2011-01-18 19:30:12

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 21
14 दिसंबर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स - अन्तर कलीसियाई वार्ता जारी


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी थी जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना गया । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया गया था । काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के बारे में हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठे मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘अंतरकलीसियाई वार्ता के बारे में।


80. अन्तरकलीसियाई एकता का एक महत्त्वपूर्ण पहलु है - वार्ता, जिसे आपसी संबंधों में एक विशेष स्थान दिया जाना चाहिये ताकि आपसी संशयों को दूर किया जा सके। वार्तालाप से धर्मिक मूल्यों की रक्षा संभव हो पायेगी और इससे ऐसे कार्ययोजनाओं को मूर्त्त रूप दिया जा सकेगा जिससे समाज को लाभ हो। आपसी बातचीत से विभिन्न समुदायों के बीच समझदारी और विश्वास की भावना बढ़ेगी लोगों का जीवन स्तर बेहतर हो पायेगा। यहाँ इस बात को भी बताया जाना उचित होगा कि हमारा इतिहास ग़लतफमियों का रहा है इसलिये यह उचित है कि उन दुःखद यादों से हम उबरें, हम पूर्वाग्रहों से मुक्ति प्राप्त करें और उन सामुदायिक कार्यों पर बल दें जिससे आपसी प्रेम बढ़े और एकता मजबूत हो।
81. यहाँ इस बात पर बल देना अनिवार्य है कि आपसी मतभेदों को दूर करने और पूर्वाग्रहों से मुक्ति पाने के कार्य में सभी कलीसिया के सदस्यों की भागीदारी आवश्यक है। लोगों को इस बात के लिये प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये कि वे अपने-अपने समुदायों में इस उन बातों का अनुभव करें जिन्हें कलीसिया के लोग साधारणतः अनुभव करते हैं। उदाहरण के लिये प्रत्येक समुदाय उन अवसरों से गुजरते हैं जब व्यक्ति दुःख झेल रहा हो या जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं व्यक्ति उत्सव मनाते हों। ऐसे समय में हम दूसरों के साथ वैसा ही वर्ताव करें जैसा कि हम चाहते हैं कि हमारे साथ करें। समुदाय के क्रियाकलाप के बारे में बातें करते हुए हम इस बात विशेष ध्यान दे सकते हैं कि लोग अपने समुदाय में पापस्वीकार संस्कार ग्रहण करें। इसके साथ ही लोगों को इस बात के लिये भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये कि वे यूखरिस्तीय समारोह में हिस्सा लें और कलीसिया के नियमों के अनुसार ही रोगियों के संस्कार भी ग्रहण करें।
82. आपसी संबंध मजबूत करने के साथ ही हम इस बात को बताया जाना चाहिये कि किन किन क्रियाकलापों से कलीसिया अन्तरधार्मिक भावना मजबूतहो सकती है। इस संबंध में सबसे बड़ी बात कि विभिन्न कलीसिया के अधिकारी आपस में ताल-मेल बनायें एक साथ प्रार्थना करें एक साथ योजनायें बनायें और धर्मबंधुओं और प्रशिक्षुओं संस्थाओं और विभिन्न दलों को इस बात के लिये प्रोत्साहन दें कि एक ठोस कार्ययोजना के तहत् वे आपसी सहयोग कर सकें। आपसी सहयोग के अंतर्गत इस बात को ध्यान दिया जाये कि जब मिश्रित विवाह (अर्थात् जब वर-वधु अगल-अलग कलीसियों के हों) जैसे अवसर आये या किसी को ज़रूरतमंद व्यक्ति को सहायता देने की बात आये तो ऐसे समय में उचित सहयोग करना चाहिये। अन्तर कलीसियाई वार्तालाप के दो महत्वपूर्ण फल सामने आये हैं पहला तो ख्रीस्तमस और पास्का त्योहार एक साथ मनाया जाने लगा है और दूसरा की पवित्र भूमि येरूसालेम की देखरेख संयुक्त रूप से हो रहा है। पवित्र भूमि येरूसालेम की देखरेख आपसी प्रेम और सम्मान से किये जाना जाना अन्य कलीसियाओं तथा विश्व के लोगों के लिये एक बहुत ही अच्छा नमूना है।विदित हो कि जेरूसालेम की पावन भूमि की देख-देख का दायित्व दो ऑर्थोडॉक्स कलीसियाओं को सौंपा गया है और दोनों ने इसे बखूबी निभाया है।
इसके साथ हम उन बातों की भी चर्चा कर सकते हैं कि जो अंतरकलीसियाई एकता और वार्ता को बढ़ावा देते हैं। वे हैं ईशशास्त्रीय वार्ता, बाईबल का अध्ययन, धर्मशिक्षा और विभिन्न प्रकार के सेमिनारों अधिवेशनों और चर्च के इतिहास की शिक्षा द्वारा एक ऐसी परंपर का विस्तार करना जिससे लोग अंतरकलीसियाई एकता के महत्व को समझ सकें और अपना योगदान सकें।
अंत में इस बात पर भी बल देना उचित होगा कि इस्राएल की मीडिया को भी प्रभावित करना ताकि यह भी ईसाई विषयों के प्रति उत्सुक रहे। इब्रानी भाषा के कार्यक्रम को ईसाई मीडिया में शामिल नहीं किया जाता रहा है। इसलिये वे ईसाई शिक्षा से कटे से रह जाते हैं। अतः इस बात की जरूरत है कि इब्रानी भाषी ईसाइयों की धार्मिक शिक्षा पर व विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही अन्य अरबी भाषाओं में कलीसिया के कलीसियाई शिक्षा को उपलब्ध करा देना चाहिये।
83. ईसाइयों के बीच के आपसी रिश्तों को मजूबत करने के अलावा इस बात पर भी बल देना चाहिये जो लोग ईसाई नहीं हैं उनके साथ भी हमारा संबंध सौहार्दपूर्ण होना चाहिये। ईसाई समुदाय को इस बात पर भी को जोर देना चाहिये कि ईसाइयों को बीच जो गलतफमियाँ हैं उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिये ताकि प्रेम और एकता का माहौल बना रहे और सभी ख्रीस्तीयो का ध्यान उसी ईश्वर पर बनी रहे जो सभी जीवों का श्रोत है ।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अन्तर्गत आज में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित अन्तरकलीसियाई वार्ता के बारे में। अगले सप्ताह हम सुनेंगे ईसाइयों का यहूदियों के साथ संबंध के बारे में








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