2011-04-21 11:12:31

वाटिकन सिटीः सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में पवित्र तेलों की आशीष, "संस्कारों में सृष्टि के तत्वों द्वारा प्रभु हमारा स्पर्श करते", सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें


वाटिकन सिटी, 21 अप्रैल सन् 2011 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में, गुरुवार 21 अप्रैल की प्रातः, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, पवित्र तेलों पर आशीष दी तथा ख्रीस्तयाग अर्पण से पुण्य बृहस्पतिवार की धर्मविधियों का शुभारम्भ किया।

पुण्य बृहस्पतिवार की सुबह तेलों पर आशीष दी जाती है जो वर्ष के दौरान पुरोहिताभिषेक, धर्माध्यक्षीय अभिषेक, दृढ़ीकरण संस्कार तथा रोगियों की चंगाई तथा अन्तिम संस्कार प्रदान करने के लिये उपयोग में लाया जाता है।

इस अवसर पर ख्रीस्तयाग के दौरान प्रवचन करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा कि संस्कारों में प्रभु, सृष्टि के तत्वों द्वारा, हमारा स्पर्श करते हैं।

उन्होंने कहा, "संस्कारों में सृष्टि एवं मुक्ति के बीच विद्यमान एकता दृश्यमान होती है। संस्कार, हमारे विश्वास की शारीरिक अभिव्यक्ति हैं जो, शरीर व आत्मा सहित, समग्र मानव व्यक्ति का आलिंगन करते हैं। रोटी और अँगूरी धरती के फल तथा मानव परिश्रम का परिणाम हैं। प्रभु ने उनका चयन किया ताकि वे उनकी उपस्थिति के वाहक बने रहें। तेल पवित्रआत्मा का प्रतीक है और साथ ही वह ख्रीस्त की ओर इंगित करता हैः ख्रीस्त (मसीह), शब्द का अर्थ होता है "अभिषिक्त"। पिता ईश्वर के साथ ईशपुत्र के एक होने के कारण, येसु की मानवीयता पवित्र आत्मा के साथ सहभागिता में प्रवेश करती तथा अद्वितीय रूप से "अभिषिक्त" होती है। प्रेरिताई आरम्भ करने से से पूर्व तेल विलेपन द्वारा प्राचीन व्यवस्थान के राजाओं एवं याजकों के साथ जो कुछ प्रतीकात्मक रूप से हुआ वह सब येसु के साथ वास्तविकता में या यथार्थतः होता हैः उनकी मानवीयता पवित्रआत्मा की शक्ति से अनुप्राणित होती तथा वे हमारे लिये पवित्रआत्मा के वरदान को उपलभ्य बनाते हैं। जितना हम येसु के साथ एकता में रहेंगे उतना ही हम पवित्रआत्मा के वरदानों को प्राप्त कर सकेंगे। हम ख्रीस्तीय, अभिषिक्त कहलाते हैं – वे लोग जो ख्रीस्त के हैं तथा पवित्रआत्मा के वरदानों में सहभागी हैं, पवित्रआत्मा हमारा स्पर्श करते हैं।" सन्त पापा ने कहा कि हम केवल ख्रीस्तीय कहलायें नहीं अपितु ख्रीस्त के समान आचरण भी करें।

तीन तेलों की आशीष का मर्म समझाते हुए सन्त पापा ने कहा कि आज की धर्मविधि के दौरान पवित्र किये गये तेल ख्रीस्तीय जीवन के तीन आयामों की प्रकाशना करते हैं। "सर्वप्रथम है, दीक्षार्थियों के विलेपन के लिये पवित्र किया गया तेल जो ख्रीस्त द्वारा एवं पवित्रआत्मा द्वारा स्पर्श किया जाने का रास्ता दिखाता है। इसके द्वारा हमारी दृष्टि उन लोगों की ओर अभिमुख होती है जो हमांरी ही तरह ईश्वर की ओर तीर्थयात्रा में अग्रसर हैं, जो विश्वास की खोज कर रहे हैं, ईश्वर को खोज रहे हैं।

