कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन 5 अपैल मार्च, 2011 दिल्ली-आगरा धर्मप्रांतों के
धर्माध्यक्षों को पवित्र यूखरिस्तीय बलिदान में दिया गया
संत पापा जोन पौल द्वितीय का प्रवचन (रविवार 2 फरवरी, 1986)
अति सम्माननीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह धन्य घोषित किये जायेंगे।
भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया है क्योंकि आज से 25 साल पहले सन्
1986 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर अपनी ऐतिहासिक प्रेरितिक
यात्रा की थी। उनकी धन्य घोषणा समारोह के अवसर पर रोम के संत पेत्रुस महागिरजाघर
प्रांगण में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियाँ अपनी चरमसीमा पर है। आशा की
जा रही है कि लाखों लोग इस समारोह का साक्ष्य देने के लिये उपस्थित होंगे। प्रतिकूल
परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं के रूप में
विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिवा से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस पोप ने काथलिक
कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व एवं मार्गदर्शन
किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं। कलीसियाई दस्तावेज़
बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत पापा रहे
जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। यह भी स्मरण रहे कि सन् 1520 ईस्वी में डच
निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिला को ग़ैरइतालवी संत पापा बनने
का गौरव प्राप्त हुआ। विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में साम्यवाद
का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे विश्व
में ही दूरगामी परिवर्तन आये।एक के बाद एक पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा कहा।
संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ संबंध
बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ भी आपसी
रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए। वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने उनके गर्भनिरोध
का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा का जोरदार समर्थन
और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों ने उनकी दृढ़ता
और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़ में खुल कर
की है। संत पापा जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से एक है जो विभिन्न
भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी, स्पैनिश पोर्तुगीज
उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के ज्ञाता थे। आपने
104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों से मिले
और की 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके आम दर्शन
समारोह में हिस्सा लिया। सम्माननीय संत पापा जोन पौल द्वितीय ने अपने कार्यकाल में 1338
लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया। उनके संदेशों से समग्र विश्व लाभान्वित
हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी, परिवारिक मूल्य मजबूत हुए शांति तो दूसरी ओर
अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ। हमारा विश्वास है कि उनके जीवन से
हमें भी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेगी। संत
पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ
वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों
को आप तक लगातार पहुँचाते रहेंगे। कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले सप्ताह
हमने संत पापा के उस संदेश के उस मुख्यांश को जिसे उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान
दिल्ली के सेक्रेड हार्ट महागिरजाघर में आयोजित यूखरिस्तीय बलिदान धर्माध्यक्षों को दिया
था। आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे संत पापा के संदेश के उस मुख्यांश को जिसे उन्होंने
दिल्ली और आगरा धर्मप्रांत के धर्माध्यक्षों को दिया था। मेरे अति प्रिय भाइयो एवं
बहनों, आज हम यहाँ भारत की राजधानी में जमा हुए है जो कि दुनिया के सबसे उँचे हिमालय
पहाड़ के नीचे हैं। ईश्वर आज हमारे साथ हैं और वे चाहते हैं कि हम उनके करीब आयेँ। आज
स्तोत्र गीत रचयिता के शब्दों में मैं प्रार्थना करता हूँ कि हिमालय पर्वत जो विश्व की
छत के समान है, खुल जाये और विश्व के सभी संस्कृति जिनका उद्गम स्थान भारत कि पावन भूमि
है खुल जायें। ईश्वर सभी संस्कृतियों में विद्यमान है क्योंकि वे हर मानव में उपस्थित
हैं- उस मानव में जिसे ईश्वर ने अपने अनुरूप बनाया है। ईश्वर ही सभी संस्कृतियों
के जन्मदाता हैं। भारत की संस्कृति में भी ईश्वर विद्यमान हैं और उन सब लोगों में जिन्होंने
