2011-05-01 13:01:55

धन्य घोषणा समारोह में संत पापा का प्रवचन


वाटिकन सिटी, 1 मई, 2011(सेदोक) मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, छः साल पहले हम संत पेत्रुस के इसी प्रांगण में एकत्र थे जब संत पापा जोन पौल द्वितीय स्वर्गसिधारे थे।

उनकी मृत्यु की ख़बर से सारा जगत् शोकित तो था पर इससे भी बढ़कर उस दिन लोगों के दिलों में एक आध्यात्मिक संतोष की भाव था। लोगों ने अपने दिलों में अद्वितीय ईश्वरीय कृपा का अनुभव किया था।

ईश्वरीय कृपा का ऐसा गहरा अनुभव होना उनके सम्पूर्ण जीवन, विशेष करके अपने दुःखों को सहर्ष ग्रहण करने के साक्ष्य का फल था।

हमने व्यक्तिगत रूप से उनकी पवित्रता का अनुभव किया और हज़ारों ने उन्हें वन्दनीय पाया। यही कारण है कि मेरी भी इच्छा रही कि उनकी धन्य घोषणा की प्रक्रिया शीघ्रता से बढ़े। सचमुच, संत पापा जोन पौल द्वितीय की धन्य घोषणा ईश्वर की योजना थी।

आज का दिन अति महत्त्वपूर्ण है। आज पास्का का दूसरा रविवार है इस दिन को धन्य जोन पौल द्वितीय ने ‘डिवाइन मर्सी’ अर्थात् ‘दिव्य करुणा का रविवार’ घोषित किया था। ईश्वर ने इसी त्योहार की रात्रि प्रार्थना के उन्हें अपने पास बुला लिया। आज मई महीना अर्थात् माता मरिया के महीना का प्रथम दिन है। आज के दिन ही में पूरी दुनिया श्रमिक दिवस मनाती और काथलिक कलीसिया इसे श्रमिक संत जोसेफ को समर्पित करती है।

आज के सुसमाचार में कहा गया है " धन्य हैं जिन्होंने नहीं देखा, फिर भी विश्वास किया । (संत योहन, 20,29) इन वचनों के द्वारा येसु विश्वास करने वालों को धन्य कहते हैं। आज हम धन्य घोषणा समारोह के लिये एकत्र हुए विशेष करके एक संत पापा की धन्य घोषणा, जो संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी हैं जिनकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है - ‘ईशप्रजा के विश्वास को सुदृढ़ करना’।

जोन पौल द्वितीय के धन्य घोषित होने का कारण है उनका विश्वास – एक ऐसा विश्वास जो मजबूत, उदार और प्रेरितिक रहा। येसु ने संत पेत्रुस को ‘धन्य’ कहा था येसु ने उन्हें भी ‘धन्य’ कहा था, जो बिना देखे विश्वास करते हैं। आज हम माता मरिया की याद करते हैं जिसे एलिजबेथ ने उनके विश्वास के लिये ‘धन्य’ कहा था।

माता मरिया हमारे विश्वास की आदर्श हैं, जिन्होंने प्रेरितों, विशेष करके संत पेत्रुस के विश्वास को मजबूत और परिपोषित किया। माता मरिया ने येसु के जन्म से लेकर मृत्यु तक तथा उसके बाद ऊपर वाले कमरे में चेलों के साथ प्रार्थना करते हुए अपने विश्वास का साक्ष्य दिया।(प्रेरित चरित 1,14)

प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज जोन पौल द्वितीय का नाम तमाम ‘धन्यों’ की सुची में जुड़ जायेगा जिन्हें उन्होंने खुद ही 27 साल तक पोप का दायित्व निभाते हुए ‘धन्य’ घोषित किया था।

जोन पौल द्वितीय ने धर्माध्यक्ष कारोल वोयतिवा के रूप में वाटिकन द्वितीय महासभा में भाग लिया था। इस सभा में कलीसिया के संविधान के द्वारा माता मरिया मुक्तिदाता की माँ पवित्रता की आदर्श के रूप में एक विशेष स्थान दिया गया था।

" तोतुस तुउस " अर्थात् " पूर्ण समर्पण " उनके जीवन का आदर्श रहा और कलीसिया के लिये उनका संदेश था " डरो नहीं अपने दरवाज़े येसु के लिये खोल दो।" उन्होंने अपने विश्वास प्रेम और प्रेरितिक साहस और करिशमाई मानवीय शक्ति के द्वारा पोलैंड के लोगों को ईसाई कहलाने और सुसमाचार का प्रचार करने का साहस दिया।

उन्होंने मानव के बारे मार्क्सवादी और ईसाईधर्म की समझ के अन्तर को स्पष्ट किया । उनका कहना था " मानव कलीसया का पथ है और मानव का रास्ता है येसु मसीह।" उन्होंने ईसाई धर्म के यथार्थ रूप को उज़ागर करने में सफलता पायी।

उनके अनुसार " ईसाई धर्म आशा का धर्म है जिसे उस प्रभु येसु के ‘आगमन’ की प्रतीक्षा में जीने की आवश्यकता है जिनमें मानव की पूर्णता और शांति और न्याय की अभिलाषा की परिपूर्णता है।"

" धन्य संत पापा जोन पौल द्वितीय क्योंकि आपने विश्वास किया, स्वर्ग से हमारे विश्वास को सुदृढ़ कर।"









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