संत पापा जोन पौल द्वितीय दुःखियों और रोगियों के मित्र
वाटिकन सिटी, 21 फरवरी, 2011(ज़ेनित) वाटिकन प्रवक्ता जेस्विट फादर फेदेरिको लोमबार्दी
ने मानना है कि 1 मई को संत पापा जोन पौल द्वितीय की धन्य घोषणा दुःख और बीमारी को ठीक
वही ख्रीस्तीय समझदारी और अर्थ प्रदान करेगा जैसा कि स्वयं संत पापा जोन पौल द्वितीय
ने अपनी ‘पारकिनसन’ की बीमारी को स्वीकार किया था।
उक्त बातें फादर लोमबारदी
ने उस समय कहीं जब उन्होंने वाटिकन टेलेविज़न के साप्ताहिक कार्यक्रम " ऑक्तावा दियेस
" में 11 फरवरी को लूर्द की माता मरिया के पर्वोत्सव और रोगी दिवस पर संत पापा जोन पौल
द्वितीय का स्मरण किया।
वाटिकन प्रवक्ता ने कहा कि " बीमारी मानव जीवन का ऐसा
अभिन्न अंग है जो विश्वासपूर्ण जीवन के साथ भी जुड़ा हुआ है। यह प्रत्येक मानव के तन,
मन, दिल अपने करीबी मित्रों और प्रियजनों को सीधे रूप से प्रभावित करता है। यह व्यक्ति
की आत्मा को छूता है और प्रेम, आशा और विश्वास पर ही सीधा प्रहार करता है। "
उन्होंने
कहा कि " येसु मसीह के दिल में रोगियों के लिये विशेष जगह थी और इसीलिये उन्होंने अपने
दुःखभोग और मृत्यु के द्वारा विशेष रूप से सांत्वना के शब्द कहे। कलीसिया को भी चाहिये
की वह रोगियों के प्रति ऐसा ही सहानुभूतिपूर्ण वर्ताव करे। इतना ही नहीं कलीसिया को चाहिये
कि यह मानव समुदाय में हर दृष्टिकोण से प्रेम और सहयोग की भावना जगाये।"
फादर
लोमबारदी ने संत पापा जोन पौल द्वितीय को दुःखों को अदम्य साहस और विश्वास के साथ ग्रहण
करने वाला व्यक्ति कहा। अपने क्रूस को ईश्वर की इच्छा मानकर ढोने के कारण येसु भी दुःखियों
और रोगियों के मित्र और मध्यस्थ बन गये हैं।
वाटिकन प्रवक्ता ने कहा कि " समर्पण
आराम से बड़ा है। "
उन्होंने कहा कि " संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें कहा करते हैं
कि सच्ची मानवता की माप व्यक्ति के दुःखों और दुःखियों के प्रति दिखाने वाले मनोभाव से
परलक्षित होती है।" यह तथ्य व्यक्ति और समाज दोनों के लिये समान रूप से लागू होती
है। समाज दुःखितों को स्वीकार न करे और उन्हें मदद न करे या उनके प्रति ‘सह अनुभूति’
न रख पाये तो ऐसा समाज क्रूर और अमानुषिक है (स्पे साल्वी, 38)। "
फादर लोमबारदी
ने कहा कि " दुःख प्रेम की भावना को जगाता है।" बिना दुःख के हम प्रेम की गहराई को नहीं
जान सकते। आज ज़रूरत है इसे समझने और इसके अनुसार जीने की ताकि मानवता बढ़े।