2010-10-12 09:38:24

वाटिकन सिटीः सन्त पापा ने धर्माध्यक्षीय धर्मसभा को मरियम के सिपुर्द किया


वाटिकन में 10 से 24 अक्तूबर तक जारी, मध्यपूर्व के धर्माध्यक्षों की विशिष्ट धर्मसभा को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने मरियम के सिपुर्द कर मरियम को प्रदत्त "ईश माता और कलीसिया की माता" का मर्म समझाया।

सोमवार को धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के कार्यों के पहले दिन अपने चिन्तन में सन्त पापा ने 11 अक्तूबर सन् 1962 का स्मरण कराया। इसी दिन ततकालीन सन्त पापा जॉन 23 वें ने द्वितीय वाटिकन महासभा का उदघाटन किया था। 11 अक्टबूर मरियम के दैवीय मातृत्व को समर्पित दिवस भी है। सन्त पापा ने कहा, "इस तिथि पर द्वितीय वाटिकन महासभा का शुभारम्भ कर सन्त पापा जॉन 23 वें ने महासभा तथा कलीसिया को मरियम के ममतामयी हाथों के सिपुर्द किया था और आज हम भी 11 अक्तूबर के दिन ही इस धर्मसभा को, उसकी सारी समस्याओं, समस्त चुनौतियों तथा समस्त आशाओं एवं आकांक्षाओं सहित ईशमाता मरियम के सिपुर्द करते हैं।

सन्त पापा ने कहा, "देहधारण कर ईश्वर ने हमें अपने में समेट लिया तथा हमें अपने आन्तरिक सम्बन्ध में प्रवेश करने दिया। इस प्रकार हम पिता, पुत्र एवं पवित्रआत्मा के साथ एक हुए तथा ईश्वर के साथ आन्तरिक सम्बन्ध में जुड़ सके।"

उन्होंने स्मरण दिलाया कि सन्त पापा पौल षष्टम ने द्वितीय वाटिकन महासभा के समापन पर मरियम को "कलीसिया की माता" शीर्षक दिया था। उन्होंने कहा, "मरियम को प्रदत्त "ईश्वर की माता" तथा "कलीसिया की माता" इन दो शीर्षकों से द्वितीय वाटिकन महासभा का आरम्भ और समापन एक दूसरे से अंतरंग रूप से जुड़े हैं क्योंकि ख्रीस्त का जन्म अन्य किसी व्यक्ति के जन्म के समान नहीं था। वे स्वयं अपने लिये एक शरीर की रचना हेतु जन्में थे। जिस क्षण ख्रीस्त जन्में वहीं से संकलन का क्षण शुरु हुआ, बुलाहट का क्षण आरम्भ हुआ, उनके शरीर अर्थात् कलीसिया की रचना आरम्भ हुई।" सन्त पापा ने कहा, "थेओस की माता, ईश्वर की माता, कलीसिया की माता है, क्योंकि मरियम उनकी माता हैं जो अपने पुनर्जीवित शरीर में सबको एक करने आये हैं।"

धर्मसभा में मध्यपूर्व के 170 धर्माध्यक्षों सहित वाटिकन के धर्माधिकारी तथा यहूदी एवं इस्लाम धर्म के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।

वर्तमान विश्व में व्याप्त समस्याओं एवं चुनौतियों की पृष्टभूमि में सतत् प्रार्थना का आवश्यकता पर बल देकर सन्त पापा ने कहा कि मरियम के समान ही हम ईश्वर की शक्ति में भरोसा रखें तथा नित्य दिन उनमें अपने विश्वास को सुदृढ़ करें।







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