ईशशास्त्रीय संवाद के लिए गठित काथलिक कलीसिया और आर्थोडोक्स पूर्वी कलीसियाओं की संयुक्त
अंतरराष्ट्रीय समिति के सदस्यों के लिए संत पापा का संदेश
संत पापा बेनेडिकेट 16 वें ने ईशशास्त्रीय संवाद के लिए गठित काथलिक कलीसिया और आर्थोडोक्स
पूर्वी कलीसियाओं की संयुक्त अंतरराष्ट्रीय समिति के 30 सदस्यों को शुक्रवार को वाटिकन
में सम्बोधित किया। उन्होंने पूर्वी आर्थोडोक्स कलीसियाओं के अधिकारियों का हार्दिक
अभिवादन करते हुए कहा कि संयुक्त समिति द्वारा सन 2003 से आरम्भ किये गये कार्यों और
अब तक मिली उपलब्धियों पर वे प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। सन 2003 से 2009 की अवधि में
संवाद के पहले चरण में कलीसिया की प्रकृति, संविधान और मिशन के बारे में सामान्य दस्तावेज
तैयार किये गये। दस्तावेजों में बुनियादी कलीसियाई सिद्धान्तों के पहलूओं को रेखांकित
किया गया जिनपर संवाद के लिए अगले चरणों में चिंतन किया जाना है। संत पापा ने कहा
कि लगभग 15 सौ वर्षों के विभाजन के बाद कलीसिया की सांस्कारिक प्रकृति, पुरोहिताई सेवा
में प्रेरितिक क्रम, सुसमाचार और प्रभु येसु का साक्ष्य देने की गहन जरूरत जैसे मुददों
पर सहमति पाने के लिए हम कृतज्ञ बनें। दूसरे चरण में समिति ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
में उन उपायों और तरीकों पर चिंतन किया जिसमें कलीसियाओं ने विभिन्न सदियों में सामुदायिकता
को अभिव्यक्त किया। रोम में 24 से 28 जनवरी तक सम्पन्न संयुक्त अंतरराष्ट्रीय समिति की
बैठक के दौरान सदस्यों ने पाँचवी सदी तक कलीसियाओं के मध्य विद्यमान सामुदायिकता और संवाद
के विषय पर तथा आरम्भिक कलीसिया में मठवाद की भूमिका पर अध्ययन किया। संत पापा ने
यह कामना की कि ईशशास्त्रीय चिंतन से सब कलीसियाएँ एक दूसरे को गहन रूप से समझते हुए
पूर्ण एकता के निर्णायक यात्रा में बढ़ती रहेंगी। समिति के अनेक सदस्य उन क्षेत्रों से
आते हैं जहाँ ईसाईयों को वयक्तिगत और सामुदायिक रूप से अनेक कठिनाईयों और उत्पीड़नों
को सहना पड़ता है जो हम सबके लिए गहन चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि सब कलीसियाओं
में येसु का साहसपूर्ण साक्ष्य देनेवाले शहीदों और संतों का उदाहरण ईसाई समुदायों को
बल प्रदान करे तथा सब ईसाई परस्पर स्वीकृति और भरोसे की भावना में एक साथ मिलकर शांति
और न्याय के लिए काम करें।