नयी दिल्ली, 23 अगस्त, 2010 (उकान) कंधमाल में हुए ईसाई विरोधी हिंसा के दो वर्ष बाद
भी पीड़ितों की बदहाली से सरकार को अवगत कराने के लिये कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने
दिल्ली में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया।
हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार
ज़ावेद अख्तर ने प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए कहा कि सन् 2008 में आदिवासी बहुल कंधमाल
जिले में हिंदु अतिवादियों ने जो कहर बरपा वह " शर्मनाक " थी। अख़्तर ने कहा कि भारतवासियों
ने सदा ही धर्मनिर्रपेक्ष मूल्यों का सम्मान किया है पर कंधमाल जैसी घटनायें भारतीय प्रजातंत्र
और धर्मनिर्पेक्षता के लिये घातक हैं।
उन्होंने मीडिया को बताया कि जिन तस्वीरों
की प्रदर्शनी लगायी गयी है यह साफ गवाह देतीं हैं कि 24 अगस्त 2008 को एक हिन्दु नेता
लक्ष्मणानन्दा सरस्वती की हत्या के बाद ईसाइयों की जो यातनायें झेलनी पड़ी वह अमानवीय
थीँ।
विदित हो कि सात सप्ताहों तक ईसाई-विरोधी हिंसा जारी रहे और हज़ारों महिलायें
और बच्चे राहत शिविरों और जंगलों में भटकते रहे ।
आयोजकों ने बताया कि प्रदर्शनी
में करीब 80 तस्वीर हैं जिन्हें बाँस के समान दिखने वाली झोपड़ी में सजाया गया है। प्रदर्शनी
की योजना जाने माने सामाजिक कार्यकर्त्ता शबनम हासमी ने बनायी और ‘नैशनल सोलिडारिटी फोरम’
नामक एक स्वयंसेवी संस्था ने इसे पूर्ण समर्थन दिया। यह प्रदर्शनी 24 अगस्त तक खुली रहेगी।
इस अवसर पर बोलते हुए जोन दयाल ने कहा कि ‘ऐसे अवसरों पर धर्मनिर्पेक्षता पर आस्था
रखने वालों का एक मंच पर आना एक सकारात्मक कदम है’।
कंधमाल में हुई ईसाई विरोधी
हिंसा के दो साल पूरे होने पर यह सिर्फ़ ईसाइयों का मुद्दा नहीं रह गया है वरन् उनका
मुद्दा है जो धर्मनिर्पेक्षता पर विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा कंधमाल की बातें अब
इतिहास बन गयीं हैं पर हम चाहते हैं कि इस प्रदर्शनी के द्वारा देशवासी इससे धर्मनिर्पेक्षता
का पाठ सीखें ।