2010-11-09 18:53:38

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 16
2 नवम्बर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स – ईसाई कलीसियाई जीवन


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी थी जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना गया । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया गया था। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
हम चाहते हैं एक पखवारे तक चले इस महत्त्वपूर्ण महासभा की तैयारियों, इस में उठे मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित मध्यपूर्व ईसाइयों के बारे में। आज हम सुनेंगे ईसाई कलीसियाई जीवन के बारे में ।
54. पाठको, हम आपको बता दें कि काथलिक कलीसिया येसु मसीह का शरीर है और इसके सदस्य अपने विश्वास के द्वारा पवित्र आत्मा के शक्ति से आरंभ से ही एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। काथलिक विश्वासी अपने पूजन पद्धति के कारण विभिन्न कलीसियाओं में बँटे हुए है पर उनका शीर्ष एक है और वे एक ही संस्कार के द्वारा एक-दूसरे के साथ एकता में बँधे हुए हैं। काथलिक कलीसिया में विभिन्न अन्य कलीसियाओं का होना एकता का ही प्रतीक है। मध्यपूर्व की कलीसिया की महासभा के पूर्व जो भी विचार सामने आये हैं वे इस बात को स्पष्ट करते हैं कि ख्रीस्तीयों की एकता का आधार है उनका पवित्र आत्मा के द्वरा संचालित आध्यात्मिक जीवन। यही ख्रीस्तीय जीवन और एकता की नींव है। सच पूछा जाये तो ईसाइयों की आपसी एकता का आधार है पारस्परिक प्रेमपूर्ण संबंध। इसी लिये इसी बात को दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ख्रीस्तीय येसु मसीह के पवित्र शरीर के अभिन्न अंग है और उनका जीवन आपसी प्रेमपूर्ण संबंध पर आधारित है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि ख्रीस्तीयों का जीवन ठीक उसी तरह से एकता के सूत्र में बँधा होना चाहिये जैसे कि पवित्र तृत्व एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अर्थात् कलीसिया का प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है और उसके शीर्ष हैं येसु मसीह।
55. पाठको, इसी एकता की बात करते हुए हम आपको बता दें कि सार्वभौमिक कलीसिया की एकता को हम दो तरह से पाते हैं। पहला कि सभी ईसाइयों को एक ही बपतिस्मा मिलता है और वे सभी यूखरिस्तीय बलिदान में एक ही रोटी खाते हैं और एक ही कटोरा से पीते हैं। और दूसरी कि सभी काथलिकों का एक ही अध्यक्ष शीर्ष या महाधर्मगुरु हैं जो रोम में निवास करते हैं और रोम के महाधर्माध्यक्ष हैं जिन्हें दुनिया संत पापा या पोप के नाम से जानती है। संत पापा संत पीटर के उत्तराधिकारी हैं। संत पीटर येसु के चेलों के अगुवा थे। इसी बात पर अगर चिन्तन किया जाये तो हम निश्चय ही समझ पायेंगे कि यह ऐतिहासिक सच्चाई भी कलीसियाई विश्वास और एकता का प्रत्यक्ष श्रोत और आधार है। पूर्वी कलीसियाओं के लिये जो कलीसियाई नियम हैं उसने इस बात को स्पष्ट किया है कि ख्रीस्तीय जीवन सामुदायिक जीवन है जो येसु मसीह पर केन्द्रित है। आपको हम यह भी बता दें कि रोमन काथलिक कलीसिया में जो विभिन्न विभाग हैं जो विभिन्न समितियाँ हैं वे इसी एकता के लिये कार्यरत हैं।
काथलिकों के बीच अंतरकलीसियाई आपसी संबंध प्रत्येक देश के कलीसियाई अध्यक्षों चाहे बिशप या पैट्रियार्क के द्वारा प्रकट किये जाते हैं।ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि ख्रीस्तीय एकता स्पष्ट विश्वनीय और प्रभावपूर्ण हो सके। काथलिकों के बीच इस बात पर भी बल दिया जाता है कि वे आपसी एकता को बढ़ावा देने का पूरा प्रयास करें एक-दूसरे की मदद करें उनका सहयोग करें धार्मिक तथा प्रेरितिक कार्यों में एक-दूसरे की मदद करें ताकि कलीसिया आध्यात्मिक रूप से स्थिर और सुदृढ़ हो सकें। इसी एकता को बढ़ावा देने के लिये कई लोगों ने अपने विचार दिये हैं और कहा है कि काथलिक कलीसिया को चाहिये कि वे समय-समय पर या कम-से-कम 5 वर्षों में एक बार पूर्वी कलीसिया के लिये महासभाओं का आयोजन करते रहे। मध्य-पूर्व की कलीसिया के जो विचार मिले हैं उसमें इस बात की चर्चा की गयी है कि जो काथलिक शहरों मे रहते हैं वे उनका अन्य कलीसियाओं के सदस्यों के साथ संबंध आत्मीय रहा है। वे उनके साथ मिलते-जुलते हैं और अपनी एकता का परिचय देते हैं। धर्माध्यक्षों ने ऐसे काथलिकों को प्रोत्साहन देते हुए कहा है वैसे कार्यो को जारी रखें जिससे एकता बढ़ती है। इस संबंध में सभी काथलिकों को इस बात की सलाह दी जाती है कि वे सदा ही सार्वभौमिक कलीसिया के सदस्य के रूप में कार्य करें न कि केवल अपनी छोटी कलीसिया मात्र के सदस्य के रूप में।
57. पाठको, हम आपको यह भी बता दें कि काथलिकों की एकता के लिये न केवल व्यक्तिगत सदस्य कार्य करें वरन् पर कलीसियाई एकता का आधार हो सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के शीर्ष और संत पीटर के उत्तराधिकार रोम के धर्माध्यक्ष संत पापा। काथलिक कलीसिया की विभिन्न कलीसियाओं की आपसी एकता उस समय दिखाई पड़ती है जब धर्माध्यक्षों की सभा का आयोजन होता है। इसके साथ ही काथलिकों की एकता उस समय झलकती है जब धर्मप्रांत के पुरोहित धर्मसंघी और लोकधर्मी एक साथ एकत्रित होकर प्रार्थना करते हैं, यूखरिस्तीय समारोह में हिस्सा लेते हैं और ईश्वर की दिव्य वाणी सुनते हैं। कलीसिया की एकता को बनाये रखने की पूरी ज़िम्मेदारी धर्मप्रांत के प्रत्येक सदस्यों की है पर इसमें धर्माध्यक्ष को चाहिये वह इसका नेतृत्व करे।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में हमने जाना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया ईसाई कलीसियाई जीवन के बारे में । अगल सप्ताह हम जानेंगे अंतरकलीसियाई एकता और विश्वासियों की एकता के बारे।












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