बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा दिया गया संदेश
बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कास्तेल गोंदोल्फो
स्थित प्रेरितिक प्रासाद के प्रांगण में देश विदेश से आये तीर्थयात्रियों और पर्यटकों
को सम्बोधित करते हुए कहा-
अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
आज मैं संत पापा पियुस
दसवें की छवि पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूँ जिनका पर्व हम शनिवार को मनायेंगे। मैं
उनकी कुछ विशेषताओं पर जोर देना चाहता हूँ जो वर्तमान समय के पास्टरों, मेषपालों और विश्वासियों
के लिए उपयोगी होंगे। जुसेप्पे सारतो उनका नाम था उनका जन्म इटली के त्रेविसो के रियेसे
में 1835 को एक किसान परिवार में हुआ था। पादुआ के सेमिनरी में अध्ययन करने के बाद 23
वर्ष की आयु में वे पुरोहित अभिषिक्त किये गये थे। सबसे पहले वे सहायक पुरोहित फिर सालजानो
के पल्ली पुरोहित और उसके बाद त्रेविसो काथिड्रल के चांसलर धर्माध्यक्ष के कार्यालय में
काम किया और धर्मप्रांतीय सेमिनरी में आध्यात्मिक सलाहकार रहे।
उदारता और समृद्ध
पास्टोरल अनुभवों के इन वर्षो में भावी संत पापा ने दिखाया कि ख्रीस्त और कलीसिया के
प्रति गहन प्रेम, विनम्रता और सरलता तथा जरूरतमंदों के प्रति महान उदारता ही उनके सम्पूर्ण
जीवन की विशेषताएँ थी। वे 1884 में मान्तुआ के धर्माध्यक्ष तथा 1893 में वेनिस के प्राधिधर्माध्यक्ष
नियुक्त किये गये। वे 4 अगस्त 1903 को संत पापा चुने गये। इस प्रेरिताई को उन्होंने झिझकते
हुए स्वीकार किया क्योंकि इस महान काम के लिए वे स्वयं को उपयुक्त नहीं समझते थे।
संत
पापा पियुस दसवें के परमाध्यक्षीय काल ने कलीसिया के इतिहास नें विशिष्ट छाप छोड़ी है।
सार्थक सुधार प्रयास इसकी विशिष्टता हैं जो इस आदर्श वाक्य में निहित है ख्रीस्त में
सब चीजों का संग्रहण, सब वस्तुएँ ख्रीस्त में नवीन। उनके काम ने वास्तव में कलीसियाई
वातावरण को शामिल किया। आरम्भ से ही उन्होंने रोमी कूरिया के पुर्नसंगठन के लिए स्वयं
को समर्पित कर दिया तथा कलीसियाई विधान पर काम आरम्भ किया जिसे उनके उत्तराधिकारी संत
पापा बेनेडिक्ट 15 वें ने आगे बढा़या। उन्होंने भावी पुरोहितों के अध्ययन और प्रशिक्षण
को भी नवीकृत किया तथा क्षेत्रीय कार्यशालाओं का आयोजन किया और इन्हें अनेक अच्छे पुस्तकालयों
और शिक्षकों की तैयारी से लैस किया। अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र था ईश प्रजा की धर्मसैद्धांतिक
शिक्षण। जब वे पास्टर थे उन्होंने धर्मशिक्षा माला लिखी थी और मांतुआ में उनके धर्माध्यक्षीय
काल के समय यही धर्मशिक्षा के लिए कम से कम इताली भाषा में उपलब्ध थी। उन्होंने भले चरवाहे
के समान समय की माँग को समझ लिया था। प्रवसन कि स्थिति में विश्वासी जन स्थान और समय
की परिस्थिति को धर्मशिक्षा से जोड़ सकें। उन्होंने रोम धर्मप्रांत के लिए ख्रीस्तीय
धर्मशिक्षा तैयार किया जिसका बाद में इटली और पूरे विश्व में प्रसार हुआ। इसे संत पियुस
धर्मशिक्षा कहा जाता है जो सरल भाषा में विश्वास के सत्य को जानने के लिए निश्चित मदद
है। यह स्पष्ट, सटीक और प्रभावकारी है।
उन्होंने पूजनधर्मविधि में सुधार के
लिए पवित्र संगीतों पर विशेष जोर दिया ताकि विश्वासीजन गहन प्रार्थनामय जीवन और संस्कारों
में पूर्ण सहभागिता का अनुभव कर सकें। क्वाम सिंगुलारी आदेश के द्वारा उन्होंने पवित्र
ख्रीस्तयाग में पूरी तैयारी के साथ दैनिक सहभागिता को प्रोत्साहन दिया और बच्चों के लिए
प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने की आयु को लगभग सात वर्ष कराया।
विश्वासियों के विश्वास
को मजबूती प्रदान करने लिए उन्होंने 7 मई 1909 को प्रेरितिक पत्र विनिया इलेक्टा के द्वारा
परमधर्मपीठीय बिबलिकल संस्थान की स्थापना की। उनके परमाध्यक्षीय काल के अंतिम दिनों में
युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। उन्होंने विश्व के काथलिकों से 2 अगस्त 1914 को अपील की
जिसमें वर्तमान समय के कटु दुःख को व्यक्त किया जो पिता की पीड़ा को व्यक्त करता है जब
वह बच्चों को एक दूसरे के विरूद्ध खड़े होते देखता है। इसके कुछेक दिनों बाद ही उनका
निधन 20 अगस्त को हो गया तथा पवित्रता के लिए उनकी प्रसिद्धि ख्रीस्तीयों के मध्य बहुत
तेजी से फैलने लगी।
प्रिय भाईयो और बहनो, संत पियुस दसवें ने हमें सिखाया कि
विभिन्न क्षेत्रों में हमारी प्रेरितिक गतिविधि का आधार जिसमें हम काम करते हैं यह ख्रीस्त
के साथ गहन आंतरिक संयुक्तता होनी चाहिए तथा इसमें प्रतिदिन बढे़ और सुधार करें। यही
उनकी शिक्षा तथा उनके प्रेरितिक समर्पण का मूल है। यदि हम केवल प्रभु को प्यार करते हैं
तब हम लोगों को ईश्वर के समीप ला सकते हैं तथा उनके उदार प्रेम के लिए लोगों के दिल को
खोल सकते हैं और इस तरह संसार को ईश्वर की दया पाने के लिए तैयार करते हैं।
इतना
कहने के बाद संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया तथा सब तीर्थयात्रियों को अपना प्रेरितिक
आशीर्वाद प्रदान किया।