2010-07-20 20:02:27

कलीसियाई दस्तावेज - एक अध्ययन
मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः एकता व साक्ष्य
भाग-1
20 जुलाई, 2010


पाठको, ‘कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन’ कार्यक्रम की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम एक नया कलीसियाई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसे ‘कैथोलिक चर्च इन द मिड्ल ईस्टः कम्यूनियन एंड विटनेस’ अर्थात् ‘मध्यपूर्व में काथलिक कलीसियाः एकता व साक्ष्य ’ कहा गया है।
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने मध्य-पूर्वी देशों के धर्माध्यक्षों की एक विशेष सभा बुलायी है जिसे ‘स्पेशल असेम्बली फॉर द मिडल ईस्ट’ के नाम से जाना जायेगा । इस विशेष सभा का आयोजन इसी वर्ष 10 से 24 अक्टूबर, तक रोम में आयोजित किया जायेगा। काथलिक कलीसिया इस प्रकार की विशेष असेम्बली को ‘सिनोद ऑफ बिशप्स’ के नाम से पुकारती है।
परंपरागत रूप से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में जो देश आते हैं वे हैं वे हैं तुर्की, इरान, तेहरान, कुवैत, मिश्र, जोर्डन, बहरिन, साउदी अरेबिया, ओमान, कतार, इराक, संयुक्त अरब एमीरेत, एमेन, पश्चिम किनारा, इस्राएल, गाजा पट्टी, लेबानोन, सीरिया और साईप्रस। हम अपने श्रोताओं को यह भी बता दें कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों जैसे ईसाई, इस्लाम, बाहाई और यहूदी धर्म की शुरूआत मध्य पूर्वी देशों में भी हुई है। यह भी सत्य है कि अपने उद्गम स्थल में ही ईसाई अल्पसंख्यक हो गये हैं।
वैसे तो इस प्रकार की सभायें वाटिकन द्वितीय के पूर्व भी आयोजित की जाती रही पर सन् 1965 के बाद इसका रूप पूर्ण रूप से व्यवस्थित और स्थायी हो गया। वाटिकन द्वितीय के बाद संत पापा ने 23 विभिन्न सिनॉदों का आयोजन किया है। मध्यपूर्वी देशों के लिये आयोजित धर्माध्यक्षों की सभा बिशपों की 24 महासभा है। इन 24 महासभाओं में 13 तो आभ सभा थे और 10 अन्य किसी विशेष क्षेत्र या महादेश के दशा और दिशाओं की ओर केन्द्रित थे। एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के लिये विशेष सभा का आयोजन सन् 1998 ईस्वी में हुआ था।
पिछले अनुभव बताते हैं कि महासभाओं के निर्णयों से काथलिक कलीसिया की दिशा और गति में जो परिवर्तन आते रहे हैं उससे पूरा विश्व प्रभावित होता है। इन सभाओं से काथलिक कलीसिया की कार्यों और प्राथमिकताओं पर व्यापक असर होता है। इन सभाओं में काथलिक कलीसिया से जुड़े कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं जो क्षेत्र की शांति और लोगों की प्रगति को प्रभावित करता रहा है।
एक पखवारे तक चलने वाले इस महत्त्वपूर्ण महासभा के पूर्व हम चाहते हैं कि अपने प्रिय पाठकों को महासभा की तैयारियों, इस में उठने वाले मुद्दों और कलीसिया के पक्ष और निर्देशों से आपको परिचित करा दें।
कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के इस पहले अंक में हम प्रस्तुत करेंगे ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ के परिचय से।


