2010-11-09 18:42:26

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 12
5 अक्तूबर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स – मध्यपूर्व में ईसाइयों की चुनौतियाँ


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित मध्यपूर्व में ईसाई समुदाय की भूमिका के बारे में। आज हम सुनेंगे मध्यपूर्व में ईसाई समुदाय की चुनौतियों के बारे में ।
32. पाठको, हम आपको बता दें कि विभिन्न धर्मप्रांतों से जो भी पत्र मिले उसमें किसी ने भी इस बात की चर्चा करने से नहीं चूका कि मध्यपूर्वी क्षेत्र की वर्त्तमान राजनीतिक स्थितियाँ ने काथलिक कलीसिया के जीवन और मिशन को प्रभावित नहीं किया है। आज इस बात को खुले तौर पर स्वीकार किया जा रहा है कि वर्त्तमान राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति में ईसाइयों को अपने धर्मिक कर्त्तव्यो को पूरा करना और उसके अनुसार जीना कठिन हो गया है। कई बार ईसाइयों के लिये धर्म के अनुसार चलना मतलब खतरा मोल लेना है। इस्राएल का पलेस्तीन के भूभाग पर कब्ज़ा कर लिये जाने से ईसाइयों को अपने धार्मिक स्थलों तक जाने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अधिकतर बार ईसाइयों को अपनी पूजा-आराधना के लिये भी पुलिस से अनुमति लेने की आवश्यकता पड़ती है। इतना ही नहीं कई ईसाई कट्टरवादी बुद्धिजीवियों ने तो धर्मग्रंथ का हवाला देते हुए इस्राएल का फ़िलिस्तीन पर किये गये कब्जें का उचित ठहराने के पक्ष में तर्क देते रहे हैं। और ऐसा करने से अरब के ईसाइयों का मामला और ही अधिक संवेदनशीलहो जाता है।
33. उधर इराक की स्थिति तो और ही दयनीय है। युद्धग्रस्त ईराक में आपसी तनाव राजनीतिक गुटबाज़ी धार्मिक मतभेद से आम ईराकी ही की परेशानियाँ बढ़ी हैं। आपसी तनाव के इस माहौल में अल्पसंख्यक ईसाइयों का जीवन खतरे में पड़ गया है। कई बार ईसाई ही हिंसा के शिकार हो जाते हैं पर उन्हें अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उनके हक़ की बात करने वालों का अभाव है। कई बार वे नज़रअंदाज़ कर दिये जाते हैं।
34. पाठको, अगर हम लेबानोन की बातें करे तो हम पाते हौं कि लेबानोन में ईसाई राजनीतिक और धार्मिक तौर से दो खेमों में बँट गये है। उनकी स्थिति इसलिये भी ख़राब है क्योंकि उनके पास कोई ऐसी योजना नहीं है जिसे दोनों पक्ष स्वीकार करें। उधर मिश्र के ईसाइयों की चुनौती मुसलमानों से है। यहाँ मुसलमान राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हो गये हैं और ईसाइयों को अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ता है। कई बार तो उनके अधिकारो को बलपूर्वक छीना जाता है। ईसाइयों का जीवन इसलिये भी कठिन हो गया है क्योंकि यहाँ के मुसलमान ईसाइयों को शक्ति के बल पर प्रभावित करने का प्रयास तो करते ही है स्कूल और मीडिया के माध्यम से भी ईसाइयों के जीवन में हावी हो रहे हैं। मध्यपूर्व के अन्य राष्ट्रों की सरकारें निरंकुश हैं या तानाशाहियों के प्रभाव में है जिससे भी ईसाइयों को अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। तुर्की में भी ईसाइयों को अपने धर्म के अनुसार जीने की पूरी स्वतंत्रता नहीं है।
35. सबसे महत्त्वपूर्ण बात मध्यपूर्वी ईसाइयों की यही कही जा सकती है कि इन चुनौतियों के बावजूद इनका विश्वास ईश्वर पर और देश के प्रति समर्पण मजबूत है। यहाँ के ईसाई एक साथ चुनौतियों का सामना करते और एक साथ अपनी क्षमता के अनुसार समाज के लिये अपना योगदान देते हैं। ईसाइयों का एक वर्ग ऐसा भी है जो निराश हैं और सरकार पर अपनी आस्था खो चुके हैं। कई तो अब गिरजा जाना भी छोड़ दिया है और ख्रीस्तीय संस्कारों व संस्थाओं से उनका कोई वास्ता नहीं रह गया है और समाज के लिये कोई योगदान भी नहीं देते हैं।
36. पाठको, हम आपको मध्यपूर्व में मानवाधिकारों संबंधी स्थितियों से भी अवगत कराएँगे। एक सरकार को चाहिये कि वह मानव हित के लिये कार्य करे। किसी भी सरकार की अच्छाई या बुराई का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि वह अपने सामाजिक और राजनीतिक ढाँचों का प्रयोग जनकल्याण के लिये कितना कर पाती है। यहाँ इस बात को भी बताया जा सकता है कि सरकार को चाहिये कि वह लोगों की भलाई के लिये उन अवसरों को पैदा करे जिससे व्यक्ति का चहुँमुखी विकास हो सके और इसके साथ पूरा समाज व्यवस्थित हो। यहाँ यह भी बताया जाना उचित होगा कि हम जिस मानवाधिकार की बात करते हैं उसके श्रोत ईश्वर ही है जिन्होंने हमारी सृष्टि की है। ईश्वर ने हमें अंतःकरण दिये हैं जो ईश्वर और सत्य की खोज करने में सक्षम है। सत्य की खोज करना भी मानव का अधिकार है। और जब कोई व्यक्ति सत्य की खोज करने वाले का अनादर करता है तो वह ईश्वर का अनादर करता है। पाठको, हम आपको यह बता दें कि आज समाज की कई समस्यायें इसलिये बड़ी हो गयी हैं क्योंकि मानव मानव का आदर नहीं करता मानव की मर्यादा का आदर नहीं करता और मानव के अधिकारों की कद्र नहीं करता। आज मध्यपूर्वी राष्ट्रों को चाहिये शांति न्याय और स्थायित्व तब ही मानवीय मूल्यों की रक्षा संभव हो पायेगी।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में हमने जाना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया में ईसाई समुदाय की चुनौतियों धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में। अगले सप्ताह हम जानेंगे मध्यपूर्व के ईसाई समुदाय की धर्म और अंतःकरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में।








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