2011-03-08 11:45:58

मुम्बईः ऐतिहासिक फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायलय ने इच्छामृत्यु की याचिका को किया खारिज


नई दिल्ली, 8 मार्च सन् 2011 (एशिया न्यूज़): भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने, सात मार्च को, एक ऐतिहासिक फ़ैसले में अरूणा शानबाग़ के लिये, लेखक पिंकी विरानी द्वारा प्रस्तुत, इच्छा मृत्यु की याचिका को खारिज कर दिया है।

यौन दुराचार के बाद मुम्बई स्थित के.ई.एम. अस्पताल की नर्स, अरुणा रामचंद्र शानबाग, 37 सालों से अस्पताल में बेसुध पड़ी हैं।

लेखक विरानी की याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काट्जू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा कि देश में एक्टिव युथनेसिया गैरकानूनी है लेकिन विशेष परिस्थितियों में पैसिव युथनेसिया की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि अरुणा के मामले में तथ्य, परिस्थितिजन्य साक्ष्य, चिकित्सकीय सबूत और अन्य सामग्री बताते हैं कि उन्हें इच्छा मृत्यु की जरूरत नहीं है।

ग़ौरतलब है कि मरणासन्न रोगी जिनकी हालत में सुधार की कोई गुंजाइश न हो और सिर्फ जीवन रक्षा प्रणाली हटाने भर से उनकी मौत हो जाए "पैसिव युथनेसिया" वर्ग में आते हैं जबकि एक्टिव युथनेसिया में मरणासन्न रोगी को, इन्जेकशन आदि से, मरने में प्रत्यक्ष सहयोग दिया जाता है।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इच्छा मृत्यु पर अभी देश में कोई कानून नहीं है, इसलिए जब तक संसद कानून नहीं बनाती है उसका फैसला मान्य रहेगा।

के.ई.एम. अस्पताल के प्रवक्ता डॉ. संजय ओक ने अदालत के फ़ैसले का स्वागत किया और कहा कि अस्पताल के चिकित्सक, नर्सें एवं कर्मचारी सहर्ष उनकी देखरेख कर रहे हैं और आगे भी ऐसा करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। मुम्बई महाधर्मप्रान्त के जीवन समर्थक आयोग के सदस्य डॉ. पास्कल कारवाल्हो ने भी फ़ैसले का स्वागत किया और कहा कि न्यायकर्त्ताओं ने जीवन की संस्कृति के पक्ष में फ़ैसला दिया है। उन्होंने कहा कि भारत आध्यात्मिकता की जड़ों में मूलबद्ध है जहाँ मानव जीवन पवित्र माना जाता है।
 







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