2011-02-11 17:53:12

संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें के विशेष प्रतिनिधि कार्डिनल कोरमक मरफी ओकोनेर की 10 दिवसीय भारत यात्रा का समापन


स्वर्गीय संत पापा जोन पौल द्वितीय की प्रथम भारत यात्रा की रजत जयंती समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें के विशेष प्रतिनिधि कार्डिनल कोरमक मरफी ओकोनेर ने अपनी 10 दिवसीय यात्रा का 10 फरवरी को मुंबई में समापन किया। संत पापा ने अपने विशेष दूत से कहा था कि भारत में 25 साल पहले सम्पन्न पोप की प्रेरितिक तीर्थयात्रा की उपल्बधियों का समारोह मनाया जाये तथा निर्धनों और समाज के सबसे अधिक वंचित तबकों की सहायता के लिए भारत में कलीसिया द्वारा किये जानेवाले मेषपालीय प्रेरितिक कार्य़ो में उसे सुदृढ़ बनाया जाये।

भारत यात्रा के क्रम में कार्डिनल ओकोनेर ने नई दिल्ली, राँची, कोलकाता और मुम्बई का दौरा किया तथा अनेक कार्य़क्रमों में शामिल हुए। उन्होंने नई दिल्ली में भारत की राष्ट्रपति के साथ मुलाकात किया तथा महात्मा गाँधी की समाधि की भेंट की। उन्होंने राँची में आदिवासी समुदाय के मध्य कलीसिया द्वारा किये गये कार्य़ों पर आयोजित विचारगोष्ठी में भाग लिया, कोलकाता में मिशनरी औफ चारिटी के सदस्यों से मिले तथा मुम्बई में युवाओं के साथ मुलाकात की और पोप जोन पौल द्वितीय की एक मूर्ति को आशीष दिया।

कार्डिनल मरफी ने भारत में अपनी यात्रा के संस्मरण तथा पोप जोन पौल द्वितीय की भारत यात्रा के दौरान छोड़ी गयी विरासत के बारे में कहा कि भारत में कलीसिया बहुत लघु समुदाय है लेकिन पोप जोन पौल द्वितीय के भारत दर्शन के बाद यह आत्मविश्वास में बढ़ी है। अतिविशिष्ठ भारतीय संस्कृति में कलीसिया में बहुत सांस्कृतिकरण हुआ है लेकिन इसकी अपनी विशेष आवाज रही है तथा कलीसिया के विचारों को महत्व दिया जाता है। उन्होंने कहा कि उन्हें, कार्डिनल ग्रेशियस और भारत में वाटिकन के राजदूत को मुम्बई में हिन्दु तथा मुसलमान नेताओं के साथ एक बैठक में शामिल होने का निमंत्रण मिला था जिसमें संवाद की सीमाओं, संवाद करने की उपयोगिता, नैतिक मूल्यों में एक साथ मिलकर काम करने, परिवार, सार्वजनिक जीवन में धर्म की भूमिका जैसे विषयों पर विचार विमर्श किया गया।

कार्डिनल मरफी ने कहा कि अनेक लोग काथलिक बनना चाहते हैं लेकिन इस संवेदनशील मुददे को धर्माध्यक्षगण बहुत ही सावधानी और संवेदनशील होकर देख रहे हैं। कार्डिनल ग्रेशियस कि चिंता है कि जो काथलिक बनना चाहते हैं उन्हें बहुत लम्बी अवधि तक लगभग एक से तीन साल तक धर्मशिक्षा सीखनी पड़ती है ताकि काथलिक चर्च पर आरोप नहीं लगाया जा सके, या सवाल उत्पन्न नहीं हो कि वह बलात या किसी अन्य रूप से धर्म् परिवर्तन करा रही है।

कार्डिनल मरफी ने कहा कि कोलकाता में अनाथ और परित्यक्त बच्चों को दी जा रही सेवा और सहायता को देखकर वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि भारत में धर्मसमाजी और समर्पित जीवन जीनेवालों की संख्या बहुत बढ़ी है और यह खुशी की बात है।








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