2010-11-10 14:49:01

ईश्वरीय प्रेम सर्वोच्च, स्पेन यात्रा का सार


रोम, 10 नवम्बर, 2010 ( ज़ेनित) संत पापा स्पेन की अपनी दो दिवसीय यात्रा के द्वारा विश्व को इस बात का संदेश दिया कि मानव जीवन के लिये ईश्वरीय प्रेम का महत्त्व सर्वोच्च है। उक्त बातें वाटिकन के प्रवक्ता जेस्विट फादर फेदरीको लोमबारदी ने उस संय कहीं जब वे स्थानीय समाचारपत्र लोसेरभातोरे रोमानो के संपादक जियोवन्नी मरिया वियान से बातचीत की।

संपादक वियान ने बताया कि संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने इस बात को दृढ़ता से प्रस्तुत कर पाने में सफलता पायी कि ईश्वर मानव के जीवन में उपस्थित है, उनके करीब है और इसीलिये मानव को चाहिये कि वह मंदिर में आकर ईश्वर से मिले।

वाटिकन समाचार पत्र लोसेरभातोरे रोमाने के संपादक के अनुसार सांतियागो और बारसेलोना के ईशमंदिर से लोग ईश्वरीय घर होने की सुन्दरता का सहज ही अनुभव कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि एक धर्मी ईसाई और कलाकार अंतोनी गौदी ने अपने जीवन में ईश्वर की खोज करते हुए महागिरजाघर की कल्पना की और ‘सागरादा फामिलिया’ अर्थात् ‘पवित्र परिवार’ नामक ईशमंदिर का निर्माण हो पाया और आज यह लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन गया है।

फादर लोमबारदी ने संत पापा की यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि संत पापा की यह हार्दिक इच्छा थी कि इस यात्रा के द्वारा दुनिया को यह संदेश दे कि ईश्वर का हमारे जीवन में प्रमुख स्थान है।

उन्होंने इस बात को भी बताया कि संत पापा शासनकाल में इसी बात पर बल देते रहे हैं।

संत पापा ने अपने दो दिवसीय यात्रा के दरमियान जितने भी भाषण और उपदेश दिये उनके सार था ईश्वर हमारे जीवन का केन्द्र है और दूसरा था कि हमें चाहिये कि एक तीर्थयात्री के रूप में हम उन्हें खोजें और उनके दर्शन करें।

वाटिकन प्रवक्ता फादर लोमबारदी ने बताया कि संत पापा को इस बात की चिंता है कि लोग अपने जीवन में उचित स्थान नहीं देते हैं या तो तटस्थ जीवन बिताते हैं या उससे अपना रिश्ता ही तोड़ देते हैं। अतः वे चाहते हैं कि लोगों को बतायें कि ईश्वर के बगैर हमारा जीवन अर्थहीन है।

संत पापा ने इसी संदर्भ में पूरे यूरोप को चेतावनी दी औऱ कहा कि अगर व्यक्ति क्रूस के अर्थ को भूल जाये और यह भूल जाये कि ईश्वर ने मानव को कितना प्यार किया तो यह मानव के लिये घातक है।

वाटिकन प्रवक्ता ने कहा कि अंतोनी गौदी ने जिस भव्य महागिरजाघर के निर्माण में अपना योगदान दिया वह तब ही अर्थपूर्ण होगा जब लोग इस बात को समझ पायेंगे कि उन शब्दों को ध्यान से सुन पायेंगे जिनके द्वारा ईश्वरीय को प्रकट किया जाता है और ईश्वर, ख्रीस्तीयों और अन्य लोगों से अपना संबंध सुदृढ़ कर पायेगें।

 









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