कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन 8 मार्च, 2011 संत पापा जोन पौल द्वितीयः जीवन
व संदेश महिलाओं के लिये संदेश 1995
अतिसम्मानीय पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह धन्य
घोषित किये जायेंगे। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया है क्योंकि आज
से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर अपनी
ऐतिहासिक प्रेरितिक यात्रा की थी। उनकी धन्य घोषणा समारोह के अवसर पर रोम के संत
पेत्रुस महागिरजाघर प्रांगण में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियाँ अपनी चरमसीमा
पर है। आशा की जा रही है कि लाखों लोग इस समारोह का साक्ष्य देने के लिये उपस्थित होंगे।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं
के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिवा से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस
पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व
एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं। कलीसियाई
दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत
पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। यह भी स्मरण रहे कि सन् 1520 ईस्वी
में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिला को ग़ैरइतालवी संत पापा
बनने का गौरव प्राप्त हुआ। विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में
साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे
विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये।एक के बाद एक पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा
कहा। संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ
संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ
भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए। वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने
उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा
का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों
ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़
में खुल कर की है। संत पापा जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से
एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी,
स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के
ज्ञाता थे। आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों
से मिले और की 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके
आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया। सम्माननीय संत पापा जोन पौल द्वितीय ने अपने कार्यकाल
में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया। उनके संदेशों से समग्र विश्व
लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी परिवारिक मूल्य मजबूत हुए शांति तो
दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ। हमारा विश्वास है कि उनके
जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेगी। संत
पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ
वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों
को आप तक लगातार पहुँचाते रहेंगे। पिछले सप्ताह हमने जानकारी प्राप्त की संत पापा
जोन पौल द्वितीय की भारत यात्रा के पहले पड़ाव दिल्ली में दिया गया उनका संदेश के बारे
। आज 8 मार्च विश्व महिला दिवस के अवसर जानेंगे संत पापा जोन पौल द्वितीय के संदेश के
उस अंश को जिसे उन्होंने सन् 1995 ईस्वी में चीन के बीजिंग में आयोजित महिलाओं के चौथे
विश्व सम्मेलन के लिये दिया था। उन्होंने कहा था सबसे पहले मैं पिता ईश्वर को धन्यवाद
देना चाहता हूँ क्योंकि उन्होंने महिलाओं के लिये एक विशेष योजना बनायी है और उनके लिये
एक विशेष मिशन दिया है। मैं बिल्कुल ही स्पष्ट रूप से यह कहना चाहता हूँ कि प्रत्येक
महिला पूरी सृष्टि के जीवन का प्रतीक है। उन्होंने कहा था माताओ, आपको धन्यवाद क्योंकि
आपने मानव जीवन को सहर्ष अपने आप में आश्रय दिया। विवाहित महिलाओं को धन्यवाद क्योंकि
