2010-09-18 15:15:17

ब्रिटिश अधिकारियों, कूटनीतिज्ञों, राजनीतिज्ञों बुद्धिजीवियों और व्यावसायिक नेताओं को संत पापा का संबोधन


वेस्टमिन्सटर सभागार, 17 सितंबर, 2010 (सेदोक, वीआर) ब्रिटिश अधिकारियों, कूटनीतिज्ञों, राजनीतिज्ञों बुद्धिजीवियों और व्यावसायिक नेताओं को संबोधित करते हुए संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा - मेरा यह सौभाग्य है कि मैं वेस्टमिन्सटर के इस ऐतिहासिक संसद भवन से ब्रिटेन के लोगों और प्रतिनिधियों को संबोधित करुँ। मेरे दिल में इस संसद के प्रति अपार सम्मान की भावना है जिसने सदियों से प्रजातंत्रीय देशों, विशेषकरके कॉमनवेल्थ देशों के अंग्रेजी भाषा-भाषी राष्टों के विकास में अपना विशेष प्रभाव छोड़ा है। अनेक अन्य विशेषताओं के अलावा, ब्रिटेन की कानून-व्यवस्था, व्यक्ति और राज्य के कर्त्तव्य एवं अधिकार एवं शक्ति विकेंद्रीकरण के सिद्धांत आज भी विश्व के कई राष्ट्रों के लिये प्रेरणा के श्रोत हैं।


मैं आज इस संसद के सदस्य रहे संत थोमस मूर की याद करना चाहता हूँ जिनके जीवन की सराहना विश्वासी और अविश्वासी दोनों ही करते हैं जिन्होंने हरदम अपने अंतःकरण की आवाज़ सुनते हुए अपने प्रिय राजा की भी अनसुनी कर दी और सदा ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास किया। कई बार लोग यह प्रश्न करते हैं कि धर्म और राज्य के प्रति उनका क्या दायित्व हैं। आज मैं राजनीतिक प्रक्रिया में धार्मिक विश्वास के बारे में दो शब्द कहना चाहता हूँ।

आज ब्रिटेन ने एक ऐसे प्रजातांत्रिक देश के रूप में उभरा है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, राजनीतिक गठबंधन की स्वतंत्रता, व्यक्ति के अधिकार एवं कर्त्तव्य के प्रति जागरुकता एवं समानता के प्रति समर्पित है। काथलिक कलीसिया के सामाजिक सिद्धांत बहुत हद तक इन्हीं बातों पर बल देते हैं ताकि इससे सार्वजनिक हित संभव हो सके। आज प्रजातंत्र की चुनौती है कि वह नैतिक सिद्धांतों का निर्धारण सामाजिक सर्वसम्मति से करे। अगर देश की सामाजिक और नैतिक समस्याओं का समाधान के लिये सुदृढ़ नैतिक नींव न हो तो समस्यायें और भी गंभीर हो सकतीं हैं।


हाल में आयी आर्थिक मंदी इसी का एक ठोस उदाहरण है। जैसा कि प्रत्येक आर्थिक निर्णय का नैतिक परिणाम जुड़े होते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक राजनीतिक निर्णय के साथ ही नैतिक परिणाम जुड़े हुए हैं जिसे कोई भी सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है। इसका ठोस उदाहरण हम ब्रिटेन ही में पाते हैं जब ब्रिटेनवासियों ने नैतिक सिद्धांतों के आधार पर प्राकृतिक नियम को मान्यता देते हुए गुलाम प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठायी तो इस बुराई का अंत हो गया।


आज ज़रूरत है राजनीतिक निर्णयों के लिये एक सुदृढ़ नैतिक नींव की। आज काथलिक कलीसिया यह नहीं चाहती है कि वह राजनीतिक बहसों में कुछ नीतियों को बताये, कलीसिया समस्याओं का राजनीतिक समाधान भी नहीं देना चाहती है जो धर्म के दायरे से बाहर का हो।


काथलिक कलीसिया तो बस इस तरह से मदद करना चाहती है ताकि तटस्थ नैतिक सिद्धांतों की खोज में विवेक का उचित उपयोग हो सके। कई बार धर्म के इस ‘सुधारवादी या दोषनिवारक’ भूमिका को वे लोग नहीं स्वीकार नहीं करते हैं जो कट्टरवादी और सम्प्रदायवादी हो गये हैं। धर्म में ये कमियाँ तब आती हैं जब धर्म को विशुद्ध और व्यवस्थित करने के विवेक की भूमिका को कम महत्त्व दिया जाता है।