अपने ज्ञान, अनुभवों और आकांक्षाओं से नैतिक मूल्य, परंपरा, संस्था और कलाओं के लिये
अपना योगदान दिया जो आज इस देश की सांस्कृतिक धरोहर बन गये हैं। आज राजाओं के राजा
येसु इस संस्कृति में प्रवेश करना चाहते हैं। वे उन सब लोगों के दिलों में प्रवेश करना
चाहते हैं जिनके मन और दिल खुले हैं, ताकि उन्हें परिपूर्ण कर दें। जब येसु हमारे दिल
में आते हैं तो वे एक नन्हे बच्चे के समान आते हैं न कि एक बड़े राजा के रूप में। येसु
के जन्म के 14वें दिन माता मरिया और जोसेफ ने येरूसालेम के मंदिर में समर्पित किया ताकि
सामाजिक नियम के पूर्ण हो सके। अपने जन्म के समय येसु ने जिस शांत भाव से, पूरी गरीबी
में, गरीबों के संग दुनिया में प्रवेश किये वह उनकी नम्रता का एक बड़ा नमूना और महान्
रहस्य है। आप सबों को याद होगा कि जब येसु को मंदिर में चढ़ाया गया तब वहाँ सिमेओन नामक
एक धर्मी पुरुष था। उन्होंने पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर येसु के बारे में कहा " हे
ईश्वर अब तू अपने सेवक को विदा कर क्योंकि इसने अपने मुक्तिदाता को देखा है। उन्होंने
यह भी कहा था कि यह बालक पूरी दुनिया की मुक्ति के लिये प्रकाश का कार्य करेगा। येसु
ने अपने जीवन में कई चमत्कार दिखाये - लोगों को चंगा किया भूखों को रोटी दी प्यासों को
जल आँधी को शांति किये और मुर्दों को जिलाये। लोगों ने उनकी दिव्य वाणी सुनी फिर
भी उन्हें कई लोगों की ओर से विरोधों का सामना करना पड़ा क्योंकि उनका दिल प्रभु के लिये
खुला नहीं था। अंत में येसु ने दुःख उठाया और क्रूस की मृत्यु भी झेली। सिमेओन की
भविष्यवाणी सच निकली आज भी येसु को कई विरोधों का सामना करना पड़ता है पर येसु के क्रूस
की मृत्यु के बाद क्रूस, प्रकाश बन गया है। यह मुक्ति का प्रतीक बन गया है। यही है गरीबों,
दुःखियों और ज़रूरतमंदों के लिये सुसमाचार। भारत में और दुनिया के कई अन्य स्थानों
में भी करोड़ों गरीब हैं, भूखे हैं चिंतित लोग हैं। फिर भी आज गरीबी भूखमरी या दुःखों
के क्रूस को येसु परिवर्तित कर सकते हैं क्योंकि वे दुनिया की ज्योति हैं। येसु की
जो ज्योति है, वह आशा और मुक्ति की ज्योति है। यह दुनियावी सभी दुःखों को अर्थ प्रदान
करती है। यह लोगों को अनन्त जीवन देने की आशा प्रदान करती है। येसु ने क्रूस के अपने
मरण के द्वारा पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त किया है। इसीलिये जो भी येसु का अनुसरण
करेंगा उसे येसु अपनी जीत औरमहिमा का सहभागी अवश्य बनायेंगे। येसु चाहते हैं कि
सबों को मुक्ति प्राप्त हो और इस मुक्ति के यह आवश्यक है लगातार न्याय, शांति और मानव
के समग्र विकास के लिये कार्य करे। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो यह येसु के मिशन के प्रति
विश्वासघात है।
भारत की काथलिक कलीसिया ने देश की प्रगति के लिये सदा ही
प्रयासरत रही है। मदर तेरेसा के कार्यों से कौन अनभिज्ञ हैं जिन्होंने पूर्ण समर्पण के
साथ गरीबों एवं परित्यक्तों के लिये कार्य किये हैं। इसके साथ कलीसिया ने लोगों की शिक्षा,
स्वास्थ्य और सामाजिक विकास के क्षेत्र में अभूतपूर्व सेवायें दीं हैं। भारत के नागरिक
और कई अन्य लोगों ने गरीबी निवारण के लिये किये गये उपायों की तारीफ़ करते हैं और गरीबी
की दासता से मुक्त करने के लिये मनोवृति और रूपरेखा में जो बदलाव किये गये हैं उसकी भी
तारीफ की जाती रही है। भारत में सामाजिक बंधनों को तोड़ कर एकता और प्रगति की दिशा
में किये महात्मा गाँधी के प्रयास सराहनीय हैं। समानता और सेवा की भावना उनके दिल में
कूट-कूट कर भरी हुई थी जिसके कारण भारतीयों के दिल में उनके प्रति अपार श्रद्धा है। रविन्द्र
नाथ टैगोर ने भी आधुनिक भारत के नवनिर्माण में अपना योगदान दिया। देश के तमाम ऐसे समर्पित
नेताओं ने एक ऐसी सभ्यता प्रदान की जो धनियों को गरीबों के साथ बाँटने की प्रेरणा प्रदान
की है। इन सबके बावजूद भारत को प्रगति के पथ पर आगे जाना है। भारत को आपसी मेल-मिलाप,
अज्ञानता से मुक्ति और पूर्वधारणा से ग्रसित होने से बचना है और समझदारी, सहिष्णुता,
भाईचारा और समर्पित सेवा के लिये आगे आना है। आप रंग, जाति, धर्म और लिंग आदि भेदों
को नकार कर ईश्वर को अपने दिल में जगह दें। येसु दुनिया के दीपक हैं क्योंकि वे नम्र
हैं उन्होंने सुखी होने के लिये आठ सूत्र प्रदान किये और अंत में कूस की मृत्यु द्वारा
पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त की। आज हम उनका स्वागत करें ताकि हम भी उसके जीवन और महिमा
के सहभागी हो सकें। आज आपने आज जानकारी प्राप्त की संत पापा जोन पौल द्वितीय के द्वारा
भारत की यात्रा के दौरान दिल्ली के इंदिरा गाँधी स्टेडियम में आयोजित यूखरिस्तीय बलिदान
में दिल्ली-आगरा को धर्माध्यक्षों दिये गये प्रवचन के बारे में। अगले सप्ताह हम जानकारी
प्राप्त करेंगे धार्मिक नेताओं को दिये गये संत पापा जोन पौल द्वितीय के संदेश के बारे
में।