कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन 26 अप्रैल, 2011 संत पापा जोन पौल की भारत यात्रा संत
जेवियर कॉलेज कोलकाता में विभिन्न धर्म के प्रतिनिधियों को संदेश सोमवार 3 फरवरी,
1986
अतिसम्मानीय पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह धन्य
घोषित किये जायेंगे। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया है क्योंकि आज
से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर अपनी
ऐतिहासिक प्रेरितिक यात्रा की थी। उनकी धन्य घोषणा समारोह के अवसर पर रोम के संत
पेत्रुस महागिरजाघर प्रांगण में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियाँ अपनी चरमसीमा
पर है। आशा की जा रही है कि लाखों लोग इस समारोह का साक्ष्य देने के लिये उपस्थित होंगे।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं
के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिला से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस
पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व
एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं। कलीसियाई
दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत
पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। यह भी स्मरण रहे कि सन् 1520 ईस्वी
में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिला को ग़ैरइतालवी संत पापा
बनने का गौरव प्राप्त हुआ। विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में
साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे
विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये।एक के बाद एक पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा
कहा। संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ
संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ
भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए। वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने
उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा
का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों
ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़
में खुल कर की है। संत पापा जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से
एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी,
स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के
ज्ञाता थे। आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों
से मिले और की 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके
आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया। सम्माननीय संत पापा जोन पौल द्वितीय ने अपने कार्यकाल
में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया। उनके संदेशों से समग्र विश्व
लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी परिवारिक मूल्य मजबूत हुए शांति तो
दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ। हमारा विश्वास है कि उनके
जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेगी। संत
पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ
वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों
को आपतक लगातार पहुँचाते रहेंगे। पिछले सप्ताह हमने संत पापा जोन पौल द्वितीय के
द्वारा राँची में श्रमिकों को दिये गये संदेश के मुख्यांश को । आज हम आपके हम आपको जानकारी
प्राप्त करेंगे संत पापा जोन पौल द्वितीय के कोलकाता में विभिन्न धार्मिक नेताओं को दिये
संदेश के मुख्यांश को। मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, मुझे प्रसन्नता है कि
विभिन्न धर्म व संस्कृति के अति सम्माननीय प्रतिनिधियों से मिलने का मुझे यह सौभाग्य
प्राप्त हुआ है। आप लोगों को अभिवादन करते हुए मैं पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर का भी
अभिवादन करता हूँ। आप इस देश की उस सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के उत्तराधिकारी हैं
जो तीन हज़ार वर्ष पुराना है। ज्ञान, प्रज्ञा और मानव ह्रदय के अंतरतम आकांक्षाओं क प्रति
संवेदनशीलता तथा कला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के कारण भारत पूरे विश्व
में सम्मानित है। मैं आपलोगों को वाटिकन द्वितीय महासभा की बातों को याद दिलाना चाहता
हूँ जिसमें कहा गया है कि " धन्य है वे जिन्होंने सत्य को पाने के बाद भी इसके नवीनीकरण
और इसे सुदृढ़ करने को तत्पर रहते और दूसरों को बाँटने को उत्सुक रहते हैं। वे भी धन्य
हैं जो सत्य को पाने को प्रयासरत हैं। मेरी कामना है कि वे अपने प्रकाश से प्रकाश की
खोज़ में तब तक लगे रहें जब तक वे प्रकाश की पूर्णता तक न पहुँच जायें। " प्रिय भाइयो
एवं बहनों, दुःख जीवन की एक सच्चाई है। कभी-कभी दुःख अति तीव्र हो जाता है। यह भी एक
सत्य है कि आज एक ओर विज्ञान की प्रगति अपने चरम सीमा पर है तो दूसरी ओर मानव की गलती
ने मानव जीवन को खतरे के कगार पर खड़ा कर दिया है। मेरा पूरा विश्वास है कि जिस तरह
दुःख तथा वेदना के कारण मानव एक साथ असहाय महसूस कर रहा है उसी तरह हम सभी नेता और बुद्धिजीवी
एकजुट हो जायें और जीवन की इस महत्त्वपूर्ण चुनौती का सामना करें। दुनिया एक नयी
सभ्यता को जन्म देने को उतावली है जो सम्मान और समझदारी की सभ्यता होगी जहाँ ईशरूप में
सृष्ट मानव मर्यादा को पूर्ण सम्मान दिया जायेगा। यह सभ्यता, शांति और न्याय की सभ्यता
होगी जहाँ विभिन्नताओं का आदर होगा और दुनिया की सभी समस्या का समाधान टकराव से नहीं
वरन् प्रबुद्ध बातचीत से किया जा सकेगा। आज मैं आपलोगों को बताना चाहता हूँ धर्मगुरुओं
को चाहिये कि वे व्यक्ति वेदनाओं और ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील हों। " मानव आज इस बात
का जवाब खोज रहा है कि मनुष्य के दुःख का क्या अर्थ है ? मानव आज प्रश्न कर रहा है कि
मानव होने का क्या अर्थ है ? जीवन का क्या लक्ष्य है ? भलाई क्या है और बुराई क्या ?
