2011-04-23 10:42:43

रोमः सन्त पापा ने हज़ारों विश्वासियों के साथ रोम के कोलोसुऊम में क्रूस के मुकामों पर किया चिन्तन


रोम, 23 अप्रैल सन् 2011 (सेदोक): सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने शुक्रवार को रोम के ऐतिहासिक स्मारक कोलोसेऊम पर हज़ारों भक्तों के साथ मिलकर क्रूस के मुकामों पर चिन्तन किया।

क्रूस मार्ग के मुकामों पर इस वर्ष अगस्टीन धर्मसंघ की धर्मबहन मरिया रीता पिक्कोनी ने चिन्तन लिखा था। सबसे पहले रोम के प्रतिधर्माध्यक्ष कार्डिनल अगोस्तीनो विलानी ने क्रूस उठाया उनके उपरान्त रोम के एक परिवार ने, इथियोपिया के एक परिवार ने, अगस्टीन धर्मसंघ की दो धर्मबहनों ने, मिस्र के एक युवा ने, पहियेदार कुर्सी पर बैठे एक व्यक्ति ने तथा पवित्रभूमि से आये दो फ्राँसिसकन मठवासी भिक्षुओं ने बारी बारी क्रूस उठाया।

सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने घुठनों पर गिरकर सम्पूर्ण क्रूस रास्ते की प्रार्थना की और बाद में उपस्थित भक्तों को सम्बेधित किया। सन्त पापा ने कहा कि क्रूस मार्ग की भक्तिमय प्रार्थना में विश्वासी, येसु के साथ मिलकर धरती पर उनकी यात्रा के अन्तिम चरणों में उनके संग संग चलते हैं।

उन्होंने कहा, "हमने भीड़ का कोलाहल सुना, खण्डन के शब्दों को हमने सुना, सैनिकों के अपमान और तिरस्कार को हमने सुना, कुँवारी मरियम और नारियों का विलाप हमने सुना। अब हम रात के मौन में डूब गये हैं, क्रूस के मौन में डूब गये हैं, मृत्यु के मौन में डूब गये हैं। यह ऐसा मौन है जो पीड़ा से भरा है, तिरस्कृत मानव की पीड़ा से, दमन चक्र के शिकार मानव की पीड़ा से, पाप और बुराई के बोझ ने उसके चेहरे को विकृत कर दिया है।"

सन्त पापा ने कहा, "आज की रात हमने एक बार फिर अपने हृदयों की गहराई में येसु द्वारा सही गई अपार पीड़ा का अनुभव किया।"

उन्होंने कहा, "क्रूस रास्ते की भक्तिमय प्रार्थना के बाद हमारे समक्ष क्रूसित व्यक्ति की छवि रह जाती है जो, अन्धकार में रहनेवालों को ज्योति प्रदान करने आये व्यक्ति की अन्तिम पराजय का संकेत प्रतीत होता है, उस व्यक्ति की पराजय का जिसने क्षमा और दया की शक्ति का सन्देश दिया, जिसने हमें हर मानव व्यक्ति के लिये ईश्वर के असीम प्रेम के बारे में बताया। तथापि, सन्त पापा ने कहा, "क्रूस, मृत्यु, पाप और बुराई की विजय का ध्वज नहीं है, अपितु वह प्रेम का प्रकाशमान चिन्ह है, वह ईश्वर के असीम प्रेम का चिन्ह है, वह उस बात का प्रतीक है जिसकी हमने न तो कभी कल्पना की थी और न ही कभी अपेक्षा की थी।"

सन्त पापा ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि ईश्वर ने हमारे लिये अपने आप को नीचा दिखाया ताकि हम हम उनकी ओर आकर्षित हो सकें। क्रूस हमें ईश्वर के परम प्रेम के बारे में बताता तथा हमें आमंत्रित करता है कि हम ईशप्रेम की शक्ति में अपने विश्वास को नवीकृत करें। वह हमें जीवन की हर परिस्थिति में विश्वास को बरकरार रखने के लिये आमंत्रित करता है। ईश्वर, मृत्यु, पाप और बुराई को ख़त्म करने तथा हमें नवजीवन प्रदान करने में सक्षम हैं, उन्हीं पर हम भरोसा करें, उन्हीं में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करें।

उन्होंने कहा, "क्रूस पर ईशपुत्र की मृत्यु में हम जीवन के लिये नई आशा का बीज पाते हैं, यह उस बीज की तरह है जो धरती में मरकर विपुल फल उत्पन्न करता है।"








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