वाटिकन सिटीः डिजिटल भाषा में ईश्वर के बारे में कैसे बतायें? कलीसिया के समक्ष प्रस्तुत
चुनौती
वाटिकन सिटी, पहली मार्च सन् 2011 (सेदोक): डिजिटल भाषा में ईश्वर के बारे में कैसे बतायें?
कलीसिया के समक्ष प्रस्तुत एक महान चुनौती है।
रोम में 28 फरवरी से तीन मार्च
तक जारी सम्प्रेषण माध्यम सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति की पूर्ण कालिक सभा को प्रेषित
सन्देश में सन्त पापा ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि आज डिजिटल भाषा के सागर में डूबे
आधुनिक जगत के मानव के साथ ईश राज्य के विषय में बात करने के लिये अर्थपूर्ण प्रतीकों
की खोज एक महान चुनौती है।
चीन के महान मिशनरी, इटली के येसु धर्म समाजी पुरोहित
स्वर्गीय फादर मातेओ रिच्ची के आदर्शों पर चलने का सन्त पापा ने प्रस्ताव किया और कहा
कि फादर रिच्ची ने "ख्रीस्त के सन्देश के प्रसार में सदैव मानव व्यक्ति, उसकी संस्कृति,
उसके दर्शन, उसकी भाषा एवं मूल्यों का ख्याल रखा तथा उसकी परम्पराओं के सकारात्मक तत्वों
को समेट कर, ख्रीस्त के सत्य एवं उनकी प्रज्ञा से उन्हें अनुप्राणित किया।"
भाषा
पर चिन्तन प्रस्तुत करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा, "भाषा को, संकल्पनाओं
रहित, एक साधारण, अस्थायी एवं विचारों के आदान प्रदान के अन्तरपरिवर्तनीय अस्त्र मात्र
रूप में नहीं देखा जाये अपितु उसे एक सजीव एवं धड़कनेवाला तत्व माना जाये क्योंकि उसके
द्वारा मानव के अन्तरमन में विचार, चिन्ताएँ और उत्कंठाएँ उत्पन्न होती तथा मुद्राओं,
प्रतीकों एवं वचनों में अभिव्यक्त होती हैं।"
सन्त पापा ने कहा कि डिजिटल भाषा
सम्प्रेषण माध्यम के क्षेत्र में आधुनिक विश्व की एक महान उपलब्धि है तथापि इसके ख़तरों
के प्रति भी सावधान रहना आवश्यक है।
उन्होंने कहा, "जब लोग सूचनाओं का आदान प्रदान
करते तब वे अपने आप को तथा अपने जगत को अन्यों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। वे उन
सब तथ्यों के साक्षी बन जाते हैं जो उनके अस्तित्व को अर्थ प्रदान करते हैं। तथापि यह
नहीं भुलाया जाना चाहिये कि इसमें आन्तरिकता के गुम हो जाने, सम्बन्धों के सतहीपन, भावात्मक
पलायनवाद और साथ ही सत्य को स्थापित करने के बजाय अपने मतों की व्यापकता को बनाये रखने
का ख़तरा सदैव बना रहता है। इसीलिये नवीन तकनीकियों द्वारा विकसित भाषाओं पर चिन्तन करने
की नितान्त आवश्यकता है।"