2011-03-14 20:20:05

पोप की नयी किताब में येसु का वास्तविक रूप प्रकाशित


वाटिकन सिटी, 14 मार्च, 2011 (ज़ेनित) संत पापा की नयी किताब जीज़स ऑफ नाजरेथ का दूसरा भाग " ऐतिहासिक " महत्त्व की किताब है जो दुनिया को इस बात के लिये मदद करेगी है कि वे येसु के चेहरे को पहचान सकें।
उक्त बातें वाटिकन प्रवक्ता फादर फेदेरिको लोमबारदी ने उस समय कहीं जब उन्होंने वाटिकन टेलेविज़न के साप्ताहिक कार्यक्रम ‘ऑक्तावा दियेस’ में ‘जीज़स ऑफ नाजरेथ’ भाग दोः पवित्र सप्ताह - येरूसालेम प्रवेश से पुनरुत्थान के बारे में टिप्पणी की। ‘जीज़स ऑफ नाज़रेथ’ का विमोचन वृहस्पतिवार 10 मार्च को रोम में किया गया।
वाटिकन प्रवक्ता ने संत पापा की किताब को ऐतिहासिक कहा " क्योंकि यह बाईबल की व्याख्या कर ‘एक नये युग की शुरुआत’ करता है। यह न सिर्फ कठोर आलोचनात्मक ऐतिहासिक विश्लेषण करता है पर विश्वास के पक्ष का भी विवेचन करता है।"
" विद्वान जोसेफ रतसिंगर तथा काथलिक कलीसिया के महाधर्मगुरु ने अपनी किताब में ईसाई विश्वास और परंपरा को बरकरार रखते हुए बहुत ही बारीकी से लोगों का मार्ग निर्देशन किया है। उनकी किताब विश्वास और ऐतिहासिक आलोचनात्मक संस्कृति के बीच नयी और जीवित संश्लेषण है। इसमें सुसमाचार का उद्धरण है और इसी के माध्यम से हम किताब को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।"
फादर लोमबारदी ने कहा कि " यह किताब ‘वार्ता के लिये’ लिखी गयी हैः इसमें येसु के व्यक्तित्व को ईश्वर की ओर से दिये गये एक जवाब के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो मानव अस्तित्व के सभी प्रश्नों – बुराई, पीड़ा और मृत्यु सहित अन्य सभी सवालों का उत्तर देता है।"
उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा उपहार है जो येसु के अर्थ को ही स्पष्ट करता है जिसे कोई भी व्यक्ति स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिये स्वतंत्र है। इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि येसु ने " दूसरों के लिये खून का बलिदान किया न कि किसी के विरुद्ध "।
फादर लोमबारदी ने कहा कि " संत पापा की यह किताब येसु के जीवन की मुख्य घटनाओं और हम कहें येसु के जीवन का सार ही प्रस्तुत किया गया है।"
इसके द्वारा संत पापा के दिल की इच्छा पूरी हो गयी है जिसमें उन्होंने अपनी "आध्यात्मिक यात्रा" के दरमियान येसु के चेहरे को खोजने का प्रयास किया है।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जो इस यात्रा में सहभागी होना चाहता है वह इसके लिये स्वतंत्र है।
जेस्विट फादर ने कहा कि " हम जानते हैं कि संत पापा को इस किताब को पूरी करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी पर उन्होंने तमाम व्यस्तताओं के बावजूद इसे पूरा कर दिया सचमुच यह हमारी खुशी के लिये दिया गया यह एक अनुपम उपहार है। "




















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