आपने प्रेमपूर्ण सेवा और जीवन के लिये अपने आपको समर्पित कर दिया है। पुत्रियो और बहनों
आप सबों को धन्यवाद क्योंकि आपके कारण परिवार में संवेदनशीलता अंतर्ज्ञान उदारता और
निष्ठा की भावना बढ़ती है। महिला श्रमिको, आप सबों को हमारा धन्यवाद क्योंकि पूरा
मानवसमाज सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, कलात्मक और राजनीतिक क्षेत्र में आपकी उपस्थिति
का अनुभव करता है। इस तरह से आपका योगदान उस संस्कृति को बढ़ावा देता है जिससे विवेक
और भावनायें एक हो सकें और उसके आधार पर एक ऐसी आर्थिक और राजनीतिक संरचना बने जिससे
पूरी दुनिया को इसका लाभ मिल सके। समर्पित महिलाओ, आप आज्ञाकारिता और वफादारी
के साथ, येसु की माता मरिया के जीवन का अनुसरण करते हुए पूरी दुनिया को इस बात के लिये
मदद करतीं हैं कि यह ईश्वर के साथ अपना संबंध घनिष्ठ बना सके। महिलाओ आप सबों को
धन्यवाद बस इसी सत्य के लिये कि आप महिलायें हैं आप अपनी नारित्व के कारण ही पूरी मानव
जाति को इस बात के लिये मदद देतीं हैं वह अपने रिश्ता ईमानदारी और सत्य पर आधारित करे।
मुझे मालूम है कि आप लोगों को सिर्फ़ धन्यवाद कहना काफी नहीं है। मैं आज इस बात को
स्वीकार करता हूँ कि इतिहास में नारियों की मर्यादा को न कभी पूर्ण रूप से स्वीकार किया
गया न ही उनके मर्यादा को पूर्ण सम्मान दिया गया। अधिकतर बार उन्हें समाज के हाशिये पर
ही रखा गया या उन्हें मात्र सेविका समझा गया । इसके लिये मैं आप सबों से क्षमाप्रार्थी
हूँ। आज मैं बताना चाहता हूँ येसु ने नारियों के साथ कैसा व्यवहार किया। उनके दिल में
नारियों के प्रति विशेष आदर और सम्मान की भावना थी। नारियों ने मानव के विकास में
पुरुषों की बराबरी का योगदान दिया है और कई बार उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में अधिक
योगदान दिया है। यह खेद की बात है कि समाज ने नारियों की बुद्धिमत्ता संवेदनशीलता
और कार्यकुशलता के बदले सिर्फ उनके सुन्दरता की याद की जाती रही है। आज नारियों के लिये
बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। सबसे पहले तो उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा
दिया जाना चाहिये। उनके लिये भी पुरुषों के समान ही मजदूरी, श्रमिक माताओं को सुरक्षा,
पारिवारिक अधिकारों की मान्यता और कैरियर में उन्नति की सुविधा दी जानी चाहिये जो कि
एक प्रजातांत्रिक राज्य के आम व्यक्ति को मिलना उचित और न्यायपूर्ण है। यह न सिर्फ़
एक न्याय की बात है पर यह समाज के विकास के लिये निहायत ज़रूरी है। समाज की कई समस्याओं
के समाधान में महिलाओं का योगदान अहम हो सकता है यदि इनमें उनके योगदानों को स्वीकार
किया जाये। विशेषकर के अवकाश के समय का उपयोग जीवन की गुणवत्ता, प्रवासी समस्या, समाज
सेवा, इच्छा मृत्यु, नशीली दवायें, स्वास्थ्य सेवा और पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के
समाधान में नारियों का योगदान अहम होगा और " प्रेम का सभ्यता " का उदय हो सकेगा। आज
विकास की उँचाई को विज्ञान और तकनीकि के विकास से मापा जाता है इससे नहीं कि नारियों
ने इसमें कितना योगदान दिया है। मैं शिक्षा के क्षेत्र में नारियों के योगदान की तारीफ़
करना चाहूँगा जो परिवार नर्सरी, स्कूल विश्वविद्यालय,समाज सेवा संस्थानों, पल्लियों,
संगठनों, और विभिन्न आन्दोलनों में अपना योगदान दिया है और इससे कमजोर और ज़रूरतमंदों
की सेवा की है। काथलिक कलीसिया माता मरिया को पूर्ण नारित्व की सर्वोच्च अभिव्यक्ति
मानती है। माता मरिया ने अपने को ईश्वर की दासी कहा। उन्होंने अपनी बुलाहट को स्वीकार
किया उसकी आज्ञा का पालन किया और ईश्वर और मानव की सेवा की। मेरी प्रार्थना है कि लोग
नारियों की महानता और बलिदान की पूर्ण सत्यता को जानें, उनकी बुद्धिमत्ता से अवगत हों
और आम महिलाओं की साधारण सेवा को भी जानें जो अपने छोटे कार्यों को ईमानदारी से करने
के द्वारा समाज की महान सेवा कर रहे हैं। ईश्वर नारियों की रक्षा करे माता मरिया उनकी
देखभाल करे ताकि वे मानवता की सेवा और शांति फैलाने के अपने मिशन को बखूबी निभा सकें।