2010-08-12 17:29:27

प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने के लिए आयु कम करने संबंधी संत पापा पियुस दसवें के आदेश की 100 वीं वर्षगांठ


दिव्य संस्कार और आराधना संबंधी परमधर्मपीठीय परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल अंतोनियो कानिजारेस ने इस तथ्य पर बल दिया है कि बच्चों को पवित्र यूखरिस्त से वंचित नहीं किया जाना चाहिए जो कृपा का स्रोत तथा येसु के साथ चलना शुऱू करने के लिए सहायता है। कार्डिनल अंतोनियो कानिजारेस ने प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने के लिए आयु कम करने संबंधी संत पापा पियुस दसवें के आदेश की 100 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में लोजरवातोरे रोमानो समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख में बल दिया कि बच्चों को यथाशीघ्र पवित्र यूखरिस्त संस्कार ग्रहण करने दिया जाये जब वे सक्षम हों। " क्वाम सिंगुलारी " नामक संत पापा पियुस दसवें का आदेश जो 8 अगस्त 1910 को जारी किय़ा गया था इसका कार्डिनल कानिजारेस ने स्मरण किया जिसके अनुसार बच्चों को यह अनुमति मिली कि एज औफ रीजन अर्थात समझदारी की उम्र वाले बच्चे पवित्र परमप्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। यह उम्र 7 वर्ष के आसपास है। इस आदेश के द्वारा संत पापा पियुस बारहवें ने सब बपतिस्मा प्राप्त लोगों के जीवन में पवित्र परमप्रसाद की केन्द्रीयता, महत्व तथा अर्थ को सम्पूर्ण कलीसिया को सिखाया। इसी के साथ ही उन्होंने बच्चों के लिए येसु के प्रेम पर बल देते हुए प्रत्येक व्यक्ति को इसका स्मरण कराया कि बच्चे प्रभु के विशेष मित्र हैं। पवित्र परमप्रसाद को प्रेम का सबसे बड़ा उपहार के रूप में जोर देते हुए उन्होंने कहा कि प्रथम परमपरमप्रसाद के साथ ही हर व्यक्ति के जीवन में प्रभु के साथ होना और चलना सबसे मूल्यवान है। हम बच्चों को प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने में देरी कराते हुए येसु की कृपा और मित्रता. येसु के काम और उपस्थिति से वंचित नहीं कर सकते हैं। आज के विश्व में बच्चों को इस संस्कार को ग्रहण करने की बहुत जरूरत है। इससे मिलनेवाली एकता, मैत्री और शक्ति को पाने के लिए बच्चों की निष्कलंक और खुली आत्मा सबसे अधिक अनुकूल है।








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