विवेक भी बुराइयों या विकृतियों का शिकार हो सकता है अगर इसे धर्म मदद न करे विशेषकरके जब इस पर विभिन्न विचारधाराओं का नियंत्रण हो जाता है या जब विवेक का पूर्ण उपयोग मानव की मर्यादा की रक्षा के लिये नहीं किया जाता है। सच पूछा जाये तो दास प्रथा विवेक के इ अर्द्ध उपयोग का परिणाम था।
इसी लिये मेरी सलाह है मानव सभ्यता के कल्याण के लिये विवेक और विश्वास, लौकिक प्रज्ञा और धार्मिक विश्वास एक दूसरे की मदद लेने से न हिचकें और आपसी वार्ता जारी रखें। इसलिये, विधायकों या जनता के प्रतिनिधियों के लिये धर्म एक समस्या न बने बल्कि एक ऐसा सहयोगी बने जो राष्ट्रीय वार्तालाप में मदद दे।
और इसीलिये आज मैं इस बात की ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ कि आज लोगों में धर्म को दरकिनार करने की प्रवृति दिखाई पड़ती है विशेषकरके ख्रीस्तीय धर्म में और ऐसे राष्ट्रों में जो सहिष्णुता पर बल देते हैं।

ऐसे लोग का मानना है कि धर्म की आवाज़ को समाप्त कर दिया जाये या इसे सिर्फ व्यक्तिगत जीवन के दायरे में समेट दिया जाये। कुछ लोग चाहते हैं कि धार्मिक समारोहों जैसे क्रिसमस को सार्वजनिक समारोहों के रूप में न मनाया जाये ताकि यह दूसरे के धार्मिक विश्वासों को आघात न पहुँचाये।
कुछ विरोधाभासी तर्क देते हुए कहते हैं कि भेदभाव समाप्त करने के लिये कई बार ईसाइयों को अपने अंतःकरण के विपरीत भी निर्णय लेना चाहिये। ये सभी बातें चिंताजनक हैं। ऐसा होना इस बात की ओर इंगित करता है कि व्यक्ति न तो दूसरे के धार्मिक विश्वास के अधिकार का सम्मान करता न ही उसके अंतःकरण का और न ही धर्म की विधि संगत सार्वजनिक भूमिका का।
मेरा निमंत्रण है कि आप अपनी क्षमता के अनुसार इस बात के लिये लोगों को प्रोत्साहन दें कि राष्ट्रीय जीवन के हर स्तर में विश्वास और विवेक का उपयोग करें।


मेरे यहाँ आने के लिये भेजा गया निमंत्रण ही इस बात का सबूत है कि आप इस कार्य के लिये तैयार हैं। और ब्रिटिश सरकार ने जिन तरह के कार्यों का बीड़ा वाटिकन के साथ मिलकर उठाया है इस बात को बिल्कुल स्पष्ट करता है।


काथलिक कलीसिया चाहती है कि वह ब्रिटेन के साथ मिलकर नये उपायों को खोजे ताकि पर्यावरण संबंधी दायित्वों को एक साथ मिलकर लोगों के हित में निभाया जा सके। संत पापा ने कहा कि वे वर्त्तमान ब्रिटिश सरकार के इस निर्णय से प्रभावित हैं कि इसने सन् 2013 तक अपनी राष्ट्रीय आय का .7 प्रतिशत विकास कार्यों जैसे खाद्य उत्पादन, शुद्ध जल रोजगार शिक्षा स्वास्थ्य परिवार कल्याण और प्रवासियों पर खर्च करेगा।

संत पापा ने कहा कि उनका विश्वास है कि पिछले दिनों की तरह ही वाटिकन और ब्रिटेन एक दूसरे का सहयोग करेंगे विशेषकरके विवेक और विश्वास के मामलों में ताकि विश्व इससे लाभान्वित हो सके। उनका विश्वास है कि कलीसिया और राज्य मिल कर कार्य कर पायेंगे पवित्र आत्मा की उँजियाला प्राप्त करेंगे ताकि यहाँ के नागरिकों एवं विश्व के लोगों का कल्याण हो सके।


इस प्रकार के कार्यो को करने के लिये कैथोलकि चर्च जैसे धार्मिक संस्थायों को इस बात की स्वतंत्रता होनी चाहिये कवे अपने सिद्धांतो, विश्वासों के अनुसार और चर्च की आधिकारिक शिक्षा के अनुसार कार्य कर सके।


संत पापा ने कहा कि वेस्टमिन्सटर संसद के उपर में अवस्थित दूत हमें इस बात की याद दिला रहे हैं कि ईश्वर सदा हमारी देख-भाल करता और हमारा मार्गदर्शन करता है। वे हमें बता रहे हैं कि धार्मिक विश्वास ने सदा ही देश के लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण योगदान किये हैं और करते रहेंगे। ईश्वर इस कार्य में के लिये प्राचीन संसद के दोनों सदनो के सदस्यों को मदद दे।













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