2010-11-09 18:41:10

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग - 11
28 सितंबर, 2010
सिनॉद ऑफ बिशप्स – मध्यपूर्व में ईसाइयों की चुनौतियाँ


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हमने कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं - तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले अंक में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित मध्यपूर्व में ईसाई समुदाय की भूमिका के बारे में। आज हम मध्यपूर्व में ईसाई समुदाय की भूमिका के बारे में सुनना जारी रखेंगे।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में हमने सुना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया में ईसाई समुदाय की भूमिका के बारे में। अगले सप्ताह हम सुनेंगे ईसाई समुदाय के बारे में जानकारी प्राप्त करना जारी रखेंगे।
28.पाठको, हमको यह बता दें कि मध्यपूर्वी राष्ट्रों में ईसाइयों की संख्या नगण्य है लेकिन उनके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है। ईसाइयों ने सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सदा ही अपनी सक्रियता दिखलायी है। कई बार ईसाई समुदाय ने अपने आपको राजनीतिक और सामाजिक कार्यों से अलग इसलिये कर लिया क्योंकि उन्होंने आभास किया कि परिस्थितियाँ उनके अनुकूल नही है। मध्यपूर्व के ईसाइयों को चाहिये कि वे अपने विश्वास और आध्यात्मिकता में सुदृढ़ हो जायें ताकि उनका आपसी संबंध मजबूत हो सके।
29. ईसाई जीवन को मजबूत करने के लिये सबसे पहला काम कलीसिया को करने की आवश्यकता है वह है पारिवारिक जीवन को मजबूत करना जिसके मूल्य आज खतरे में है। इसके साथ-साथ कलीसिया को चाहिये कि वह बड़े परिवारों के लिये लोगों को प्रोत्साहन दे। कलीसिया को चाहिये कि लोगों को कलीसिया के सामाजिक सिद्धांतों के बारे में बताये जिसके आधार पर लोग अपनी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान कर पायेंगे। कलीसिया के सामाजिक सिद्धांत ही विभिन्न समुदायों के बीच होने वाले हिंसा और हिंसा के चक्र से मुक्ति दिलाने में सहायक सिद्धा हो सकते हैं। इसके लिये कलीसिया को चाहिये कि लोगों के बीच शिक्षा का प्रसार करे ताकि इससे अधिक-से-अधिक फल प्राप्त किया जा सके। मध्य-पूर्व की कलीसिया को इस बात का भी ध्यान रहे कि वह उनकी मदद करे जो समाज में ग़रीब और ज़रूरतमंद हैं।
30. इन सभी कार्यों को करते हुए कलीसिया का ध्यान इस बात पर भी केन्द्रित रहे कि वह जनहितकारी कार्य के द्वारा इस बात का साक्ष्य दे सके कि चर्च ईसाइयों मुसलमानों और यहूदियों सबों के कल्याण के लिये कार्य को तत्पर है। लोगों को इस बात को बताया जाना चाहिये कि चर्च के परोपकारी कार्य तब ही जारी रह सकते हैं जब स्थानीय लोग इस कार्य में कलीसिया की मदद करें। लोकहित कार्यों के क्षेत्र में यहाँ की कलीसिया ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया है। कलीसिया का यह सौभाग्य है कि वह अपने सेवाकार्य के द्वारा सदा ही समाज को अपनी सकारात्मक उपस्थिति का आभास दिलाती रही है। इस प्रकार के लोकहितकारी कार्यो में समर्पित भाई-बहनों की भूमिका विशेषकर के महिलाओं का योगदान उल्लेखनीय रहा है।
31. यहाँ इस बात की चर्चा करना उचित होगा कि जिस तरह से सुसमाचार की शिक्षा में न्याय पर विशेष बल दिया गया है कलीसिया को चाहिये कि वह कलीसिया की संपति और आमदनी के संबंध में पारदर्शिता दिखलाये। इस संबंध में यह कहा जाना उचित ही होगा कि धर्माध्यक्षों और पुरोहितों को इस बात सूक्ष्मता से जानना चाहिये कि क्या उनका व्यक्तिगत है और क्या समुदाय का है।
32. पाठको, अब आइये हम आपको मध्यपूर्व की कलीसिया की कुछ राजनीतिक चुनौतियों के बारे में बताता हूँ। इसके संबंध में जो भी पत्र या रिपोर्ट प्राप्त हुए हैं वे मध्यपूर्वी क्षेत्र के बारे में बताते हुए इस बात की चर्चा अवश्य ही करते हैं कि इस क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति तनावपुर्ण है। इस राजनीतिक तनाव के कारण यहाँ निवास कर रहे ईसाइयों का जीवन राजनीतिक और धार्मिक दोनों तरह से प्रभावित हो रहा है। सच कहा जाये तो ईसाइयों का जीवन खतरे में है। इस्राएल ने पलेस्तीन के कुछ क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है जो क्षेत्र को तनावपूर्ण कर दिया है। कई बार यहाँ कि निवासियों ने यह महसूस किया कि उन्हें स्वच्छंद रूप से जीवन जीने का अधिकार छीना जा रहा है। उन्हें धार्मिक स्थलों तक जाने के लिये पुलिस या सेना से अनुमति लेने की आवश्यकता पड़ती है। उनका अनुभव रहा है कि ये अनुमति भी सबों को नहीं दिये जाते हैं। और ऐसा है कि ये अनुमति पुलिस या सेना की मर्ज़ी पर निर्भर करती है जिससे ईसाइयों का जीवन और ही कठिन हो गया है।
पाठको, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन में हमने जाना ‘मध्यपूर्व की कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य’ नामक दस्तावेज़ में वर्णित ‘मध्यपूर्व की कलीसिया में ईसाई समुदाय की भूमिका के बारे में। अगले सप्ताह हम जानेंगे मध्यपूर्व के ईसाई समुदाय की चुनौतियों के बारे में।












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