नई दिल्ली, 30 दिसंबर, 2010 (एशियान्यूज़) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का यह विचार कि
धार्मिक स्वतंत्रता ही शांति का मार्ग है बिल्कुल सही है। उक्त बात 2010 के वेईमर ह्यूमन
राइटस अवार्ड विजेता रघुवंशी ने उस समय कहा जब उन्होंने संत पापा के धार्मिक स्वतंत्रता
के विचारों पर अपनी टिप्पणी की। विजीलेंस कमिटी ऑन ह्यमन राइटस के निदेशक लेनिन
रघुवंशी ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान नहीं किया जाना अर्थात् फासीवाद
को आधार देना है। एशियान्यूज़ के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि यदि समाज चाहती
है कि शांति कायम रहे तो उसे चाहिये कि वह धार्मिक स्वतंत्रता अंतःकरण की स्वतंत्रता
प्रदान करे। जहाँ भी धार्मिक स्वतंत्रता का अभाव होगा वहाँ असिष्णुता, दुश्मनी और
तनाव होंगे ही। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है धर्म के मामले में
राज्य हस्तक्षेप न करे साथ ही राज्य लोगों के अंतःकरण की स्वतंत्रता दे। उन्होंने
कहा कि आज इस बात की आवश्यकता है कि विश्व के सभी प्रजातांत्रिक देश इस बात की गारंटी
दें कि लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हो। प्रजातंत्र की सच्ची प्रगति का अर्थ
है शांतिपूर्ण और सहिष्णु समाज का निर्माण। रघुवंशी ने कहा कि जिस समाज में धर्म या भाषा
गत अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता धार्मिक रीति रिवाजों की मुक्त अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता हो तो ऐसा समाज का वातावरण सौहार्दपूर्ण और संगठित होगा।उन्होंने कहा भारत
में हिन्दु फासीवादी ताकतें हिन्दु धर्म का दुरुपयोग राजनीतिक लाभ के लिये करते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत के कई राज्यों की स्थिति आज हिन्दुत्व के नाम पर राजनीतिक साम्प्रदायिकतावाद
ही नहीं राज्य फासीवाद की बन गयी है। आरएसएस एक फासिस्ट ताकत है जिसकी स्थापना सन्
1925 ईस्वी में गुरु गोलवालकर के द्वारा हुई थी जो हिटलर और मूसोलिनी के बहुत सम्मान
देते थे। वे चाहते थे कि भारत पूर्ण रूप से हिन्दु राष्ट्र बने और मुसलिमों को द्वितीय
दर्जे का भारतीय मानते थे। सन् 2002 में गुजरात में हुई ह्त्यायें और सन् 2008 में
उड़ीसा के कंधमाल में हुए हत्यायें इसी मानसिकता का दुष्परिणाम था। मानवाधिकार कार्यकर्ता
रघुवीर ने कहा कि आज इस बात की ज़रूरत है कि विश्व के नेता संत पापा की बात को गंभीरतापूर्वक
लें कि धार्मिक स्वतंत्रता ही शांति कायम करने का रास्ता है और इसी से शांतिपूर्ण विश्व
का निर्माण संभव हो पायेगा।