विज्ञान संबंधी परमधर्मपीठीय अकादमी की पूर्णकालिक सभा के प्रतिभागियों के लिए संत पापा
का संदेश
संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने विज्ञान संबंधी परमधर्मपीठीय अकादमी की पूर्णकालिक सभा
के प्रतिभागियों को गुरूवार को सम्बोधित किया जो बीसवीं सदी की वैज्ञानिक विरासत पर विचार
विमर्श कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीसवीं सदी में विज्ञान का इतिहास निस्संदेह उपलब्धियों
और विकास का समय रहा है। विज्ञान का काम ब्रहमांड, प्रकृति और मानव प्राणी की संरचना
करनेवाले कारकों की सच्चाई के बारें में धैर्यपूर्ण गहन खोज करना रहा है। विज्ञान के
विभिन्न क्षेत्रों में बीसवीं सदी के दौरान वैज्ञानिक ज्ञान में हुई प्रगति ने इस ब्रहमांड
में मानव और पृथ्वी के स्थान के बारे में जागरूकता को बढ़ाया है।
संत पापा ने
आगे कहा कि आज यहाँ हमारी बैठक विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोध के प्रति कलीसिया के
सम्मान भावना का सबूत है तथा वैज्ञानिक प्रयासों के लिए अपनी कृतज्ञता प्रकट करती है
जिसका वह समर्थन करती तथा इससे स्वयं लाभान्वित भी होती है। कलीसिया मानती है कि वैज्ञानिक
गतिविधियाँ अंततः इससे लाभ पाती हैं कि मानव के आध्यात्मिक पहलू को मान्यता दे तथा अंतिम
जवाब पाने की उसकी खोज जो उसे अनुमति प्रदान करती है कि वह अपने से परे स्वतंत्र रूप
से विद्यमान जगत को स्वीकृति प्रदान करे जिसे हम पूरी तरह नहीं समझते और हम उतना ही समझ
पाते हैं जितना हम इसमें निहित तर्क को समझ पाते हैं।
वैज्ञानिक का अनुभव एक
मानव के रूप में इसलिए सतत, नियम, शब्द की परिकल्पना करना है जिसे उसने नहीं बनाया है
लेकिन जिसे उसने देखा है। वस्तुतः यह हमें सर्वशक्तिमान कारण का अस्तित्व होने को स्वीकार
करने की ओर ले चलता है जो मानव से भिन्न है और दुनिया को धारण करता है। यही बिन्दु प्राकृतिक
विज्ञान और धर्म के मध्य मिलन बिन्दु है। परिणाम स्वरूप विज्ञान, संवाद करने का स्थान
बन जाता है, मानव और प्रकृति के बीच मिलन तथा संभव है कि यह मानव और उसके सृष्टिकर्त्ता
के मध्य मिलन का बिन्दु बन जाता है।