2011-01-10 19:28:44

धार्मिक स्वतंत्रता के पूर्ण सम्मान से ही स्थायी और सच्ची शांति


वाटिकन सिटी, 10 जनवरी, 2011(सेदोक, वीआर) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा है कि " राजनीतिक एवं धार्मिक नेता और प्रत्येक आम व्यक्ति यह संकल्प करे कि वह धार्मिक स्वतंत्रता का पूर्ण सम्मान करेगा ताकि स्थायी और सच्ची शांति कायम हो सके।"
संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने वाटिकन में 10 जनवरी, सोमवार को 11 बजे प्रातः विश्व के राजनयिकों को संबोधित किया।
संत पापा ने कहा कि " मानव जो सत्य, भलाई, अच्छाई और पूर्ण जीवन की तलाश जाने या अनजाने में करते हैं उसे ईश्वर के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।" ईश्वर की खोज मनुष्य से इतना संलग्न है कि यह सहज ही कहा जा सकता है कि मानव धार्मिक प्राणी है।"
संत पापा ने कहा कि इसी लिये मैंने अपने शांति संदेश में कहा था कि " धार्मिक स्वतंत्रता ही शांति का वास्तविक पथ है। शांति की प्राप्त तब ही हो सकती है जब मानव मुक्त मन दिल से और ईश्वर और मानव की सेवा करते हुए ईश्वर की खोज करे।"
" धार्मिक स्वतंत्रता व्यक्ति का प्रथम भूलभूत अधिकार सिर्फ़ इसलिये नहीं है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से सबसे पहले इसकी पहचान की गयी वरन् इसलिये भी क्योंकि यह मानव के अस्तित्व और सृष्टिकर्त्ता के साथ उसके संबंध से संयुक्त है।"


ईराक की चर्चा करते हुए संत पापा ने वहाँ के नेताओं और मुसलमानों से अपील की है कि " वे अपने ईसाई नागरिकों को पूरी सुरक्षा में जीने दें ताकि वे एक पूर्ण नागरिक के रूप में राष्ट्र के लिये अपना योगदान दे सकें।"
मिश्र के नेताओं से उन्होंने फिर से अपील कि वे कोई ठोस कदम उठायें ताकि अल्पसंख्यक ईसाई स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें। संत पापा ने कहा कि " मिश्र देश के ईसाई भी मिश्र के ही आदि, सच्चे और वफ़ादार नागरिक हैं अतः उन्हें भी नागरिकों के अधिकार, अंतःकरण की स्वतंत्रता, उपासना, शिक्षा और मीडिया के प्रयोग की समान स्वतंत्रता होनी चाहिये।"
पोप ने कहा कि लोगों को विभिन्न अंकुशों के साथ दिये उपासना की स्वतंत्रता को धार्मिक स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि अरब देशों में रहने वाले ईसाई प्रवासियों की देखभाल करने के लिये मेषपालीय संरचनायें स्थापित की जा सकेंगी।
पोप ने पाकिस्तान के ईशनिन्दा कानून के बारे में कहा कि " देश के नेताओं को चाहिये कि वे इसे निरस्त करने के ठोस कदम उठायें क्योंकि इसके बहाने अल्पसंख्यकों पर अन्याय और हिंसा हो रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में जहाँ की परंपरा धार्मिक सद्भावना की रही है इस बात को बढ़ावा दिया जाये कि व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति के धर्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करे, न कि दूसरे धर्मावलंबियों पर होने वाले हिंसा और अत्याचार को बरदाश्त करे।
संत पापा ने कहा कि पश्चिमी देशों में लोग अनेकता में एकता और सहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं पर धर्म को दरकिनार करते जा रहे हैं। यूरोप के कुछ देशों में गर्भपात कराने की स्वतंत्रता से जीवन का अधिकार खतरे में पड़ गया है।


कुछ अन्य देशों में दूसरों को धार्मिक सम्मान देने के बहाने धार्मिक प्रतीकों और त्योहारों को हटाने की माँग से भी लोग धर्म से कटते जा रहे हैं।
संत पापा ने कहा कि " धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ यह भी है कि धार्मिक समुदाय अपने सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक क्रियाकलाप स्वतंत्रतापूर्वक कर सकें।"
पोप ने कहा कि वे इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं कि यूरोप के कई स्कूल ‘कमपलसरी सेक्स एडूकेशन’ को बढ़ावा दें और जो परिवारों की धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध हो।
संत पापा ने कहा कि वाटिकन का विभिन्न राष्ट्रों के साथ वार्ता और संधि का यह भी मतलब रहता है कि उन राष्ट्रों में काथलिकों को धार्मिक स्वतंत्रता मिले। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि " धर्म कोई समस्या उत्पन्न नहीं करता न ही किसी प्रकार का टकराव या कलह की स्थिति उत्पन्न करता है।"
संत पापा ने राजनयिकों को आमंत्रित करते हुए कहा कि " आज हम यह न भूलें कि धर्मों ने मानव सभ्यता के विकास में अपना विशेष योग दान दिया है। "
धन्य मदर तेरेसा के विश्वास का उदाहरण आज हमारे सामने है। उन्होंने समाज की सेवा में जिस तरह खुद को समर्पित किया इसकी प्रेरणा निश्चय ही उनका दृढ़ काथलिक विश्वास ही रहा है।
संत पापा ने अपने संबोधन क अंत में द्वितीय वाटिकन की महासभा के एक दस्तावेज़ ‘दिगनीतातिस ह्रूमानिस’ की बातों को याद दिलाते हुए कहा कि " हम शांति और न्याय का आनन्द उठायें जो ईश्वर और उसकी इच्छा के प्रति वफ़ादार होने से मिलती है।"















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