पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात कर चुके सीरो मलंकारा रीति के धर्माध्यक्षों के लिए संत
पापा का संदेश
वाटिकन सिटी, 25 मार्च सन् 2011 (सेदोक, वी आर वर्ल्ड): भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षों
की "आद लिमीना विजिट" अर्थात् पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात केरल के धर्माध्यक्षों से
सोमवार को आरम्भ हुई जो 19 सितम्बर तक जारी रहेगी। पाँच वर्ष में एक बार काथलिक धर्माध्यक्ष
सार्वभौमिक कलीसिया के परमाध्यक्ष के साथ मुलाकात कर स्थानीय कलीसियाओं के बारे में उन्हें
जानकारी प्रदान करते तथा भावी प्रेरितिक योजनाओं के लिये मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। संत
पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात सम्पन्न कर चुके सीरो मलंकारा
रीति के धर्माध्यक्षों को 25 मार्च को वाटिकन में सामूहिक रूप से सम्बोधित किया। धर्माध्यक्षों
की ओर से मान्यवर बियाटिटयूड बासेलियोस क्लेमिस के हार्दिक अभिवादन और सम्बोधन के लिए
धन्यवाद देते हुए संत पापा ने सीरो मलंकारा रीति के सब पुरोहितों, धर्मसमाजियों और लोकधर्मियों
के आध्यात्मिक और भौतिक कल्याण की कामना की। उन्होंने कहा कि संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी
तथा सीरो मलंकारा चर्च के मध्य भ्रातृत्व और सामुदायिकता के बंधन को गहन बनाने का यह
विशेष अवसर है जिसका प्रसार वंदनीय जोन पौल द्वितीय ने सन 2005 में किया था। उन्होंने
धर्माध्यक्षों से कहा कि प्रेरितिक परम्परा जिसे वे जारी रखे हैं इसमें पूर्ण आध्यात्मिक
फलप्रदता का आनन्द वे पाते हैं जब सार्वभौमिक कलीसिया के साथ संयुक्त होकर जीवन जीया
जाता है। संत पापा ने कहा कि वैध विविधताओं को कायम रखते हुए भी येसु ख्रीस्त के
प्रति निष्ठा और अनुयायियों के मध्य एकता की येसु की इच्छा के प्रति उचित परवाह में सब
काथलिक धर्माध्यक्ष शामिल हैं। काथलिक कलीसिया चाहती है कि हर विशिष्ट चर्च या रीति की
परम्पराएँ पूर्ण रूप में रहें, वह समय और स्थान की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए
अपनी जीवन शैली का अनुकूलन करना चाहती है। हर पीढ़ी को अपनी क्षमताओं तथा ख्रीस्त के
शेष रहस्यमय शरीर के साथ सौहार्द के संगत में कलीसिया के सामने आनेवाली चुनौतियों का
सामना करना पड़ता है। संत पापा ने धर्माध्यक्षों से कहा कि वे संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी
के साथ सामुदायिकता को मजबूत बनाते हुए पुरोहितों तथा विश्वासियों को पूजनधर्मविधि तथा
परम्परा से मिली आध्यात्मिक विरासत की सराहना करने के लिए प्रोत्साहन दें। उन्होंने विश्वास
की पूँजी जो प्रेरितों और विश्वसियों के द्वारा वर्तमान पीढ़ी को सौंपी गयी है यह ईश्वर
की ओर से बहुमूल्य उपहार है। संत पापा ने आगे कहा कि भारत में ईसाईयत ने अपने इतिहास
और प्राचीन जड़ो के कारण संस्कृति और समाज में तथा धार्मिक और आध्यात्मिक अभिव्यक्तियों
में योगदान दिया है। सुसमाचार को जीने की दृढ़ता ही येसु के सम्पूर्ण शरीर तथा भारतीय
समाज के लिए और अधिक योगदान देगी जिसका लाभ सबको मिलेगा। संत पापा ने कामना की कि ईशवचन
का प्रचार तथा ईश्वर के प्रेम पर आधारित भ्रातृत्व का प्रसार करते हुए सब विश्वासी विकास
करें। विभिन्न स्थलों में पल्ली पुरोहित नहीं होने के कारण मेषपालीय सेवा और परस्पर समर्थन
नहीं दे पाने से उत्पन्न होनेवाली कठिनाईयों और चुनौतियों को देखते हुए संत पापा ने कहा
कि व्यापक सांस्कृतिक संदर्भ में ईसाईयों की सामाजिक वास्तविक स्थिति उन्हें सच में भ्रातृत्वमय
सहायता की रचना करने का अवसर देती है। प्रेरितों के जमाने से ही लघु ख्रीस्तीय समुदाय
कलीसिया के इतिहास में येसु की उपस्थिति का विशिष्ट साक्ष्य देते रहे हैं। संत पापा
ने कहा कि धर्म शिक्षा तथा विश्वास प्रशिक्षण के विभिन्न कार्य़क्रमों द्वारा धर्माध्यक्ष
ईसाई समुदाय के मध्य विश्वास के धर्मशिक्षक के रूप में अपने दायित्व का निर्वाह करते
हैं। धर्मशिक्षा पवित्र धर्मग्रंथ, परम्परा, पूजनधर्मविधि तथा कलीसिया के जीवन और शिक्षा
प्राधिकार पर आधारित हों। संत पापा ने विश्वास प्रशिक्षण के लिए चलाये जा रहे विभिन्न
कार्य़क्रमों पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए भारत के संरक्षक संत और महान प्रेरित
संत थोमस की मध्यस्थता की याचना करते हुए संत पापा ने अपनी प्र्रार्थना का आश्वासन दिया
तथा धर्माध्यक्षों और विश्वासिय़ो पर ईश्वरीय कृपा की कामना की।