धर्मिक भेदभाव का शिकार हुआ एक दलित प्रशासनिक अधिकारी तमिलनाडू,
31 जुलाई, 2010 (उकान) भारतीय काथलिक कलीसिया ने तमिलनाडू राज्य सरकार पर आरोप लगाया
है कि इसने धर्म के आधार पर भेदभाव करते हुए एक दलित प्रशासनिक अधिकारी को निलंबित कर
दिया है। विदित हो कि राज्य सरकार ने 21 जुलाई को सी उमाशंकर नामक एक दलित ईसाई प्रशासनिक
अधिकारी को यह कहकर निलंबित कर दिया कि उन्होंने गलत जानकारी देकर उस पद को प्राप्त
किया था। सरकार का कहना है कि उमाशंकर ने अपने कागजात प्रस्तुत करते समय दलित प्रमाणपत्र
तो पेश किया पर यह नहीं बताया कि वह ईसाई है। यह भी विदित हो कि भारतीय संविधान दलितों
के लिये शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आरक्षण देती है ताकि वे अपना सामाजिक एवं आर्थिक
स्थिति सुधार सकें पर यदि दलित ईसाई भी है तो उनके लिये यह प्रावधान नहीं है । सरकार
का मानना है कि ईसाइयों के बीच जाति प्रथा की व्यवस्था को नहीं मानती है। ज्ञात हो कि
उमाशंकरने सन् 1990 में प्रशासनिक सेवा में आये जब वे एक दलित हिन्दु थे। विगत् दो वर्ष
पूर्व उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया है। काथलिक कलीसिया का कहना है कि सरकार का निर्णय
अवैध है। उनका मानना है कि 24 वर्ष पहले सरकार द्वारा दिये गये अनुसूचित जाति प्रमाण
पत्र के आधार पर व्यक्ति को झूठा नहीं कह सकती है न ही व्यक्ति के धर्म मानने या ग्रहण
करने की स्वतंत्रता का हनन कर सकती है। भारतीय धर्माध्यक्षीय आयोग के सचिव ने फादर कोसमोन
अरोकियाराज ने कहा कि सरकार अनावश्यक रूप से धार्मिक आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करती
है विशेष करके जब व्यक्ति दलित आदिवासी या कमजोर वर्ग का हो। उन्होंने कहा कि भारतीय
कलीसिया उमाशंकर के निलंबन के सरकारी निर्णय के ख़िलाफ है और उन्हें न्याय दिलाने के
लिये सदा उसका साथ देगी।स्थानीय समाचार पत्रों ने इस बात का खुलासा किया है कि उमाशंकर
का जातिप्रमापत्र वाला मामला उस समय उठाया गया उन्होंने ईमानदारीपूर्वक अपनी ज़िम्मेदारी
निभाते हुए एक व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाये। समाचार के अनुसार यह व्यक्ति मुख्यमंत्री
का रिश्चे बताया गया है। उमाशंकर ने इस मुद्दे को लेकर अनुसूचित जाति के लिये बनी राष्ट्रीय
आयोग में अपनी शिकायत की है। |