गुजरात, 4 अप्रैल, 2011(उकान) गुजरात के चर्च नेताओं ने गाँधीजी के जीवन पर लिखी किताब
‘ग्रेट सोलः महात्मा गाँधी एंड हिज़ स्ट्रगल विथ इंडिया’ (महान् आत्माःमहात्मा गाँधी
और भारत के साथ उनका संघर्ष) की पाबन्दी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ‘धोखाधड़ी’
करार दिया है। महात्मा गाँधी की इस किताब के लेखक हैं पुलितज़र पुरस्कार प्राप्त
जोसेफ लेलिवेल्ड ।गुजरात के मुख्यमंत्री नरेद्र मोदी ने 30 मार्च को विधान सभा में इस
बात की जानकारी देते हुए बताया कि किताव में महात्मा गाँधी की छवि ‘विकृत और नीच’ दर्शायी
गयी है जिसे ‘कदापि बर्दाश्त नहीं’ किया जा सकता है। गुजरात के जेस्विट समाज सेवाकर्ता
और प्रशान्त नामक स्वयंसेवी संस्थान के निदेशक ने बताया कि इस प्रकार मनमाने ढंग से पाबन्दी
लगाने से अच्छा तो सरकार " निष्पक्ष मूल्यांकन " करती और उन बातों को चुनौती देती जिनसे
उन्हें आपत्ति थी। कैथोलिक इंफ़ॉरमेशन सर्विस सोसायटी के निदेशक वारगीस पौल ने कहा
है कि गाँधी जी के पोते तुषार गाँधी भी नहीं चाहते हैं कि इस किताब पर पाबन्दी लगायी
जाये। उकान समाचार ने बताया कि मोदी सरकार " पूर्वभावना से ग्रसित " जान पड़ती है।
बड़ोदरा के सेंटर फॉर कल्चर एंड डेवलोपमेंट संस्थान के निदेशक लैन्सी लोबो का कहना है
कि एक ऐसी किताब को जिसे लोगों ने पढ़ा भी नहीं है पर पाबन्दी के लिये सरकार " अत्यधिक
उत्साहित " है। उन्होंने कहा " हम सभी को गाँधी के व्यक्तित्व लगाव है पर उन्हें देवत्व
का दर्ज़ा देने का प्रयास अनुचित है। फादर लोबो ने कहा कि किताब के लेखन ने खुद ही
एक बयान में कहा कि उन्होंने गाँधी के ख़िलाफ कोई रंगभेदी टिप्पणी नहीं की है। अनुमानतः
मीडिया ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर छापा है।