2010-11-30 20:30:45

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 19
23 नवम्बर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स –कलीसियाई धर्मशिक्षा और पूजनविधि


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी थी जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना गया । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया गया था । काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के बारे में हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठे मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘वर्णित मध्यपूर्व ईसाइयों के कलीसियाई धर्मशिक्षा बारे में । आज हम सुनेंगे धर्मशिक्षा व पूजन विधि के बारे में
66.पाठको, अगर हम लोगों को धर्मशिक्षा देने के बारे में विचार करें तो हम पायेंगे कि इसके लिये अनेक साधनों का सहारा लिया जा सकता है। एक साधन जिसके द्वारा विश्वासियों को धार्मिक शिक्षा देकर उनके विश्वास को मजबूत किया जा सकता है वह है विश्वास के बारे में जानने के लिये गोष्ठियों का आयोजन करना। अपने विश्वास के बारे में दूसरों को बताने के लिये यह उचित है कि विश्वासियों का ग्रुप छोटा हो। ग्रुप छोटा होने से सहभागी अपने विचारों को आसानी से बिना किसी हिचक के सीधे लोगों को बता सकते हैं और उपस्थित लोग भी दूसरों के विचारों अनुभवों और प्रतिबद्धताओं को दूसरों को बता सकें। मध्यपूर्वी राष्ट्रों से जो रिपोर्ट मिलें हैं उनसे पता चलता है कि लोग धर्मशिक्षा के लिये विभिन्न प्रकार के साधनों का सहारा लिया जा रहा है। कई पल्लियों में लोगों ने समितियों और संघों का निर्माण किया है और इसके द्वारा संगीत पूजन-विधि और धर्मशिक्षा का प्रचार-प्रसार हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार इस बात का भी खुलासा हुआ कि लोग कई बार इन समितियों के द्वारा गीत-संगीत और पूजनविधि के बारे अधिक बातें करते हैं और धर्मशिक्षा को दरकिनार कर दिया जाता है।
इसी लिये इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है कि लोगों की धर्मशिक्षा के लिये प्रशिक्षण केन्द्र खोला जाना चाहिये ताकि लोगों को उचित धर्मशिक्षा प्राप्त हो सके। प्रशिक्षण केन्द्र भी खोलने के लिये ऐसे स्थानों का चयन किया जाना चाहिये जहाँ इस प्रकार का कोई केन्द्र न हो। ऐसा होने से युवाओं और अन्य विश्वासियों को भी विश्वास प्रशिक्षण दिया जा सकेगा और वे अपने विश्वास में सुदृढ़ हो पायेंगे।
67. पाठको, जब हम प्रशिक्षण के साधनों के बारे में बातें करते हैं तो हमें इस बात पर ध्यान देना ही होगा कि हम आज की युवा पीढ़ी के लिये इंटरनेट रेडियो और टेलिविज़न का प्रयोग करते हुए धर्मशिक्षा को उपलब्ध करायें। आज इस बात की ज़रूरत है कि हम धर्मशिक्षा को युवाओं के लिये बनायें साथ ही इनको बनाने में युवाओं के सहारा लें ताकि युवाओं के बीच लोकप्रिय हो सके। मध्यपूर्व में द वॉइस ऑफ चैरिटी जैसे कार्यक्रम बहुत ही लोकप्रिय हुए हैं विशेष करके उन स्थानों में जहाँ ख्रीस्तीय मीडिया के प्रसारण के अनुमति नहीं है।
68. मध्यपूर्व के राष्ट्र की काथलिक कलीसिया ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि युवाओं के विश्वास प्रशिक्षण के लिये विशेष व्यवस्था करेंगे। उनका मानना है कि आज के युवा विभिन्न प्रकार की चुनौतियों और समस्याओं के बीच अपना जीवन-बसर करते हैं इसलिये उन्हें इस बात को सिखाया जाना चाहिये कि ईश्वर की क्या आज्ञायें हैं तथा कैसे अपने विश्वास को मजबूत किया जा सकता है। उन्हें इस बात से भी अवगत कराया जाना चाहिये कि अपने बैरी को प्यार करने का क्या अर्थ है। और कैसे इसे अपने जीवन में लागू किया जा सकता है। युवाओं को इस बात को भी सिखाया जाना चाहिये कि वे किस तरह से बुराई पर विजयी हो सकते हैं। युवाओं को यह भी शिक्षा दी जानी चाहिये कि वे कैसे सार्वजनिक जीवन में अपने विश्वास के अनुसार जीते हुए सहभागी हो सकते हैं।
69. पाठको, हम आपको यह भी बता दें कि आज के युवाओं को इस बात की भी शिक्षा दी जानी चाहिये कि विभिन्न पारिवारिक धार्मिक और राजनीतिक माहौल से उत्पन्न दुश्मनी के बावजूद कैसे वे प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर को पहचान सकते हैं। उन्हें यह भी सिखाया जाना चाहिये कि वे किस तरह से एक सभ्य समाज के निर्माण में अपना योगदान देंगे जिसमें सबको सम्मान मिले और सभी एक-दूसरे की भलाई के लिये कार्य कर सकें ताकि एक ऐसे समाज का निर्माण हो सके जहाँ लड़ाई-झगड़ा न हो पर सहयोग और शांति का माहौल हो।
70. पाठको, धर्मशिक्षा के बारे में चर्चा करने के बाद आइये हम इस बात कि चर्चा करें कि मध्यपूर्वी राष्ट्रों में पूजन विधि के संबंध में क्या राय है। अगर हम वाटिकन द्वितीय महासभाकी बातों को याद करें तो हम पाते हैं कि वाटिकन द्वितीय न पूजन विधि एक ऐसी उँचाई है जिस ओर कलीसिया के सभी क्रिया-कलाप केन्द्रित होते हैं और इसी से कलीसिया अपनी शक्ति भी ग्रहण करती है। मध्यपूर्व की जो भी कलीसियायें हैं इन्होंने पवित्र धर्मविधि को कलीसिया के जीवन के लिये बहुत ही महत्व दिया है। कलीसिया की पूजन विधि विभिन्न तरह के अन्य रीति-रिवाज़ों में प्रकट किये जाते हैं। वाटिकन द्वितीय की महासभा इस बात पर बल देती है कि पूजा के लिये जिस भी विधि का उपयोग किया जाये वह कलीसिया के पूजन-विधि के तौर-तरीको से तालमेल रखता हो। पवित्र पूजन विधि ही आज हमारे विश्वास को जीवित रख सकती है। इतना ही नही पवित्र पूजन-विधि ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है और जो लोग अपने विश्वास से भटक गये है या जिनमें विश्वास की कमी हो उनके विश्वास को मजबूत कर सकते है।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गत हमने जानकारी प्राप्त की ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित मध्यपूर्व ईसाइयों के कलीसियाई धर्मशिक्षा व पूजन विधि साक्ष्य के बारे में । अगले सप्ताह हम ज्ञान प्राप्त करेंगे परंपरागत नयी पूजन पद्धति के बारे में।








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