सुप्रीम कोर्ट के अटोर्नी के रवैये से ईसाई और मुसलमान असंतुष्ट
नई दिल्ली, 26 फरवरी,2011(कैथन्यूज़) सीबीसीआई के अन्तर्गत आदिवासियों और दलितों के लिये
बनी आयोग के सचिव फादर कोसमोन अरोक्यराज ने कहा कि जेनरल गुलाम एस्साजी वाहनवाती ने केन्द्र
सरकार को कथित रूप से सलाह दी है कि वह आदिवासियों और दलित ईसाइयों को विशेषाधिकार देने
में जल्दबाजी न करें। फादर आरोक्यराज ने कहा कि अटोर्नी की ऐसी सलाह से पूरे दलित
ईसाई समुदाय आहत है। उन्होंने बताया कि अटोर्नी वाहनवाती ने केद्र सरकार की राजनीतिक
मामलों की कैबिनेट समिति से कहा कि दलित मुद्दा कई अन्य कानूनी मामलों से जुड़ा हुआ है
इस लिये इस पर तुरन्त कोई निर्णय न ले। ज्ञात हो कि दलित ईसाइयों और मुसलमानों की
यह माँग वर्षों से सरकार के पास लंबित है। वे चाहते हैं कि सरकार उनकी बातें सुनें ताकि
उनका सामाजिक और आर्थिक विकास हो सके। ग़ौरतलब है कि है भारत के ईसाइयों की कुल आबादी
की 70 प्रतिशत जनता दलितों की है। भारत के संविधान के अनुसार दलितों के लिये विधान सभा,
नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में विशेष कोटा का प्रावधान हैं। सच्चाई तो यह है कि
यह सिर्फ बौद्धों हिन्दुओं और सिक्ख दलितों के लिये लागू किया गया है। ईसाई और मुसलमान
दलितों को इस आधार पर इन अधिकारों से वंचित रखा गया है कि उनका धर्म जाति प्रथा को मान्यता
नहीं देती है। ईसाइयों की शिकायत है कि यह उनके प्रति घोर अन्याय है जो संविधान में
दिये गये समानता के अधिकार को उल्लंघन है। फादर अरोक्याराज ने कहा कि उन्हें इस बात
का गहरा दुःख है कि सरकार इस संवैधानिक गलती को सुधारने में इतनी देर क्यों लगी रही
है। यह शर्म की बात है कि संविधान में दिये गये अधिकार पाने के लिये अपील करते हुए 60
साल हो गये। एक दलित ईसाई फ्रैंकलिन कैसर ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को चाहिये
कि वह इस संबंध में शीघ्र निर्णय ले।अटोर्नी को लिखने का अधिकार है पर इस मुद्दे पर निर्णय
करने का उनको नहीं है। अखिल भारतीय काथलिक कौंसिल ने भी अटोर्नी जेनरल की सलाह का
विरोध किया है। कौंसिल ने कहा कि दलित ईसाई और मुसलमानों को उनका अधिकार तुरन्त दिया
जाना चाहियए।