2010-12-01 18:37:03

फास्ट ट्रैक अदालत अर्थात् ‘तीव्रगति अन्याय स्थल’


भुवनेश्वर, 1 दिसंबर, 2010 (उकान) उड़ीसा के कंधमाल जिले में हुए ईसाई विरोधी दंगों के मामलों को तीव्र गति से सुलझाने के लिये बनाये गये फास्ट ट्रैक अदालत के फैसले से दंगे के शिकार लोगों को अपेक्षित सात्वना नहीं मिल रही है।
उक्त बात की जानकारी देते हुए उकान समाचार ने बताया कि चर्च के जो लोग वकील और सामाजिक कार्यकर्ताओं में अदालत के फ़ैसले को लेकर रोष है क्योंकि कई हत्यारे, बलात्कारी, लुटेरे और शस्त्रधारी सड़कों में स्वच्छंद घूम कर देश की न्यायिक प्रक्रिया का खुला माख़ौल उड़ा रहे है।
बहुत से गंभीर मामले घटिया जाँच प्रणाली, दिखावा अभियोजन, बिकाऊ न्यायिक प्रक्रिया और बाहुबलियों द्वारा गवाहों को धमकाये जाने के कारण मज़ाक बन कर रह गये हैं।
ब्रिन्दा ग्रोवर नामक सुप्रीम कोर्ट के वकील और कार्यकर्ता ने कहा है कि फास्ट ट्रैक अदालत " तीव्र गति अन्याय स्थल " बन गया है।
नबाजिनी प्रधान कहती हैं कि जिन लोगों ने उनके चाचा को ज़िन्दा जला दिया उन्हें अदालत ने बरी कर दिया है। इशार दिग्गल का कहना है कि जिन्होंने उनके सास को जला डाला वे भी मुक्त कर दिये गये है।
क्रिस्तोदास नायक ने बताया कि उनकी पत्नी को उन्होंने कुल्हाड़ी से काट डाला था उन्हें भी फास्ट ट्रैक कोर्ट ने बरी कर दिया है। उधर वकील पौल प्रधान के घर को जलाने वाले और उनकी पत्नी को ज़बरन हिन्दु बनाने वालों को भी कोई सजा नहीं मिली है।
उड़ीसा प्रशासन ने दावा किया है कि कंधमाल मामले में जितने लोगों को सजा सुनायी गयी है वह गुजरात दंगे से कहीं अधिक है। फादर मनोज कुमार नायक का कहना है कि सरकार न्याय दिलाने से अधिक घटनाओं के गणित बनाने में व्यस्त है। उधर फादर निकोलस बारला ने कहा कि अगर कंधमाल दंगे के दोषी इस तरह मुक्त कर दिये गये तो भारत ‘प्रजातंत्र’ नहीं ‘भीड़तंत्र’ बन कर रह जायेगा।








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