वाटिकन सिटीः कलीसिया की दर्शनशास्त्रीय शिक्षा में सत्य पर सन्देह को हटाया जाना ज़रूरी,
नया वाटिकन दस्तावेज़
वाटिकन सिटी, 23 मार्च सन् 2011 (सी.एन.एस.): पुरोहिताभिषेक के लिये अध्ययनरत गुरुकुल
छात्रों के प्रशिक्षण में इस भ्रामक विचारधारा का मुकाबला किया जाना चाहिये के चिरकालीन
एवं वास्तविक सत्य जैसी कोई चीज़ अस्तित्व में नहीं है।
"दर्शन सम्बन्धी कलीसियाई
अध्ययन में सुधार" शीर्षक के अन्तर्गत काथलिक शिक्षा सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति के
अध्यक्ष कार्डिनल ज़ेनोन ग्रोखोलेवस्की ने मंगलवार को वाटिकन में एक नये दस्तावेज़ की
प्रकाशना की।
उन्होंने कहा कि नये दस्तावेज़ का जारी किया जाना इसलिये अनिवार्य
था क्योंकि बहुत से छात्र सत्य पर सांस्कृतिक सन्देह से प्रभावित हैं, अस्तु, दर्शन
शास्त्र विषय पर कलीसिया द्वारा मान्य स्नातक की डिगरी के अध्ययन को एक और वर्ष बढ़ा
दिया गया है। दस्तावेज़ के प्राक्कथन में कहा गया है कि "सत्य की अवधारणा" से सम्बन्धित
सांस्कृतिक समझ में बदलाव के कारण इस प्रकार के सुधार की आवश्यकता महसूस की गई।
दस्तावेज़
में कहा गया कि वस्तुतः, मानव बुद्धि की क्षमता में प्रायः यथार्थ एवं सार्वभौमिक सत्य
तक पहुँचने को रास्ते में अविश्वास को देखा गया है। उस सत्य तक पहुँचने में जो लोगों
को मार्गदर्शन प्रदान करने में सक्षम है। दस्तावेज़ में कहा गया कि लोगों को इस बात को
समझना होगा कि जब तक "सत्य" जैसी कोई चीज़ नहीं है तब तक प्रेम एवं यथार्थ उदारता का
कोई अस्तित्व नहीं हो सकता।
दर्शन शास्त्र का अध्ययन लोगों को मानव की तर्कणा
शक्ति के महत्व को समझने तथा सत्य की खोज में तर्कणा का सदुपयोग करने में मदद देता है
ताकि छात्र ईश शास्त्र के अध्ययन के लिये तैयार हो सकें तथा यह आलोक प्राप्त कर सकें
कि सत्य केवल वह नहीं है जिसे वे देख सकते एवं छू सकते हैं।