना प्रेरितिक कार्य की घोषणा करते हुए कहा था कि " ईश्वर का आत्मा मुझमें है जिसने मुझे दरिद्रों के बीच सुसमाचार प्रचार करने भेजा है। उन्होंने मुझे मुक्ति का संदेश देने भेजा है।"

निश्चय ही येसु ने ईश्वरीय प्रेम की प्रकाशना अपने कर्म व वचन तथा चमत्कारों तथा चंगाइयों से की। उनके प्रेम की चरमसीमा थी उनका दुःखभोग मृत्यु और पुनरुत्थान। उनके जीवन में पूर्ण ईश्वरीय समर्पण तथा पूर्ण मानवीय प्रत्युत्तर था। इसीलिये वे हमारी आंतरिक शांति और एकता के श्रोत हैं।

येसु के मिशन को उसके चेलों ने जारी रखा और उसके संदेशों को लोगों तक पहुँचाया जिससे विभिन्न ख्रीस्तीय समुदायों का निर्माण हुआ।असम में यह सलेशियन धर्मसमाजियों के द्वारा करीब एक सौ साल पहले पहुँचा और आज स्थानीय लोकधर्मियों के साथ मिलकर येसु के संदेशों को लोगों के ह्रदयों तक पहुँचाया है। आज हम उन सभी मिशनरियों और धर्मप्रचारकों के प्रति ऋणी हैं। हम सस्नेह अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

आज येसु उत्तरी पूर्वी भारत के लोगों को बताना चाहती है कि आपके दिल में ईश्वरीय जीवन का सहभागी होने की तीव्र उत्कंठा है, आपमें मानव मर्यादा और मानवाधिकार के प्रति सम्मान और विकास एवं शांति पाने की तीव्र इच्छा है। पर निरक्षता, गरीबी सांस्कृतिक विभिन्नता और अमानुषिक ताकतों की सक्रियता से उत्पन्न अस्मिता की समस्यायें भी हैं।

आज ज़रूरत है येसु के संदेश के संस्कृतिकरण की ताकि ख्रीस्तीय जीवन को स्थानीय संस्कृति और लोगों की मानसिकता, ज्ञान व परंपरा के अनुकूल बनाया जा सके ताकि ईश्वरीय वचन की जड़ लोगों के दिलों गहराई तक पहुँच सके।

मैं युवाओं से अपील करता हूँ कि आप अपनी संस्कृति भाषा और परंपरा और इतिहास से प्रेम करें ताकि आप इस पहाड़ी और मैदानी भूभाग में ईश्वरीय प्रेम के उपस्थिति का साक्ष्य दे सकें। हमारे कार्यों में ईश्वरीय कृपा और दया हम पर सदा बनी रहे ताकि हम ईश्वरीय खुशी को प्राप्त करें उनके साथ अनन्तकाल तक निवास कर सकें।

अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे धन्य संत पापा के गोवा में दिये संदेशों के बारे में












All the contents on this site are copyrighted ©.