2010-08-03 19:02:53

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य
भाग-2
‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ की सदस्यता
27 जुलाई, 2010


‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम एक नया कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘ कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस ’ अर्थात् ‘ मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः सहभागिता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं वे हैं तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जॉर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने पाठकों को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के इस पहले अंक में हम आपको जानकारी दी ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ की स्थापना के बारे में आज हम आपको बताएँगे ‘कोड ऑफ कैनन लॉ’ के आधार पर सिनॉद ऑफ बिशप्स की सदस्यता के बारे में।
सिनॉड ऑफ बिशप्स अपने अस्तित्व में उस समय आया जब संत पौल षष्टम ने 15 सितंबर सन् 1965 ईस्वी को ‘एपोस्तोलिका सोलिचितूदो’ नामक एक दस्तावेज़ लिखा। इस पत्र में दस्तावेज़ में जो संत पापा ने बतायी है उन्हें कलीसिया के कानून ‘कोड ऑफ कैनन लॉ’ के परिच्छेद 342 से 348 में और कोड ऑफ कैनन्स फॉर द ईस्टर्न चर्चेस के परिच्छेद 46 में पाते हैं।
342.अब हम आपको बता दें इन परिच्छेदों में ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ के बारे में क्या कहा गया है। इसमें कहा गया है कि ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ धर्माध्यक्षों का एक समूह है जिसमें विश्व के विभिन्न प्रांतों के धर्माध्यक्ष एक निर्धारित समय पर निश्चित सीमित समय के लिए एक साथ जमा होते हैं ताकि उनके और संत पापा के बीच की एकता सुदृढ़ हो। इस सभा के द्वारा धर्माध्यक्ष अपनी सलाहों से संत पापा को इस बात के लिये मदद देते हैं ताकि वे विश्वास और नीति की रक्षा करें कलीसियाई अनुशासन को बरकरार रख पायें और उन प्रश्नों समस्याओं एवं चुनौतियों का जवाब खोज सके जिनका कलीसिया सामना कर रही है।
343. हम आपको ये भी बता दें कि ‘सिनॉफ ऑफ बिशप्स’ का कार्य है कि वे विभिन्न प्रस्तावित मुद्दों पर विचार-विमर्श करें पर इन विषयों पर अंतिम निर्णय का अधिकार संत पापा को ही दिया गया है। ऐसे कई मामले भी हैं जिनपर धर्माध्यक्षों की सभा को यह अधिकार दिया जाता है कि वे उस पर अपना अंतिम निर्णय दे और संत पापा उसकी अभिपुष्टि करे।
344. हम यहाँ पर इस बात को भी स्पष्ट कर दें कि इस सभा में संत पापा के क्या अधिकार है। वास्तव में संत पापा को ही ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ को बुलाने का अधिकार है। इसकी समय सीमा और स्थान का चयन भी पोप ही करते हैं। सिनॉद के सदस्यों के बारे में उनकी नियुक्ति को अभिपुष्ट करने और उनके नाम की सूची को अंतिम रूप देने का अधिकार भी संत पापा को ही है। सिनॉद के विशेष नियम के अनुसार संत पापा को उन विषयों को चयन करने का अधिकार है जिन्हें सभा में विचार-विमर्श के लिये लाया जाना है। पोप ही इस सभा के अध्यक्ष होते हैं और उन्हें इसका पूरा-पूरा अधिकार दिया गया है कि वे सभा में स्वयं उपस्थित हो सकते हैं या किसी व्यक्ति को नियुक्त कर, उन्हें अपना प्रतिनिधि बनायें। वे इस सभा की समाप्ति की घोषणा इसका स्थानांतरण, स्थगन या इसे भंग कर सकते हैं।
245. धर्मध्यक्षों की सभा दो तरह की होती है। पहली प्रकार की सभा में सभी ही धर्माध्यक्ष एक साथ मिलकर सीधे तरीके से उन बातों पर विचार विचार-विमर्श से करते हैं जो कलीसिया के हित के लिये के आवश्यक है। दूसरी प्रकार की जो सभा होती है, उसे ‘विशेष सभा’ या ‘स्पेशल असेम्बली’ कहा जाता है। इसके अंतर्गत किसी प्रांत या विशेष प्रांतो के बारे में विचार-विमर्श किये जाते हैं।
246. हम आपको यह भी बता दे कि साधारण आम सभा में किन धर्माध्यक्षों को भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है। धर्माध्यक्षों की महासभा में कुछ प्रतिनिधि ऐसे होते हैं जो सिनॉद की नियमावली के आधार पर अपने-अपने धर्माध्यक्षीय समिति की ओर से चुने जाते हैं, तो कुछ ऐसे प्रतिनिधि होते हैं जो इसी नियम के आधार पर नियुक्त होते हैं तथा कुछ संत पापा के द्वारा सीधे मनोनीत किये जाते है। इतना ही नहीं कुछ धर्मसंघ के सुपीरियरों को भी सिनॉद के नियमावली के आधार पर चुना जाता है जो इस सभा में अपना योगदान देते हैं। इस संबंध में हम आपको यह भी बता दें कि जब सिनॉद का अति विशेष सत्र बुलाया जाता है और जब किसी मुद्दे पर निर्णय पर शीघ्र लेने की आवश्यकता पड़ती है तब इसके लिये वे ही धर्माध्यक्ष इसमें हिस्सा लेते हैं जो सिनॉद की नियमावली के अनुसार पदधारी और नियुक्त होते हैं। इसमें धर्मसंघों के कुछ वे धर्माधिकारी या सुपीरियर भी होते हैं जिनका मनोनयन सिनॉद के नियमानुसार हुआ हो।
जब संत पापा सभासमाप्ति की घोषणा कर देते हैं तब धर्माध्यक्षों को सभा के दौरान जो पद या जिम्मेदारियाँ सौंपी गयी होती हैं वह भी उसी समय स्वतः समाप्त हो जाता है। इस सभा की प्रक्रिया के बारे इस बात को भी जानना उचित है कि जब सिनॉद जारी हो और उस समय किसी कारण से संत पापा का पद खाली हो जाये तो सभा अपने से स्थगित हो जाती है। यह स्थगन तब तक बना रहता है जब तक नये संत पापा का चुनाव न हो जाये।
348.धर्माध्यक्षों की सभा का एक स्थायी आम सचिवालय है जिसकी अध्यक्षता के लिये संत पापा एक जेनरल सेक्रेटरी की नियुक्ति करते हैं। इस महासचिव की सहायता के लिये धर्माध्यक्षों की एक समिति होती है जो महासचिव की मदद करती है जिनमें कुछ सदस्यों की नियुक्ति संत पापा के द्वारा होती है और कुछ लोग चुने जाते हैं। इसके साथ ही सभी सभाओं के संचालन के लिये भी संत पापा एक अध्यक्ष की नियुक्ति करते हैं जिनका दायित्व सभा के समाप्त होने के साथ ही अंत हो जाता है।
कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन के इस दूसरे अंक में हमने ‘कोड ऑफ कैनन लॉ’ के आधार पर सिनॉद ऑफ बिशप्स की सदस्यता के बारे में जानकारी प्राप्त की। अगले सप्ताह हम सुनेंगे धर्माध्यक्षों की महासभा के लक्ष्यों और अधिकार के बारे में ज्ञान प्राप्त करेंगे।








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