2010-08-25 16:40:31

बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा दिया गया संदेश


श्रोताओ, संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने 25 अगस्त को बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर कास्तेल गोंदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के प्रांगण में देश विदेश से आये तीर्थयात्रियों और भक्तों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने कहा-


अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
अपने जीवन में हम में से प्रत्येक जन को कुछ लोग प्रिय हैं जिन्हें हम विशेष रूप से अपने करीब महसूस करते हैं। उनमें से कुछ लोग ईश्वर के राज्य में हैं कुछ अन्य हैं जो जीवन में हमारे साथ हैं हमारे अभिभावक, सगे संबंधी, शिक्षक,शुभ चिंतक, कुछ अन्य लोग जिन पर हम भरोसा करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हमारे ख्रीस्तीय जीवन मार्ग में सहयात्री हैं। मैं आध्यात्मिक निदेशक, पापमोचक पुरोहित, लोग जिनके साथ हम विश्वास के अनुभव की शेयरिंग करते हैं इनके साथ ही मैं कुँवारी धन्य मरियम और संतों के बारे में सोचता हूँ। हर एक जन के लिए कुछ संत होने चाहिए जिनसे वे परिचित हों उनकी प्रार्थना और मध्यस्थता के द्वारा उनकी समीपता महसूस करें और साथ ही संतों का अनुसरण करें। मैं कहना चाहूँगा कि अधिक से अधिक संतों के बारे में और अधिक जानकारी पाये उस संत के नाम से शूरू करें जो आपके नाम के साथ जुड़ा है तथा उनकी जीवनी और लेखों को पढ़ें। सुनिश्चित रहें कि ये संत ईश्वर को और अधिक प्रेम करने के लिए अच्छे मार्गदर्शक बनेंगे तथा आपके मानवीय और ख्रीस्तीय विकास में सहायक सिद्ध होंगे।


जैसा कि आप जानते हैं, संत जोसेफ और संत बेनेडिक्ट का मेरे नाम से संबंध है तथा अन्यों में संत अगुस्तीन जिनके बारे में मुझे गहन अध्ययन और प्रार्थना के द्वारा जानने का महान वरदान मिला और वे मेरे जीवन और प्रेरिताई में अच्छे साथी बन गये हैं। मानवीय अनुभवों और इसके ख्रीस्तीय संदर्भ के महत्वपूर्ण आयाम पर बल देना चाहता हूँ जब हमारे युग में सापेक्षवाद ही सत्य प्रतीत होता है जो सोच विचार चुनाव और व्यवहार को मार्गदर्शन प्रदान करे। संत अगुस्टीन वह व्यक्ति थे जिन्होंने कदापि सतही जीवन नहीं जीया। सत्य को पाने की तृष्णा और सतत खोज उनके अस्तित्व की विशेषता थी।
कृत्रिम सच, दिल को दीर्घकालीन शांति देने में असमर्थ हैं लेकिन वह सत्य जो अस्तित्व को अर्थ प्रदान करता है वह घर है जहाँ दिल शांति और आनन्द पाता है। हम जानते हैं कि उनके लिए आसान रास्ता नहीं था। उन्होंने प्रतिष्ठित कैरियर, धन सम्पत्ति तथा तत्क्षण खुशी देनेवाली आवाज में सत्य पाना चाहा लेकिन गलती हुई, उन्हें अफसोस हुआ, असफलता मिली लेकिन कदापि नहीं रूके। जो मिला उससे उन्हें थोड़ा प्रकाश मिला लेकिन उससे संतुष्ट नहीं हुए और गहराई से उन्हें अपने अंदर जाने तथा अनुभव करने को मिला जैसा कि वे अपने कन्फेशन्स में लिखते हैं, ईश्वर अपनी जिन शक्तियों से काम कर रहे थे वह उनके लिए कहीं अंतरंग थे, वे उसके बगल में थे, उन्होंने उन्हें कदापि नहीं छोड़ा तथा उनके जीवन में स्थायी रूप से प्रवेश करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे।
जैसा कि मैंने हाल ही में उनके जीवन पर बनी फिल्म पर टिप्पणी कर रहा था अगुस्टीन ने अनुभव किया अपनी सतत खोज में ऐसा नहीं कि उसने सत्य को पाया लेकिन सत्य स्वयं जो ईश्वर हैं, उनका पीछा किया और उन्हें पाया। रोमानो गुवारदीनी कन्फेशन्स के तीसरे अध्याय के एक प्रसंग पर टिप्पणी करते हैं, अगुस्टीन जानते थे कि ईश्वर ही वह महिमा हैं जिसके सामने हम घुटने टेकते हैं, वह पेय हैं जो हमारी प्यास बुझाते हैं, वह प्रेम जो हमें प्रसन्न करता है। वह सांत्वनादायी आश्वासन, प्रेम का भंडार जो सबकुछ जानता है और यही मेरे लिए काफी है।
कन्फेशन्स में ही नवीं किताब में संत अपनी माता संत मोनिका के साथ वार्तालाप के बारे में कहते हैं जिनका समारोही पर्व हम अगले शुक्रवार को एक दिन बाद मनायेंगे। यह दृश्य है जहाँ वह और उनकी माता ओस्तिया में एक होटेल में हैं वहाँ खिड़की से आकाश और समुद्र को देखती है, आकाश और समुद्र से परे देखती है और एक पल में ही सृष्टि के मौन में ईश्वर के दिल का स्पर्श पाती है। और यहाँ सत्य की ओर जाने के रास्ते में बुनियादी विचार है -मौन सृष्टि को सफल होना है यदि मौन के द्वारा ईश्वर कह सकते हैं। हमारे युग में यह हमेशा सही है कभी कभी यह एक प्रकार का मौन का भय है, मनन चिंतन है , विचारों को काम में प्रकट करना है, जीवन का गहन अर्थ है, बहुधा जीवन जीने की चाह है क्योंकि बहुत बार क्षणिक पल आसान प्रतीत होता है, भ्रमित करनेवाला। हम बहुत बार हल्के तरीके से जीवन जीना चाहते हैं बिना सोच विचार किये। हम सत्य की खोज करने से भयभीत रहते हैं या संभवतः इससे डरते हैं कि हम सत्य के द्वारा खोज लिये जायेंगे। वह हमें पकड़ लेगा और हमारे जीवन को बदल देगा जैसा कि संत अगुस्टीन के साथ हुआ।
अतिप्रिय भाईयो और बहनो, मैं प्रत्येक जन से कहता हूँ यहाँ तक कि जो लोग अपने विश्वास की यात्रा में कठिन पल में हैं, जो कलीसिया के जीवन में बहुत कम शामिल होते हैं या जो लोग ऐसा जीवन जीते हैं मानो ईश्वर का अस्तित्व नहीं है, वे सत्य से नहीं डरें तथा इसकी ओर आने से रूके नहीं। अपने बारे में गहन सत्य को पाने की खोज को रोके नहीं तथा दिल की भीतरी आँख से देखें। ईश्वर, देखने के लिए प्रकाश देने में तथा दिल को उष्मा अनुभव कराने में विफल नहीं होंगे जो हमें प्रेम करते तथा हमारा प्रेम चाहते हैं।
इस यात्रा में कुँवारी माता मरियम, संत अगुस्तीन और संत मोनिका की मध्यस्थता हमारा साथ दें।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया तथा विभिन्न भाषाओं में तीर्थयात्रियों को सम्बोधित करने के बाद समारोह के अंत में सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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