पाठको, ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ काथलिक कलीसिया के धर्माध्यक्षों की एक ऐसी स्थायी संस्था है जिसकी स्थापना संत पापा पौल षष्टम् ने वाटिकन की द्वितीय महासभा के विद्वानों की इच्छा और पहल के अनुरूप 15 सितंबर सन् 1965 ईस्वी को की। इस संस्था को स्थापित करने के पीछे विद्वानों का यही विचार था कि इससे उन सकारात्मक इच्छाओं और मनसूबों को जीवित रखा जा सकेगा जो वाटिकन की द्वितीय महासभा में जागृत हुए थे।
‘सिनॉद’ का शाब्दिक अर्थ को समझने के लिये ग्रीक शब्द ‘सिन’ और ‘होदोस’ का समझने की ज़रूरत है। ‘सिन’ का अर्थ है एक साथ और ‘होदोस’ का अर्थ है ‘पथ या रास्ता’ अर्थात् इसका शाब्दिक अर्थ हुआ ‘एक रास्ते पर आना’ या ‘एक पथ पर चलना’। अंग्रेजी में इसे ‘कमिंग टुगेदर’ अर्थात् ‘एक साथ जमा होना’ भी कहा जा सकता है। इस तरह से सिनॉद एक धार्मिक आमसभा है जिसमें धर्माध्यक्ष संत पापा के साथ मिलते हैं और विभिन्न मुद्दों पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हैं ताकि इससे सार्वभौमिक कलीसिया की समस्याओं का प्रेरितिक और मान्य समाधान हो सके। सिनॉद में धर्माध्यक्ष अपने-अपने धर्मप्रांत का प्रतिनिधित्व करते हुए संत पापा को अपनी सलाहों से मदद देते हैं ताकि वह पूरी कलीसिया का संचालन भली-भाँति कर सके। संत पापा जोन पौल द्वितीय ने सिनॉद को ‘धर्माध्यक्षों की सभा की ओर से किया गया फलदायक अभिव्यक्ति और साधन’ कहा था।
अगर हम सिनोद की स्थापना की प्रक्रिया पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि मिश्र के प्रेरितिक राजदूत कार्डिनल महाधर्माध्यक्ष सिलभियो ओद्दि ने 5 नवम्बर सन् 1959 में एक प्रस्ताव रखा था कि काथलिक कलीसिया के लिये एक ‘सलाहकार समिति’ गठित की जाये। उन्होंने बताया था कि दुनिया विभिन्न भागों से लोगों की एक शिकायत है कि काथलिक कलीसिया की कोई सलाहकार समिति नहीं है अतः धर्माध्यक्षों की एक समिति हो जिसमें विश्व के हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व रहे। यह समिति कलीसिया की समस्याओं पर विचार-विमर्श करे और संत पापा को कलीसिया के संचालन में मदद दें। इसके साथ उन्होंने सलाह दी थी कि धर्माध्यक्षों की इस समिति के सदस्य अपने देश या पड़ोसी देश के अधिकारियों के साथ मिल-जुल कर कार्य करें।
सिनॉद के बारे में बोलते हुए उतरेच के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल अलफ्रिंक ने 22 दिसंबर सन् 1959 को कहा कि ‘‘सिनॉद एक ऐसी सभा है जिसके शीर्ष हैं संत पापा जिसे धर्माध्यक्षों की समिति सार्वभौम कलीसिया के संचालन में मदद देती है।
अगर हम धर्माध्यक्षों और कार्डिनलों की बातों पर ग़ौर करें तो हम पाते हैं कि एक ओर पूरी कलीसिया की ज़िम्मेदारी प्रत्येक धर्माध्यक्ष पर है और दूसरी ओर इसका तात्पर्य यह है भी है कि धर्माध्यक्ष पूरी कलीसिया के संचालन में संत पापा को अपना योगदान देते हैं।
अगर धर्माध्यक्षों के सिनॉद की स्थापना पर ग़ौर किया जाये तो हम पाते हैं कि संत पापा पौल षष्टम् ने इसकी स्थापना में अहम् भूमिका निभायी। संत पापा पौल षष्टम् के मन में काथलिक कलीसिया के संचालन में धर्माध्यक्षों की सक्रिय भूमिका के बारे में पहले से ही बहुत सुदृढ़ विचार थे। जब वे मिलान के धर्माध्यक्ष थे उसी समय उन्होंने संत पापा जोन तेइसवें की मृत्यु की यादगारी में हुए समारोह में कहा था कि कलीसिया के संचालन में धर्माध्यक्षों की सहभागिता व्यक्तिगत और स्थानीय ही बनी रहेगी जब तक कि उनपर यह ज़िम्मेदारी न सौंप दी जाये।
बाद में जब वे संत पापा बने तो उन्होंने इस विचार को मूर्त्त रूप दिया और 14 सितंबर सन् 1965 को वाटिकन द्वितीय महासभा की अंतिम बैठक के पूर्व सिनॉद की स्थापना की मंशा को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि वाटिकन कौंसिल की माँग के अनुसार उन्होंने एक संस्था की स्थापना करने की सोची है जिसे ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ के नाम से जाना जायेगा। यह नियुक्त किये हुए धर्माध्यक्षों का संगठन होगा।
कलीसिया की ज़रूरत के अनुसार इस संगठन के बैठक बुलाने की ज़िम्मेदारी संत पापा की होगी। धर्माध्यक्ष इस बैठक में अपनी सलाह संत पापा को देंगे ताकि कलीसिया का उचित संचालन इसकी भलाई के लिये हो सके। उन्होंने आगे कहा था धर्माध्यक्षों का इस प्रकार का सहयोग निश्चय ही संत पापा और पूरी कलीसिया के लिये हितकारी और आनन्द का कारण होगा। इसी आधार पर 15 सितंबर सन् 1965 को द्वितीय वाटिकन महासभा की 128वीं आम सभा के पूर्व कौंसिल के सचिव तत्कालीन धर्माध्यक्ष पेरिक्ले फेलिचि ने ‘अपोस्तोलिका सोलिचितुदो’ नामक दस्तावेज़ के जरिये ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ की स्थापना की आधिकारिक घोषणा की।


पाठको, आज हमने इस अंक में ‘सिनॉद ऑफ बिशप्स’ की स्थापना के बारे में जान कारी प्राप्त की हैं अगले मंगलवार को हम सिनॉद ऑफ बिशप्स की रचना, लक्ष्य, कार्यों और अधिकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।








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