नई दिल्ली, 22 नवम्बर, 2010 ( उकान) आदिवासी अब सिर्फ़ वादा नहीं वरन चाहते हैं कि उन्हें
दरकिनार किये जाने के सिलसिला का अंत हो।
उक्त बातें आई एस आई के आदिवासी
यूनिट के निदेशक जेस्विट फादर डॉक्टर मरियानुस कुजूर ने उस समय कहीं जब उप राष्ट्रपति
मुहम्मद हमीद अंसारी के उस वक्तव्य पर टिप्पणी कि जिसमें उन्होंने कहा था कि वे आदिवासियों
के लिये चिन्तित हैं और चाहते हैं कि अब उन्हें दरकिनार नहीं कया जायेगा।
विदित
हो कि उपराष्ट्रपति मुहम्मद हमीद अंसारी ने दिल्ली में मुख्यमंत्रियों की बैठक में इस
बात को स्वीकार किया था कि 7 करोड़ भारत की आदिवासी जनता सामाजिक और आर्थिक रुप से पिछड़ी
हुई है।
विकास के उचित रूपरेखा नहीं होने के कारण आदिवासी अब भी आदिवासी
भौगोलिक और सामाजिक रूप से कट जाते हैं।
अत्यधिक गरीबी तथा उचित प्रशासनिक और
कानूनी तंत्र के अभाव में इनकी स्थिति बदतर है।
फादर मरियानुस ने एक ओर उपराष्ट्रपति
की बातों का स्वागत किया है पर उन्होंने इस बात पर बल दिया है कि अब चिन्तित होना काफी
नहीं है पर आदिवासियों के विकास के लिये ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने
कहा राजनीतिज्ञों द्वारा आदिवासियों के बारे में ऐसे बयान देते रहना भारतीय इतिहास का
एक हिस्सा बन गया है क्योंकि आज़ादी के 63 साल के बाद भी आदिवासियों की स्थिति चिंताजनक
है। उन्होंने कहा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में उद्योग-धन्धों के विकास के नाम पर आदिवासियों
संस्कृति और अस्मिता खतरे में पड़ गया है।
आदिवासी अपने पैतृक सम्पति से
विस्थापन पलायन और मानव तस्करी के द्वारा बेदखल किये जा रहे हैं।
उधर सीबीसीआई
के आदिवासी और दलित समिति के अध्यक्ष फादर जी कोसमोन अरोक्याराज ने कहा है कि उपराष्ट्रपति
के विचारों से यह स्पष्ट हो गया है कि आदिवासियों की स्थिति दयनीय है और यह तब ही बदलेगा
जब सरकार आदिवासियों के हितों को गंभीरतापूर्वक कदम उठाये।
उन्होंने कहा
कि जब तक आदिवासियों के लिये दी गयी राशि आदिवासियों तक जब तक न पहुँचे उनका सामाजिक
और आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता है।