2010-09-03 16:59:42

लोकधर्मियों संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के सचिव धर्माध्यक्ष जोसेफ कलेमेंस का सम्बोधन


एशियाई काथलिक लोकधर्मियों का सम्मेलन दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में 31 अगस्त से 5 सितम्बर तक सम्पन्न हो रहा है। लोकधर्मियों संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के सचिव धर्माध्यक्ष जोसेफ कलेमेंस ने सम्मेलन के दूसरे दिन प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए प्रभु सेवक संत पापा जोन पौल द्वितीय के प्रेरितिक उदबोधन ख्रीस्तोफिदेलिस लाईची पर सुंदर और गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए लोकधर्मियों द्वारा एशिया में सुसमाचार प्रचार के लिए कलीसिया की आशा का संचार किया। संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने जर्मनी में पुरोहिताई के आरम्भिक दिनों में ईशशास्त्र के प्रोफेसर तथा बाद में विश्वास और आस्था संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष के रूप में लोकधर्मियों की अस्मिता, बुलाहट और मिशन के बारे में तथा कलीसिया की जरूरतों के बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं। इन मुद्दों के बारे में विगत 40 वर्षों में संत पापा के ईशशास्त्रीय, दर्शनशास्त्रीय और सामाजिक राजनैतिक लेख उनकी गहन संवेदनशीलता को व्यक्त करते हैं।

धर्माध्यक्ष कलेमेंस ने अपने विश्लेषण में निम्नलिखित बिन्दुओं को रेखांकित किया- कलीसिया हमें पुरोहित, नबी और राजा के रूप में परिवर्तित करती है, लोकधर्मियों की बुलाहट, जीवन की धर्मनिरपेक्ष दशा और लोकधर्मी स्थिति का याजकीकरण करने का खतरा, पवित्रता के लिए सार्वभौमिक बुलावा, कलीसिया के मिशन का परिणाम तथा समर्पण के रूप- विशेष रूप से साक्ष्य देने के लिए पल्ली जीवन तथा प्रेरिताई कामों में सक्रिय सहभागिता।

धर्माध्यक्ष कलेमंस ने संत पापा जोन पौल द्वितीय के प्रेरितिक उदबोधन एक्लेशिया इन एशिया पर प्रकाश डालते हुए एशिया में कलीसिया के सामने प्रस्तुत दो जरूरी कामों को रेखांकित किया- लोकधर्मियों के पर्याप्त प्रशिक्षण की जरूरत तथा लोकधर्मियों के मिशनरी समर्पण का पुर्नजागरण। वियतनाम के प्रोफेसर फादर जोसेफ दिन दुक दाव ने एशिया में मिशनरी प्रयास और प्रशिक्षण पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लोकधर्मियों के प्रशिक्षण के लिए विभिन्न देशों में चलाये जा रहे कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के सभी कार्यक्रमों में मिशन पहलू शामिल किये जायें तथा कलीसिया की सामाजिक शिक्षा, ए न्यू वे ओफ बीइंग इन द चर्च, समुदायों की सामुदायिकता, कलीसिया के जीवन में युवाओं की उपस्थिति तथा कलीसिया में महिलाओं की भूमिका की पुर्नखोज इन क्षेत्रों में केन्द्रित रहे।

उन्होंने लोकधर्मियों के किसी भी प्रशिक्षण कार्यक्रम के लक्ष्यों पर चर्चा करते हुए कहा कि यह येसु ख्रीस्त के साथ निजी और अंतरंग मित्रता स्थापित करने एवं धर्मनिरपेक्ष वास्तविकता में खमीर बनना हो। उन्होंने कहा कि एशिया और पाश्चात्य जगत की अलग अलग वास्तविकताएँ है- धार्मिक उदासीनता और चरमपंथ, निर्धनता और भौतिकवाद, भूमंडलीकरण और जातीय संघर्ष, परिवार के बुनियादी मूल्यों का संरक्षण तथा पारिवारिक जीवन का विखराव इत्यादि। इसी दिन सम्मेलन के अपराह्नकालीन सत्र में ख्रीस्तीय एकता प्रसार, अंतर धार्मिक संवाद तथा सांस्कृतिकरण के मुददे पर विचार विमर्श किया गया। प्रतिभागियों ने मतेओ रिक्की के जीवन पर निर्मित एक फिल्म भी देखा।








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