2010-10-23 16:59:02

मध्य पूर्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का अंतिम संदेश


मध्य पूर्व क्षेत्र के धर्माध्यक्षों की विशेष धर्मसभा वाटिकन में 10 से 24 अक्तूबर तक सम्पन्न हो रही है। सिनड के धर्माध्यक्षों ने दो सप्ताह के विचार विमर्श के बाद मैसेज टू द पीपुल औफ गोड शीर्षक से 10 पृष्ठीय संदेश जारी किया है जिसमें दो सप्ताह के दौरान प्रस्तुत किये गये मुख्य बिन्दुओं को शामिल किया गया है। धर्माध्यक्षों ने कहा है कि वे अपने दिलों में अपने लोगों की चिंताओं को लेकर आये और यह धर्मसभा नया पेंतेकोस्त था। वे आशा, ताकत और दृढ़ संकल्प के साथ घर लौटेंगे ताकि काथलिक समुदायों के बीच एकता में जीवन यापन कर सार्वजनिक जीवन में सुसमाचार का साक्ष्य देंगे।
संदेश में मध्य पूर्व की कलीसिया के सामने प्रस्तुत चुनौतियों के बारे में कहा गया है कि हम इतिहास के टर्निंग पाइंट पर हैं। ईश्वर ने 2000 हजार वर्ष पूर्व पूर्वी भूमि में विश्वास का दान दिया आज हमें आह्वान करते हैं कि ख्रीस्त के सुसमाचार को साहस, मजबूती और दृढ़ता से धैर्यपूर्वक बनाये रखें और उनके प्रेम तथा शांति के सुसमाचार की साक्षी दें। कलीसिया के अंदर सामुदायिकता को मजबूत बनाये रखने तथा विभिन्न काथलिक कलीसियाई परम्पराओं के मध्य एकता बनाये रखने की चुनौती है जबकि बाह्य चुनौतियों में राजनैतिक परिस्थतियाँ, सुरक्षा और धार्मिक बहुलवाद हैं।
इस्राएली फिलिस्तीनी संघर्षों तथा इराक के ईसाईयों की पीड़ाओं को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता करने की अपील की गयी है। मध्य पूर्व क्षेत्रीय देशों के नागरिकों ने क्षेत्र की समस्या का शांतिपूर्ण, वैध और निश्चित समाधान पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय विशिष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ से काम करने का आग्रह किया है, सुरक्षा परिष्द के निर्णयों को लागू कर जरूरी वैधानिक कदम उठाये जायें ताकि विभिन्न अरब क्षेत्रों पर कब्जे को समाप्त किया जा सके। इस तरह से फिलीस्तीनी लोगों की स्वतंत्र सम्प्रभु मातृभूमि होगी जहां वे प्रतिष्ठापूर्ण सुरक्षित जीवन जी सकें। इसी तरह इस्राएल के नागरिक भी अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमा के अंदर शांति और सुरक्षा में जीवन यापन कर सकेंगे। येरूसालें शहर को उचित दर्जा प्राप्त हो सकेगा जहाँ तीन धर्मों – यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म की धार्मिक विरासत और पवित्रता होगी।
संदेश में कहा गया है कि ईराक में भी युद्ध के दुष्परिणामों का समापन तथा जीवन की सुरक्षा की पुर्नस्थापना हो जहाँ सब नागरिकों की धार्मिक और राष्ट्रीयता पहचान सहित उनकी सामाजिक संरचनाओं की सुरक्षा हो। लेबनान भी अपनी भूमि पर सम्प्रभुता को प्राप्त कर राष्ट्रीय एकता को मजबूत करेगा। यहाँ ईसाईयों तथा मुसलमानों का सहअस्तित्व तथा विभिन्न संस्कृतियो और धर्मों के मध्य संवाद आदर्श नमूना बनेगा एवं मूलभूत नागरिक स्वतंत्रता का प्रसार होगा।
धर्माध्यक्षों ने हर प्रकार कि हिंसा और आतंकवाद की भर्त्सना करते हुए यहूदी और ईसाई विरोधी तथा इस्लमोफोबिया एवं हर प्रकार के नस्लवाद की निन्दा करते हुए सब धर्मों का आग्रह किया है कि वे मध्य पूर्व क्षेत्र तथा सम्पूर्ण विश्व में विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं के मध्य संवाद का प्रसार करने की जिम्मेदारी लें।
संदेश में कहा गया है कि यहूदियों के साथ चर्च का वार्तालाप न केवल ईशशास्त्रीय स्तर पर लेकिन सब जगह महत्वपूर्ण है ताकि राजनैतिक संघर्षों को समाप्त किया जा सके जिसका परिणाम विभाजन को बढ़ावा देता तथा दैनिक जीवन को बाधित करता है। कहा गया है कि ईमानदार, न्यायी और स्थायी शांति के लिए एकसाथ समर्पित होने का समय आ गया है। अन्याय का औचित्य सिद्ध करने के लिए ईश वचन का उपयोग स्वीकार्य नहीं है। मुसलमानों के साथ संवाद के बारे में कहा गया है कि शांति, न्याय और मानवाधिकारों के लिए एक साथ मिलकर काम करें क्योंकि समुदायों का निर्माण सबकी जिम्मेदारी है।
मध्य पूर्व क्षेत्र से पलायन कर चुके ईसाईयों का आह्वान किया गया है कि वे अपनी मातृभूमि का परित्याग नहीं करें लेकिन मातृभूमि में विद्यमान अच्छाईयों और विरासत को देखें, इन्हें संभाल कर रखें जिसे वे प्यार करते और समर्थन देते हैं। पवित्र भूमि, व्यक्ति की अस्मिता और उसके मिशन का अंग है। यह उन सबलोगों के जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है जो पवित्र भूमि में रहते तथा जो लोग एक दिन वापस लौटेंगे।








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