2011-04-29 18:39:49

पोप जोन पौल द्वितीय से भारत बहुत कुछ सीख सकता है


(अहमदाबाद 29 अप्रैल एशिया न्यूज,सीबीसीआई) गुजरात राज्य के अहमदाबाद में स्थित प्रशांत केन्द्र के निदेशक येसुसमाजी पुरोहित फादर सेद्रिक प्रकाश ने भारत और भारतीय कलीसिया के लिए पोप जोन पौल द्वितीय की विरासत विषय पर एशिया न्यूज को भेजी गयी एक टिप्पणी में कहा कि गरीबों, वंचित तबके के लोगों, महिलाओं और जीवन के समर्थन में संत पापा जोन पौल द्वितीय की प्रतिबद्धता आज के भारत में पहले से कहीं अधिक सार्थक है। कलीसिया को पाप की संरचनाओं के विरूद्ध संघर्ष करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह वास्तव में बहुत सार्थक है कि पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई को धन्य घोषित किये जायेंगे। यह दिवस विश्व स्तर पर मजदूर दिवस या मई दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह संयोग अनेक मायने में इस तथ्य का स्मरण कराता है जिसका प्रसार संत पापा जीवन भर करते रहे। मानव श्रम पर सितम्बर 1981 में लिखे उनके विश्वपत्र " लाबोरेम एक्सरसेंस " से लेकर अप्रैल 2005 में अपने जीवन के अंतिम समय तक पोप जोन पौल द्वितीय ने नियमित रूप से काथलिक सामाजिक शिक्षा पर तथा विश्व को प्रताडित करनेवाली सच्चाईयों का हर ईसाई द्वारा प्रत्युतर देने की जरूरत और महत्व पर बल दिया।
उन्होंने 1987 में लिखे गये विश्वपत्र " सोलिचितुदो रेई सोचियालिश " में निर्धनों के प्रति स्पष्ट रूप से सहृदयता का प्रदर्शन किय जाने का आह्वान किया। पोप लियो तेरहवें के विश्वपत्र रेरूम नोवारूम की 100 वीं वर्षगाँठ पर आज से ठीक 20 वर्ष पूर्व उन्होंने 1 मई 1991 को जारी विश्वपत्र " चेंतीसिमुस आन्नुस " में मानव की मर्य़ादा और मानवाधिकार के मध्य संबंध की पुर्नपुष्टि की।
फादर प्रकाश ने कहा कि हर वर्ष पहली जनवरी को मनाये जानेवाले विश्वशांति दिवस का उनका संदेश मानवाधिकारों, न्याय और शांति के मध्य संबंध को रेखांकित करता था। वे पोप पौल षष्टम के शब्दों में सदैव इस तथ्य की पुर्नपुष्टि करते थे कि यदि शांति चाहते हो तो न्याय के लिए काम करो। वे हमेशा श्रमिक वर्ग का पक्ष लेते रहे थे। पोलैंड को तानाशाही शासन से मुक्त कराने के लिए उन्होंने श्रमिकों के जन आन्दोलनों का समर्थन किया था। भारत में कलीसिया इससे सीख सकती है कि आज जो जनआंदोलन चल रहे हैं वह उनका समर्थन करे।
फादर प्रकाश ने कहा कि पोप जोन पौल द्वितीय जीवन समर्थक थे। उन्होंने गर्भपात और सुखमृत्यु के खिलाफ अपने विचार दृढ़ता से रखे। सबसे अधिक उन्होंने महिलाओं के अधिकारों तथा उनकी मर्य़ादा के लिए काम किया। उन्होंने सतत बल दिया कि नर और नारी की सृष्टि समान रूप से ईश्वर के प्रतिरूप में की गयी है। उन्होंने अनेक लेखों और प्रवचनों में माता मरिया के महत्व पर बल दिया है और उन्हें आदर्श मानते हुए हमें उनका अनुसरण करने को कहते हैं।








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