2010-11-11 16:14:17

कलीसिया के जीवन और मिशन में ईशवचन पर संत पापा का प्रेरितिक उदबोधन प्रकाशित


कलीसिया के जीवन और मिशन में ईशवचन शीर्षक से वाटिकन में अक्तूबर 2008 में विश्व धर्माध्यक्षों की धर्मसभा आयोजित की गयी थी। इस धर्मसभा के विचार विमर्शों का संकलन संत पापा ने धर्मसभा पश्चात वेरबुम दोमिनी शीर्षक से प्रकाशित प्रेरितिक उदबोधन में किया है जो लगभग 112 पृष्ठों का है। उन्होंने इस दस्तावेज में मेषपालों, धर्मसमाजियों और लोकधर्मियों से आग्रह किया है कि वे पवित्र धर्मशास्त्र से परिचित हों और यह कदापि नहीं भूलें की यथार्थ जीवंत ख्रीस्तीय आध्यात्मिकता की आधारशिला ईशवचन है जिसकी कलीसिया उदघोषणा करती है। वह इसे स्वीकार करती, इसका समारोह मनाती तथा इस पर मनन चिंतन करती है।
संत पापा के संदेश का सार है कि निजी जीवन और कलीसियाई जीवन में ईशवचन की केन्द्रीयता की पुर्नखोज की जाये तथा मानवजाति की मुक्ति के लिए इसके सौंदर्य की घोषणा करते हुए पुर्नजीवित ख्रीस्त का दृढ़ और विश्वसनीय साक्ष्य दिया जाये। संत पापा ने कहा है कि ऐसे विश्व में जहाँ ईश्वर को इंकार किया जाता या सतही तौर पर स्वीकार किया जाता है हमें और अधिक प्राथमिकता देने की जरूरत है कि आज का इंसान स्वयं को ईश्वर के लिए लिए फिर से खोले। ईश्वर जो हमें कहते तथा अपना प्यार देते हैं ताकि हमें भरपूर जीवन मिले।
संत पापा ने बल दिया है कि ईश्वर मानव इतिहास में मानव के पक्ष में कहते और करते हैं। ईश वचन मानव के विरोध में नहीं है और यह उसकी यथार्थ इच्छाओं का दमन नहीं करता है लेकिन इसे शुद्ध कर फलप्रद बनाता है। संत पापा ने कहा है कि ईशवचन को मेषपालीय नजरिये से प्रस्तुत किया जाना निर्णायक है कि यह दैनिक जीवन में मानव के सामने आनेवाली समस्याओं का जवाब देता है। उन्होंने कहा है कि विश्वासियों को प्रशिक्षित किया जाना महत्वपूर्ण है ताकि वे यह पहचानें कि पाप की जड़ ईश्वर के वचन को नहीं सुनना है। ईशवचन शांति और मेलमिलाप का स्रोत है। येसु ख्रीस्त ईश्वर के निश्चित वचन हैं ।
संत पापा ने कहा है कि ईशवचन को सुनने से न्यायी और वैध समाज बनाने के लिए दढ़ समर्पण पैदा होता है। न्याय के प्रति समर्पण और विश्व का पूर्ण परिवर्तन सुसमाचारीकरण का भाग है। यह लोकधर्मियों का दायित्व है कि वे सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हों।








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