प्रसन्नता प्राप्त करने के रास्ते कौन से हैं ? आज ज़रूरत है इन सभी सवालों के जवाब एक
साथ मिल कर खोजने की चुनौतियों के जवाब देने की विकास और सहायता की विशेषकर उनकी जो ज़रूरतमंद
और दरिद्र हैं। हमारा धार्मिक विश्वास हमें यह सिखाता है कि हम मानव की मर्यादा
और मूल्य का सम्मान करें और उन मनोभावों व्यक्तियों और सामाजिक ढाँचों को बदलें जो मानव
मर्यादा के विपरीत कार्य करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। जो भी बुद्धिजीवी, चिंतक, विचारक,
वैज्ञानिक और कलाकार है उस सत्य का प्रचार करें जिससे मानवता को लाभ हो। आज मैं
संत तारसुस के पौल की बातों को दुहराता हूँ वे कहा करते थे " हम सत्य के विरुद्ध कुछ
नहीं कर सकते हैं बस हम सत्य के लिये ही कार्य कर सकते हैं। " स्वामी विवेकान्द कहा
करते थे कि " प्रत्येक धर्म इस बात से प्रेरित है कि ‘लोकसेवा ही ईशसेवा है’। " इस
क्षेत्र में कलीसिया भारत के लोगों की सराहना करती है जिसने कई ऐसे युग पुरुषों, संतों,
महात्माओं, वैज्ञानिकों, दर्शनशास्त्रियों और राजनयिकों को पैदा किया जिन्होंने मानवता
के कल्याण में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। मुझे इस बात की खुशी की भारतीय चर्च ने
शिक्षा के द्वारा न्याय विकास और सौहार्दपूर्ण जीवन के लिये कार्य किया है। आज मैं काथलिकों
को इस बात के लिये प्रोत्साहन देना चाहता हूँ कि वे दूसरे धर्मावलंबियों के साथ वार्तालाप
करें, मिलकर कार्य करते हुए, ईसाई विश्वास और जीवन का साक्ष्य देते हुए दुसरे धर्मों
की आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिये कार्य करें ताकि मानव मर्यादा
सामाजिक न्याय, शांति और स्वतंत्रता के लिये कार्य करें। अंत में मैं रवीन्द्रनाथ
टैगोर की प्रार्थना को दुहराना चहूँगा। उनकी ईश्वर से प्रार्थना थी " हे प्रभु मुझे शक्ति
दे ताकि मैं दुःख और सुख में, उतार-चढ़ाव में प्रेम पूर्ण रूप से कर सकूँ। मुझे कृपा
दे कि मैं पूरे विश्व के लिये उत्साह और ताकत से कार्य कर सकूँ और उस जीवन को जिसे आपने
मुझे उपहारस्वरूप दिया है पूर्ण रूप से आपके लिये जी सकूँ। आज हमने जानकारी प्राप्त
की, संत पापा जोन पौल द्वितीय की भारत की भारत यात्रा की कोलकाता में दिये गये संदेश
की एक रिपोर्ट की। अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे उस संदेश के मुख्यांश को जिसे
संत पापा ने शिलोंग में दिया था।