2010-12-28 12:46:22

भारतः सामाजिक कार्यकर्त्ता के आजीवन कारावास की व्यापक निन्दा


भारत की ख्रीस्तीय कलीसियाएँ सामाजिक कार्यकर्त्ता, बिनायक सेन को दी गई आजीवन कारावास की सज़ा के विरुद्ध हो रहे देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गयी हैं।

बिनायक सेन एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, मानवाधिकार समर्थक एवं बालचिकित्सक हैं जो विगत तीस वर्षों से छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच चिकित्सा सेवा अर्पित करते रहे हैं। उनकी समर्पित सेवा के लिये डॉ. सेन को कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।

24 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ की एक निचली अदालत ने डॉ. सेन को राजद्रोह की साजिश का दोषी बताकर उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। सेन पर छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादी विद्रोहियों का साथ देने का आरोप लगाया गया था। माओवादियों ने छत्तीसगढ़ में कई पुलिस एवं अर्द्धसैन्य कर्मियों की हत्या की है।

निचली अदालत के फैसले का खण्डण सम्पूर्ण भारत एवं विश्व के कई दलों ने किया है। 27 दिसम्बर को नई दिल्ली में विद्यार्थियों, शिक्षाविदों एवं सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने बड़ी संख्या में एकत्र होकर सेन को दी गई सज़ा का विरोध किया। उनका कहना है कि सेन निर्दोष हैं तथा उनपर चलाया गया मुकद्दमा राजनैतिक है।

अन्तरराष्ट्रीय क्षमादान आयोग एमनेस्टी इन्टरनेशनल ने सेन को अन्तःकरण के क़ैदी निरूपित किया तथा इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि सेन के विरुद्ध दिये गये फैसले में, अन्तरराष्ट्रीय न्यायिक जाँच के मापदण्डों, का उल्लंघन हुआ है।

भारत की प्रॉटेस्टेण्ट एवं ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीय कलीसियाओं की राष्ट्रीय समिति एन.सी.सी.आय. ने छत्तीसगढ़ के अधिकारियों का आह्वान किया है कि वे सेन के विरुद्ध "राजनीति से प्रेरित" आरोपों को रद्द करें क्योंकि इनका उद्देश्य जन आन्दोलन को कमज़ोर करना है।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रवक्ता फादर बाबू जोसफ ने भी उक्त फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि दूरस्थ क्षेत्रों में जनजातियों में कार्यरत समाज सेवियों के कार्यों को उचित परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिये तथा जल्दबाज़ी में कोई निर्णय नहीं लिया जाना चाहिये। दक्षिण भारत में मछुओं के अधिकारों के लिये संघर्षरत रिडेम्ट्रिस पुरोहित फादर थॉमस कोच्चेरी ने भी उक्त फैसले को अन्यापूर्ण बताया है।

इनके अतिरिक्त कोलकाता के कलाकारों, सांस्कृतिक कार्यकर्त्ताओं एवं विद्धानों के मंच ने भी फैसले को धोखाधड़ी का नाम दिया है जबकि भारत के कुछ 25 लोकतंत्र समर्थक संगठनों के संघ ने इसे "सकल असमानता और लोकतंत्र के अपहरण का द्योतक" निरूपित कर डॉ. सेन को तुरन्त रिहा किये जाने की मांग की है।








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