द्वितीय है, रोगियों के विलेपन हेतु पवित्र किया गया तेल। हमारे पहले वे लोग आते हैं जो पीड़ित हैं: जो भूखे और प्यासे हैं, हर महाद्वीप में हिंसा के शिकार हैं, बीमार हैं, उनकी आशाएँ, उनके निराशा के क्षण, उत्पीड़न के शिकार लोग, दमनचक्र से पीड़ित लोग, वे लोग जिनका दिल टूट गया है। येसु द्वारा शिष्यों को, उनके पहले मिशन पर, भेजे जाने के सन्दर्भ में सन्त लूकस लिखते हैं: "येसु ने उन्हें ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने और बीमारों को चंगा करने भेजा।" चिकित्सा एवं चंगाई सबसे मौलिक कार्य है जिसे येसु मसीह ने कलीसिया के सिपुर्द किया है। कलीसिया का प्रमुख मिशन ईश राज्य की उदघोषणा है किन्तु इस उदघोषणा को चंगाई की एक प्रक्रिया होना चाहिये। ईश राज्य की उदघोषणा, ईश्वर की असीम भलाई की उदघोषणा का परिणाम होना चाहिये चंगाई, टूटे दिलों की चंगाई। मानव व्यक्ति अपने स्वभाव से ही रिश्तों में बँधा हुआ है किन्तु यदि ईश्वर के साथ उसके मौलिक सम्बन्ध बिगड़े हैं तो सबकुछ बिगड़ जाता है। इसीलिये हमारी पहला चंगाई ख्रीस्त के साथ साक्षात्कार से होती है जो हमारा मिलन ईश्वर से कराते तथा हमारे टूटे दिलों को चंगा करते हैं। यही कारण है कि रोगियों एवं पीड़ितों की चिकित्सा एवं चंगाई कलीसिया का विशिष्ट मिशन है।

तृतीय है, जैतून के तेल एवं खुशबूदार वनस्पति तेलों के मिश्रण से बनाया जानेवाला "क्रिज़्म" तेल जिसका उपयोग, प्राचीन व्यवस्थान में प्रचलित विलेपन की परम्परा को बरकरार रखते हुए, पुराहितों एवं राजाओं के अभिषेक के लिये किया है। आज की धर्मविधि इस तेल को नबी इसायाह की प्रतिज्ञा से जोड़ती हैः "तुम लोग कहलाओगे ''प्रभु के पुरोहित'', तुम्हारा नाम रखा जायेगा ''हमारे ईश्वर के सेवक''। तुम राष्ट्रों की सम्पत्ति का उपभोग करोगे और उन से प्राप्त वैभव पर गौरव करोगे"(61:6)। इसी तेल का उपयोग बपतिस्मा एवं दृढ़ीकरण संस्कारों के लिये भी किया जाता है। पवित्र तेलों से विलेपित ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों का दायित्व है कि वे जीवन्त ईश्वर के बारे में दुनिया को बतायें, उनकी सदा विद्यमान रहनेवाली उपस्थिति के प्रति लोगों को सचेत करायें। इस सन्दर्भ में सन्त पेत्रुस लिखते हैं: "आप लोग चुने हुए वंश, राजकीय याजक-वर्ग, पवित्र राष्ट्र तथा ईश्वर की निजी प्रजा हैं, जिससे आप उसके महान् कार्यों का बखान करें, जो आप लोगों को अन्धकार से निकाल कर अपनी अलौकिक ज्योति में बुला लाया। पहले आप 'प्रजा नहीं' थे, अब आप ईश्वर की प्रजा हैं। पहले आप 'कृपा से वंचित' थे, अब आप उसके कृपापात्र हैं" (1 पेत्रुस 2:9)।"

सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने आगे कहाः "पहली मई को, जब सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय धन्य घोषित किये जायेंगे तब हम, विशेष रूप से, उनकी याद करेंगे तथा उनके लिये ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करेंगे। उनके साथ उन सभी महान साक्षियों का भी हम स्मरण करेंगे जो उनके द्वारा धन्य अथवा सन्त घोषित किये गये थे। ये सन्त, आज भी, हमें विश्वास दिलाते हैं कि ईश्वर की प्रतिज्ञा कभी झूठी नहीं होती।

अन्त में मैं, पुरोहिताई मिशन में संलग्न, मेरे प्रिय पुरोहित भाइयों की ओर अभिमुख होना चाहता हूँ। पुण्य बृहस्पतिवार, विशेष तौर पर, हमारा दिवस है। अन्तिम भोजन की घड़ी में, प्रभु ने नूतन व्यवस्थान के पौरोहित्य की स्थापना, उस समय, की जब उन्होंने प्रेरितों एवं युगयुगान्तर के पुरोहितों के लिये, पिता ईश्वर से इस तरह प्रार्थना की "तू सत्य की सेवा में उन्हें समर्पित कर" (योहन 17:17)। बुलाहट के लिये धन्यवाद देते हुए तथा विनम्रतापूर्वक सभी ख़ामियों के लिये क्षमा मांगते हुए, इस घड़ी, हम प्रभु की बुलाहट हेतु अपनी "हाँ" को नवीकृत करते हैः हाँ, मैं, ख्रीस्त के प्रेम से प्रेरित, आत्मत्याग हेतु तैयार, प्रभु येसु के साथ एकजुट होना चाहता हूँ।" आमेन।"













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